खबर लहरिया औरतें काम पर हाथ-पांव, आँख नहीं, फिर भी आत्मनिर्भर हैं विकलांग महिलाएं, देखिये विकलांग दिवस पर ख़ास

हाथ-पांव, आँख नहीं, फिर भी आत्मनिर्भर हैं विकलांग महिलाएं, देखिये विकलांग दिवस पर ख़ास

हम मिले कुछ ऐसी महिलाओं से जिनको विकलांगता ने आम महिलाओं की जैसी जिंदगी जीने का अवसर छीन लिया है, तो क्या हुआ उन महिलाओं की हिम्मत लाजवाब थी। उन्होंने हर स्तर में कोई कसर नहीं छोड़ी आम महिलाओं की जैसी जिंदगी जीने में। हमारी सरकार इन महिलाओं के लिए कितनी योजनाओं का प्रलोभन देती है और कितना लाभ मिल पाता है यह देखने और समझने के लिए हमने एक स्टोरी कवर की।

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कवरेज और सर्चिंग के दौरान तीन ऐसी महिलाओं से बातचीत हुई जो साठ प्रतिशत से ज्यादा विकलांग थीं। सभी ने बताया कि उनको सरकारी योजनाओं का लाभ कितना मिला। आइये क्रमशः बात करें। महुआ ब्लाक का माधौपुर गांव। यहां की सत्तर वर्षीय सरमन बताती है कि वह दोनों आंखों से विकलांग हैं। बच्चन में बुखार आया और मां बाप ने बहुत इलाज कराया लेकिन नहीं सही हुआ।

पता चला कि बड़ी माता (चेचक) निकल आया जिसमें दोनों आंखे चली गईं। बचपन से ऐसे ही जिंदगी काट रही हैं। शादी के बाद सरमन की जिंदगी बहुत मुसीबत से कटी। पति की मौत के बाद बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई ऊपर से आंखों से अंधी। गांव से लगभग बीस किलोमीटर दूर पैदल चलकर ऊपर से लकड़ी का बोझ लेकर बांदा लकड़ी बेचने जाती थी और लकड़ी के रोजगार से बच्चों को पालपोष कर शादी ब्याह कर दिया।

अब हिम्मत नहीं बची कमाने की तो सरकारी योजनाओं के लाभ में पेंशन मिलती है। सरकारी आवास तक का लाभ नहीं मिला। शौंच के लिए अभी भी खुले में और घर से बहुत दूर जाना पड़ता है। इसी तरह बड़ोखर खुर्द ब्लाक के गांव गुरेह निवासी रानी देवी (उम्र लगभग 38 साल) ने बताया कि वह एक पैर से साठ प्रतिशत विकलांग हैं। सरकारी आवास और पेंशन का लाभ मिला है।

इन लाभों को देने में खाना पूर्ती की गई है। दोनों पति-पत्नी विकलांग हैं। विकलांग पेंशन का लाभ तीन महीने में एक क़िस्त के हिसाब से मिलता आ रहा था लेकिन अब कई महीने से क़िस्त नहीं मिली। सरकारी आवास साधरण वाला दिया गया जबकि विकलांगता वाला पाने के हकदार हैं। एक और महिला (राजरानी) से मिले जो महुआ ब्लाक के पचोखर गांव की निवासी हैं।

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राजरानी का कहना है कि उनके पति भी विकलांग हैं। आज तक सरकारी किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला सिवाय शौंचालय के। न पेंशन न ट्रायसाइकिल न ही आवास। कच्चा घर भी नहीं बना सकते। पति और देवर मतलब दो भाइयों की जमीन में से देवर के हिस्से में एक कच्चा कमरा बना है उसमें रहते हैं। बता दें कि 2011 की जनगणना के अनुसार देशभर में करीब 2.68 करोड़ लोग विकलांग हैं। हालांकि विभिन्न राज्यों की तरफ से जारी सार्टिफिकेट इससे काफी ज्यादा हैं।

भारतीय सांख्यिकी मंत्रालय के जुलाई, 2018 में किए गए सर्वे के मुताबिक़ भारत में लगभग 2.2 करोड़ लोग विकलांग हैं। लेकिन केंद्र सरकार केवल उन विकलांग लोगों को अतिरिक्त आर्थिक सहायता दे रही है, जो केंद्रीय सूची में शामिल हैं और जिनकी विकलांगता 80 प्रतिशत या उससे अधिक है। सरकार की इस आधी-अधूरी सीमित सहायता को लेकर विकलांग जनों का कहना है कि सरकार ने मदद के नाम पर उनकी आंखों में धूल झोंकने का काम किया है।

बांदा जिले के जिला दिव्यांग जन सशक्तिकरण अधिकारी बी.के. सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि जिले में कुल 10586 दिव्यांग हैं जिसमें 10461 दिव्यांगों को दिव्यांग पेंशन योजना का लाभ वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिया जा रहा है। 307 नए लाभार्थियों को चिन्हित किया गया है। कुल 10400 लोगों को पेंशन मिल रही है जिसमें 2396 महिला दिव्यांग और 8004 पुरुष दिव्यांग हैं। बाकी योजनाओं का लाभ भी दिया जाता है। बहुत सारी योजनाएं हैं दिव्यांगों के लिए। उनकी कोशिश है कि लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ ज्यादा से ज्यादा मिल सके।

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