गांवो-कस्बों से बहने वाली छोटी नदियां अब खुद की प्यास भी नहीं बुझा पातीं। न थाम पातीं हैं दामन आते-जाते राही और मुसाफिरों का। न दे पातीं हैं उनकी थकान…
फीचर
- BlogHindiNationalक्षेत्रीय इतिहासजिलाताजा खबरेंफीचरबुंदेलखंडमनोरंजन
बुंदेलखंड की शादियों में ‘बांस के सामान’ देने का रिवाज़
द्वारा Sandhya May 11, 2024शादियां और शादियों में परंपरा के रूप में दी जाने वाली चीज़ें, जिनके बिना न तो बुंदेलखंड में होने वाली शादियों को पूरा माना जाता है और न ही रिवाज़…
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National Transgender Day: ‘थर्ड जेंडर’ की पहचान समाज में कहां है?
द्वारा Sandhya April 15, 2024भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेस अथॉरिटी बनाम युनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में (15 अप्रैल 2014 AIR2014SC1863, ‘नालसा’) भारतीय संविधान के तहत ट्रांसजेंडर के रूप में पहचान रखने…
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गुड़ और चायपत्ती से बनाएं आसान तरीके से मेहंदी
द्वारा Lalita Kumari April 5, 2024मेहंदी महज दो चीजों से तैयार हो जाती है गुड़ और चायपत्ती। बचपन में गुड़ तो हमारे घर में बेसुमार हुआ करता था। डिब्बा का डिब्बा गुड़ बनाकर घर में…
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ग्रामीण महिला पत्रकार की पुरानी यादों का पिटारा
द्वारा खबर लहरिया April 1, 2024मैं उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले के एक छोटे से गांव से हूँ। आप मेरा नाम सोच रहें होगें पर नाम मैं आप पर छोड़ देती हूँ। आप मुझे मनचाहा नाम…
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चुनावी किस्से: जब लोग मतपेटी/ ballot boxes को पूजा की वस्तु मानते थे | Ballot Box Story
द्वारा Sandhya March 27, 2024जब 1952 में सबसे पहले आम चुनाव के दौरान मतपेटियां रखी गई हैं तो लोगों ने मतपेटी को तरह-तरह से सज़ा दिया। कुछ मतपेटियां फूलों से सजी हुईं मिलीं तो…
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महादेवी वर्मा की छायावादी काव्य में ‘ढूंढ़ रहीं हूँ विमुखता में पीड़ा’!
द्वारा Sandhya March 26, 2024महादेवी वर्मा के काव्य में दुःखवाद, पीड़ावाद, निराशावाद की अभिव्यक्ति दिखाई देती है जिसे कई आलोचकों ने भी रेखांकित किया है। साथ ही शब्दों में मुक्ति की आकांशा भी प्रतिबिंबित…
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दिल्ली के निजामुद्दीन दरगाह पर पीले फूलों व संगीत से मना सूफ़ी बसंत/ बंसत पंचमी
द्वारा Sandhya February 15, 2024सूफ़ी बसंत मनाने का इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। पिछले लगभग 700 सालों से सूफी संत हजरत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर हर साल बसंत पंचमी मनाई जाती…
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फैज़ तुम्हारी ‘यौम-ए-पैदाइश’ मेरे इंतज़ार का दिन है!
द्वारा Sandhya February 13, 2024फैज़ तुम्हारी कविता के शब्दों को मैं आज में चुन रही हूँ क्योंकि जो मंज़िल इस ज़िंदगी में हर बसर तलाश रहा है, “वो मंजिल जो अभी आई नहीं”, क्या…