खबर लहरिया Blog ‘मितान’ छत्तीसगढ़ की ऐसी परंपरा जिसमें समान लिंग के लोग बनते हैं “दो जिस्म एक जान”

‘मितान’ छत्तीसगढ़ की ऐसी परंपरा जिसमें समान लिंग के लोग बनते हैं “दो जिस्म एक जान”

छत्तीसगढ़ में आधुनिक काल से फ्रेंडशिप-डे जिसे आज हम दोस्ती का रिश्ता कहते हैं, उसे मितान-मितानिन का नाम दिया गया है। यह छत्तीसगढ़ की एक ख़ास और पुरानी परंपरा है।

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लड़के-लड़कियों के बीच दोस्ती का रिश्ता होना बहुत आम है। लेकिन क्या आपने कभी लड़के-लड़के और लड़की-लड़की के बीच होने वाले दोस्ती के रिश्ते के बारे में सुना है? आप सोच रहे होंगे इसमें नया क्या है? अरे! इसमें नया यह है कि यह दोस्ती का रिश्ता आम दोस्ती के रिश्तों की तरह नहीं होता बल्कि यह परंपराओं और रिवाज़ो के बाद बनने वाला रिश्ता होता है।

हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की एक ख़ास और पुरानी परंपरा की, जिसका नाम है “मितान-मितानिन।” लोग इस परंपरा को लेकर कहते हैं, पहले के ज़माने में आज की तरह फ्रेंडशिप-डे जैसी चीज़ें नहीं होती थी। लोग भी एक-दूसरे को भेदभाव व छुआछूत की नज़र से देखते थे। एक जाति के लोग दूसरे जाति के लोगों के साथ मिलकर या बैठकर खाना नहीं खाते थे। इसी बीच मितान-मितानिन परंपरा की शुरुआत की गयी ताकि इन दूरियों को खत्म किया जा सके।

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मितान-मितानिन परंपरा के बारे में जानें

 

credit – IBC24

छत्तीसगढ़ में आधुनिक काल से फ्रेंडशिप-डे जिसे आज हम दोस्ती का रिश्ता कहते हैं, उसे मितान-मितानिन का नाम दिया गया है। छत्तीसगढ़ी भाषा में मितान का अर्थ होता है मित्र यानी दोस्त। मितान पुरुष मित्र होते हैं। मितान किसी भी अन्य लड़के के साथ बद सकता है। बदना का मतलब है , तय करना या बंधना। जिसके बाद दो व्यक्ति दो जिस्म, एक जान हो जाते हैं। दोनों के परिवार एक हो जाते हैं। सुख-दुःख में वह बराबर के हिस्सेदार बन जाते हैं।

मितान का अगर अर्थ समझा जाए तो इसका मतलब होता है सुख-दुःख का साथी होना। किसी के यहां शादी हो या मुंडन, मितान हर क़दम पर एक दूसरे के साथ होंगे।

मितानिन, महिला मित्र होती हैं। जब महिलाएं या लड़कियां मितान बदती हैं तो वे मितानिन कहलाती हैं।

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जानें कैसे बदता है मितान-मितानिन का रिश्ता

mitan photo by khabar lahariya

अगर किसी लड़के का दूसरे लड़के से अच्छा रिश्ता होता है। दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए आदर होता है। परिवार में ताल-मेल और एक-दूसरे से चेहरा मिलता है तो लोग उन्हें एक-दूसरे से मितान बदने की सोच लेते हैं।

मितान का मतलब, दो लड़कों के बीच की दोस्ती और मितानिन का मतलब, दो लड़कियों के बीच का रिश्ता होता है। इस परंपरा में एक लड़का और एक लड़की मितान या मितानिन नहीं बनते।

जब मितान और मितानिन का रिश्ता बदता है तो इसमें परिवारों की भी बड़ी भूमिका होती है। दोनों परिवार वाले एक हाथ से दूसरे हाथ में नारियल लेते और देते हैं। यह वादा किया जाता है कि वह दोनों एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी होंगे। हमेशा साथ रहेंगे। एक-दूसरे के परिवार को अपना मानेंगे। यह बोलकर दोनों लड़के व दोनों लड़कियां 7 बार एक-दूसरे को गले लगाते हैं। इस तरह वह मितान और मितानिन के रिश्ते में बद जाते हैं।

अगर लड़का या लड़की किसी और जाति से भी हैं तो भी मितान-मितानिन का रिश्ता बंध जाता है। रिश्ते का जुड़ाव होने के बाद दोनों परिवारों के बीच नया परिवार बनाया जाता है। इसके बाद मितान की माँ को माँ, पापा को पापा और बहन को बहन आदि परिवार के सदस्यों को मितान के रिश्ते के अनुसार बोला जाता है।

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जानें किस जाति के लोग बन सकते हैं मितान

साहू ,यादव ,निषाद ,शर्मा ,वर्मा ,सतनामी, इन सभी जाति के लोग एक दूसरे के साथ मितान का रिश्ता बना सकते हैं। जो राजपूत ,बनिया ,ब्राह्मण ,जाति के लोग होते हैं वह मितान नहीं बनाते हैं।

मितान-मितानिन परंपरा के हैं कई प्रकार

1. गंगाजल – गंगाजल को पवित्रता का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। दो लोग जब मितान बदते हैं तो गंगाजल का आदान-प्रदान कर समाज के सामने मितान बनते हैं।

2. भोजली – भोजली का मतलब है भू में जल होना। इसे उत्तर भारत मे कजलइयाँ कहा जाता है। यह मुख्यतः गेंहूँ के अंकुरित पौधे होते हैं जिसे सावन की शुक्ल अष्टमी को एक-दूसरे को कानों में खोंसकर मितान बदा जाता है। छत्तीसगढ़ में मशहूर अभिवादन वाक्य (बधाई) ‘सीताराम भोजली’ इसी से बना है।

3. जंवारा – इस तरह का मितान नवरात्रि के समय बदा जाता है क्योंकि उसी समय दुर्गोत्सव का जंवारा बोया जाता है। जंवारा का मतलब गेंहूँ के अंकुरित पौधे। इन्हीं पौधों का आदान-प्रदान कर जंवारा मितान बदा जाता है। जंवारा शब्द छत्तीसगढ़ी गीतों में ‘ए मोर/हाय मोर जंवारा’ के रूप में लोगों ने आमतौर पर सुनते हैं।

4. सैनांव – इनमें जब दो व्यक्तियों का नाम एक ही जैसा होता है तो उन दोनों के द्वारा बदे (तय करना) गए मितान परंपरा को सैनांव मितान कहा जाता है।

देखा जाए तो मितान छत्तीसगढ़ की एक ऐसी परंपरा जिसमें सिर्फ दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार भी पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए रिश्ते में बंध जाते हैं। आज आधुनिक युग में यह परंपरा एक हद तक लुप्त भी हो गयी है पर छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में लोगों ने आज भी इस परंपरा को जीवित रखा हुआ है।

इस खबर लहरिया के लिए छत्तीसगढ़ से सोमा द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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