महिलाओं के साथ होती हिंसाओं के खिलाफ अब उन्होंने लड़ने का फैसला किया है। अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की ठानी है।
यूपी में महिलाओं की सुरक्षा, उनके अधिकार, उनके लिए बने कानूनी नियम कई समय से बड़ा सवाल बने हुए हैं। वह इसलिए क्योंकि सरकार के बड़े वादों और खोखले नियमों के बावजूद राज्य में यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, महिलाओं के अधिकारों का हनन आदि जैसे मामलें अदालत की चौखट पर सुनवाई के इंतज़ार में पड़े हुए हैं। इसके साथ ही महिलाओं को आज भी अपने हक़ और अधिकार को पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
सुरक्षा पाना उनका अधिकार है। अपने घर में सम्मान पाना उनका अधिकार है पर जब इन अधिकारों का हनन होने लगे और महिला अधिकार के लिए आवाज़ उठाती रहे, उसके लिए लड़ती रहे और फिर भी उसे अधिकार न मिले। फिर ऐसे में सरकार का यह कहना है कि वह महिलाओं के मुद्दों को प्राथमिकता देती है, यह हास्यप्रद नहीं तो क्या है?
खबर लहरिया हमेशा ग्रामीण मुद्दों की तरफ जनता का रुख डालने की कोशिश करती है क्यूंकि बाहर क्या हो रहा है यह तो सबको दिखता है लेकिन भीतरी क्षेत्रों की क्या हालत है, उसे कोई नहीं देखता। बस बाहर से देखकर ही भीतर का अंदाज़ा लगा लिया जाता है।
इस बार का मामला भीतरी क्षेत्रों में हो रहे घरेलू हिंसा और महिलाओं के अधिकारों से जुड़ा हुआ है। अमूमन मामलों में घरेलू हिंसा, दहेज़, ससुराल वालों व पति द्वारा न पंसद करने से संबंधित होते हैं। हाँ, इसके अलावा भी कई चीज़ें घरेलू हिंसा इत्यादि मामलों की तरफ इशारा करती हैं। वहीं महिला के अधिकारों का हनन कभी उसके परिवार द्वारा किया जाता है तो कभी कानून द्वारा जिसके बारे में हम इस आर्टिकल में बात करने जा रहें हैं।
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घरेलू हिंसा से अधिकारों की लड़ाई तक
घरेलू हिंसा व महिलाओं के अधिकार की यह कहानी बाँदा जिले के फतेहगंज में रहने वाली सुमन की है। आज से 15 साल पहले नरैनी ब्लॉक के लहुरेटा गांव में छिती नाम के व्यक्ति के साथ उसकी शादी हुई थी। शादी के बाद सुमन के तीन बच्चे हुए।
घर वालों के कहने पर उसका पति छिती आए दिन उसके साथ मारपीट करता। उसके साथ गाली-गलौज करता। परिवार के साथ-साथ अन्य व्यक्ति भी उसके साथ मारपीट करते।
हिंसा की शिकायत सुमन ने नरैनी कोतवाली में भी की लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। जैसे की अमूमन मामलों में नहीं होती। महिलाएं थाने के चक्कर लगा-लगाकर थक जाती हैं और रिपोर्ट तक नहीं लिखी जाती।
पुलिस से भी मदद न मिलने के बाद व हिंसा की वजह से सुमन अपने मायके रहने लगी। वह लगभग 7 सालों से अपने मायके में रह रही है। जब कभी वह अपने ससुराल जाती तो उसे मार-पीटकर वापस भेज दिया जाता। सुमन को हमेशा यह उम्मीद रहती कि शायद उसका पति आकर उसे वापस अपने साथ ले जाएगा।
वहीं सुमन के लिए माँ-बाप के साथ रहना भी आसान नहीं था। मायके की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। खराब स्थिति में परिवार ने मकान बेच दिया। इसके बाद वह खेत में झोपड़ी बनाकर रहने लगे।
कुछ समय बाद लॉकडाउन लग गया। उसे पता चला कि उसके पति ने दूसरी शादी कर ली है। वह फिर ससुराल गयी लेकिन फिर उसे मार-पीटकर भगा दिया गया। आज से 4 महीने पहले उसका पति अपना स्थायी मकान बेचकर किसी दूसरी जगह रहने लगा। इन सब चीज़ों से परेशान होकर सुमन ने 2021 में बाँदा न्यायालय में पति के खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर किया। उसने मांग की कि पति द्वारा उसे मेंटेनेंस (रख- रखाव) का खर्चा दिया जाए।
सुमन ने वकील तो कर लिया लेकिन उसके पास वकील को देने के लिए पैसे नहीं थे। पूरे पैसे न देने की वजह से वकील ने अदालत में केस ही नहीं डाला। जब सुमन को यह बात पता चली तब उसने दूसरे वकील को अपने केस की फ़ाइल सौंपी लेकिन सवाल वही पैसों का रहा।
सुमन इस समय किराए का घर लेकर रह रही है। वह कपड़े प्रेस करने का काम करती है और उससे जो पैसे आते हैं उससे घर खर्च चलाती है। प्रेस की कमाई से बच्चों को पालना मुश्किल है। बच्चों के भविष्य की चिंता सताती है। अदालत में अपने केस दायर करने को लेकर सुमन बस यह चाहती हैं कि ससुराल में उसके बच्चों को उनका हक़ दिया जाए। उसके दहेज़ के सामान को उसे वापस दिया जाए और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उसका पति उठाये।
सुमन के मन में अभी भी यही सवाल है कि वह यह मुकदमा लड़ भी पाएगी या नहीं? वह वकील की फीस कैसे देगी? उसे न्याय मिलेगा या नहीं? उसके बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
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दहेज व उत्पीड़न हिंसा : अदालत व कार्यवाही
सोना, चित्रकूट जिले के कोरही गांव की रहने वाली है। सोना तकरीबन 2 सालों से अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज़ और उत्पीड़न के मामले को लेकर लड़ रही है। उसने ससुराल वालों पर आरोप लगाया कि उसके सासुराल वालों ने उसे व उसके बच्चों को सिर्फ इस वजह से घर से बाहर निकाल दिया क्योंकि वह उन्हें उनकी लालच के अनुसार दहेज़ नहीं दे पायी।
पिछले दो सालों से महिला के ससुराल वालों के खिलाफ बाँदा जिले की अदालत में मुकदमा भी चल रहा है।
सोना ने खबर लहरिया को बताया कि 9 साल पहले उसकी शादी डिघवट गांव में रहने वाले विजय कुमार से हुई थी। शादी में महिला के पिता ने दहेज भी दिया था लेकिन इसके बावजूद भी ससुराल वालों द्वारा 1 लाख तक की मोटरसाइकिल की मांग की जाती।
सोना कहती, पिता गरीब हैं वह इतनी महंगी मोटरसाइकिल नहीं दे पाएंगे। ससुराल वाले हमेशा इसी बात पर ताना मारते। गाली-गलौच के साथ मारपीट भी करते। महिला का कहना है कि अगर ससुराल वालों द्वारा उसे अच्छे से रखा जाएगा तभी वह वहां रहेगी। वह न्याय चाहती है।
खबर लहरिया ने सोना के पति विजय कुमार से भी बात की। विजय अपनी पत्नी के सारे आरोपों को नकारते हुए कहता है कि उसके द्वारा कभी दहेज़ की मांग नहीं की गयी है। बल्कि उसकी पत्नी के मायके वाले चाहते हैं कि वह अपनी पत्नी के मायके में रहकर उसका ध्यान रखे। वह पत्नी के घर नहीं रहना चाहता। उसने जब पत्नी को ससुराल में रहने के लिए कहा तो पत्नी ने ससुराल में रहने से मना कर दिया। आगे कहा, उसकी पत्नी खुद ही बच्चे को लेकर मायके चली गयी।
चिल्ला थाना प्रभारी आनंद कुमार ने खबर लहरिया को ऑफ कैमरा बताया कि उनके पास दहेज़ या मारपीट का कोई मामला नहीं आया। अगर ऐसा कोई केस आता है तो मामले की जाँच कर दोषी को पकड़ा जाएगा व उस पर कड़ी कार्यवाही की जायेगी।
सुमन हो या फिर सोना, ये तो सिर्फ एक नाम है जिन्होंने आगे बढ़कर लड़ने का फैसला किया। बेशक़ उनकी बातों, उनके आरोपों को गलत ठहराया गया पर उन्होंने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने यह फैसला किया कि जो उनका अधिकार है, जो उनके बच्चों का अधिकार है वह उन्हें इस लड़ाई के ज़रिये मिले।
सुमन हो सोना, उनकी यह लड़ाई यही दर्शाती है कि महिलायें आगे आकर हिंसा के खिलाफ़ व अपने अधिकारों के लिए लड़ तो रहीं हैं पर उन्हें कानून का पूर्ण साथ नहीं मिल रहा तो कभी उनकी आर्थिक स्थिति उनका साथ नहीं देती तो कभी क़ानूनी कार्यवाही के बीच बढ़ता अंतराल और उस बीच आती अड़चनें उन्हें तोड़ने की कोशिश करती रहती है। लेकिन इन सब मुश्किलों के बाद भी वह लड़ना नहीं छोड़ती। वह लड़ती हैं हार और जीत के लिए नहीं बल्कि इसलिए क्योंकि लड़ना उनका अधिकार है।
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