खबर लहरिया कोरोना वायरस लॉकडाउन का एक साल: अब तक पटरी पर नहीं लौटी मजदूरों की जिन्दगी

लॉकडाउन का एक साल: अब तक पटरी पर नहीं लौटी मजदूरों की जिन्दगी

आज से ठीक एक साल पहले मतलब 23 मार्च को कोरोना महामारी के चलते लॉक-डाउन की शुरुवात हुई थी। रोजी रोटी की चिंता में आम जनता बेहाल हो उठी। जो पलायन करके परदेश कमाने खाने गए थे मानो उन पर दुख का पहाड टूट पड़ा हो। काम देने वाले मालिकों ने इसका खूब फायदा उठाया कि लोगों से मनमानी से काम कराया।

पैसा नहीं दिया भूखो रखा। यहां तक कि कई मामले ऐसे भी आये कि उनको बंधक बना लिया गया। यह सब जो हुआ वह तो पूरी दुनिया के सामने था कि लोग अपने वतन और घर किस मुसीबत को झेलकर आये। उसके बाद शुरू हुई भुखमरी और जैसे तैसे साल गुजर गया और फिर आ गए वही दिन। साल तो गुजर गया लेकिन स्थिति वही बनी हुई है।

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आज भी ऐसे मामले आ रहे हैं। 22 मार्च को असंगठित मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में आये डीएम की ड्यूढ़ी में जिले के बाघा गांव के तीन परिवारों को बंधुवा मजदूर से अवमुक्त कराया जिसमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। मजदूर हिम्मत प्रसाद ने बताया कि 40 हज़ार रुपये एडवांस में देकर ठेकेदार उनको पुणे ले गया था साढ़े तीन महीने पहले। उनके साथ उनके दो भाई और उन सब के बीबी व बच्चे भी गए थे।

वहां पर वह सारी व्यवस्था नहीं थी जो उनको बताया गया था। उनको वहां का माहौल ठीक नहीं लगा तो लेकिन एडवांस लिया पैसा तो चुकाना था। जब उनका पैसा पूरा हो गया तो वह वापस लौटना चाह रहे थे लेकिन भट्टा मालिक ने ज्यादती शुरू कर दी। काम कराते लेकिन पैसा नहीं देते। भूखों काम करना पड़ रहा था। झगड़ा और मारपीट की स्थिति बनते देख उन्होंने संस्था का सहारा लिया। उनकी मदद से वह अपने जिले तो आ गए लेकिन यहां की प्रशासनिक कार्यवाही की हीलाहवाली के चलते तीन चार दिन तक पुलिस की निगरानी में रहना पड़ा।

मज़दूर सीमा बताती है कि वहां पर एक व्यक्ति ऐसा था जिसकी महिलाओं और लड़कियों के प्रति गन्दी नियति थी। सूनी झोपड़ी देख घुस आता था। नहाकर कपड़े बदलने घुसे तो वह पीछे से जरूर आ जाता। कई बार बत्तमीजी किया उसने लेकिन परदेश में रहकर कर भी क्या सकते थे। जब वह किसी तरह इस चंगुल में छूटे तो रास्ते में आते समय बहुत डर था उन्हें कि कोई बीच रास्ते में उनको मार न दे। बच्चे और उनका अपहरण न हो जाये। अब अपने जिले आ गए हैं उनको घर भेज दिया जाय। बहुत परेशान हो गए हैं।

बहुत सारे सवाल उन्होंने समाज से किये कि क्या इस धरती में अमीरों को ही रहने का अधिकार है, गरीब नहीं रह सकते, क्या वह सपने नहीं देख सकते। असंगठित मजदूर मोर्चा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने बताया कि उनकी संस्था को मजदूर हिम्मत प्रसाद ने फोन करके बताया कि उनसे बंधुवा मजदूरी कराई जा रही है। वहां की पुलिस प्रशासन की मदद से वह मजदूरों को अवमुक्त करा पाए।

श्रम प्रवर्तन अधिकारी महेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि उनके विभाग से मिलने वाली सभी योजनाओं का लाभ दिया जाएगा। इन मुक्त बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास कराया जायेगा एवं सरकारी योजना के साथ जोड़ा जायेगा। ये हैं मजदूर ओमप्रकाश पुत्र देवी दीन, राजकुमारी पत्नी ओम प्रकाश, शीलू पुत्री ओमप्रकाश, रोशनी पुत्री ओमप्रकाश, रेशमा पुत्री ओमप्रकाश, किशन पुत्र ओमप्रकाश, शिवानी पुत्री ओमप्रकाश, हिम्मत प्रसाद पुत्र चुनबाद, सीमा पत्नी हिम्मत प्रसाद, चंचल वर्मा पुत्री हिम्मत प्रसाद, अतुल कुमार पुत्र हिम्मत प्रसाद, रामप्रसाद पुत्र देवी दीन, नेहा पुत्री रामप्रसाद, नेहा पुत्री रामप्रसाद, संध्या पुत्री रामप्रसाद।

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