खबर लहरिया Blog राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 : एक दिन तो सबर का बाँध टूटेगा, एक दिन तो नया सवेरा आएगा

राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 : एक दिन तो सबर का बाँध टूटेगा, एक दिन तो नया सवेरा आएगा

दहेज के लिए प्रताड़ित करने के परिणामस्वरूप भारत में हर दिन 20 महिलाओं की या तो हत्या कर दी जाती है, या उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जाता है। 

                                                   Image Credit: Aasawari Kulkarni/Feminism In India

भारत में हर वर्ष 13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसी दिन प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी व कवयित्री सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। सरोजिनी नायडू एक स्वतंत्रता सेनानी तो थीं ही, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने देश की महिलाओं को उनके अधिकार और हक़ दिलवाने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी।

स्वतंत्रता सेनानियों के इतने परिश्रमों के बाद भी आज देश में महिलाएं खुद को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर महसूस नहीं करती हैं। हम आए दिन ख़बरों में महिला उत्पीड़न, हिंसा, शोषण आदि के मामले सुनते और देखते हैं। सरकार द्वारा चलायी जा रहीं अनेक योजनाओं के बावजूद भी आए दिन दिल को झंझोड़ के रख देने वाले ऐसे मामले हमारे सामने आ जाते हैं।

आज राष्ट्रीय महिला दिवस 2022 के अवसर पर हम आपको एक ऐसे ही वाकये से रूबरू करवाने वाले हैं जिसकी साक्षी बनी खबर लहरिया की चीफ रिपोर्टर गीता

हाल ही में हर दिन की तरह गीता बांदा ऑफिस से अपना काम ख़तम कर अपने घर वापस हो रहीं थीं। रात के लगभग 8:00 बज रहे थे। तभी महुआ ब्लॉक के अन्तर्गत आने वाले पनगरा गाँव के पास एक महिला ने ऑटो को रोका। ऑटो में बैठने के बाद महिला ने ऑटो वाले से कोतवाली तक जाने को कहा। महिला की उम्र होगी लगभग 25 साल, आँखों में आंसू लिए ये महिला सही से बात भी नहीं कर पा रही थी। ये ऑटो सिर्फ आगे आ रहे चौराहे तक ही जा रहा था लेकिन महिला को कोतवाली का रास्ता नहीं पता था।

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उस महिला के सामने बैठीं गीता से उस महिला की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी, जिसके बाद गीता ने पूछ ही लिया, क्या हो गया है? आप इतना रो रही हैं और इतनी रात में कोतवाली अकेले जा रही हैं। कुछ हुआ है क्या? मुझे उसी रास्ते से जाना है तो मेरे साथ चले चलना। बिलखती हुई महिला ने बताया, मेरे भाई भाभी ने मुझे बहुत मारा है इसीलिए मैं रात में किसी तरह छुप के उन से आई हूं और कोतवाली जा रही हूं उनके खिलाफ कार्यवाही करने।

महिला की पीड़ा यहीं ख़तम नहीं हुई थी। 7 साल पहले जब इस महिला की बदौसा में शादी हुई थी, वो तब से ही घरेलू हिंसा और शोषण का शिकार हो रही थी। उसके ससुराल वाले कभी काम न करने का बहाना करके उसे मारते थे तो कभी बच्चे न होने का। हाल ये हो गया था कि उन लोगों ने महिला को खाना देना तक बंद कर दिया था।

2 साल तक शारीरिक हिंसा की शिकार हुई इस महिला को 5 साल पहले उसके ससुराल वालों ने मारपीट कर घर से ही निकाल दिया। समाज के डर से पीड़िता ने पुलिस स्टेशन जा कर उसके साथ हो रहे शोषण की एफ आई आर दर्ज कराने के बजाय अपने मायके जाना सुरक्षित समझा था। ये महिला जब से मायके आई घर के कामों की ज़िम्मेदारी भी इसी के कन्धों पर डाल दी गई लेकिन मायके में भी वो बदसुलूकी और प्रताड़ना की शिकार हुई।

घर में मौजूद भाई और भाभी ने उसे घर में शरण तो दे दिया था लेकिन कई दिन बीत जाते थे और महिला को एक रोटी भी नहीं नसीब होती थी। सुबह घर का काम निपटा कर दिनभर खेत का काम करना और घर लौटने पर भैया-भाभी की गालियां सुन्ना और उनकी हिंसा झेलना, ये इस महिला की दिनचर्या का हिस्सा बन गया था।

जब उस रात गीता उस महिला से मिलीं थीं, उससे कुछ समय पहले तक महिला को उसके भाई-भाभी ने 2 दिन तक कमरे के अंदर बंद कर रखा था, महिला ने दो दिन से कुछ खाया भी नहीं था। और अब जब महिला को लगा कि उसे खुद को इस दलदल से निकालने की ज़रूरत है, तब उस रात उसने अपनी पीड़ा को ख़तम करने की ठानी और निकल पड़ी वो कोतवाली में अपने भाई भाभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने।

दहेज के लिए प्रताड़ित करने के परिणामस्वरूप भारत में हर दिन 20 महिलाओं की या तो हत्या कर दी जाती है, या उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जाता है। इस महिला के साथ भी ससुराल में शारीरिक शोषण का मुख्य कारण दहेज़ बना। गरीब वर्ग से आ रही महिला के परिवार ने अपनी हैसियत से बढ़ कर ही दहेज़ दे कर अपनी बेटी को विदा तो किया था, लेकिन तब उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि पैसों की और भौतिकवादी भूख से लैस उनकी बेटी का ससुराल ही एक दिन उसकी जान के पीछे हाँथ धो कर पड़ जाएगा।

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शादी के कुछ महीने तो महिला के लिए काफी सुखद गुज़रे, लेकिन धीरे-धीरे महिला को दहेज़ के ताने मिलने लग गए। जब सिर्फ तानों से बात नहीं बनी तो महिला का पति अपने माँ-बाप के साथ मिलकर उसे पीटने लग गया। लेकिन उसके अंग-अंग को चोट पहुंचा कर भी शायद इन लोगों को सुकून नहीं मिला था। फिर क्या था उन्होंने उसे खाना देना बंद कर दिया और कमरे में बंद करना शुरू कर दिया। इस बेसाहारा महिला को भी शायद अपने इर्द गिर्द मौजूद उन चार दीवारियों के आगे की दुनिया ही दिखना बंद हो गयी थी, इसीलिए वो इतने सालों तक इस प्रताड़ना को बर्दाश्त करती रही।

पित्तृसत्ता से जूझ रहे हमारे देश में आज भी बच्चियों को बचपन से ही उनके अपने घर में पराया जैसा महसूस कराया जाता है। बेटियां तो पराया धन होती हैं! ससुराल ही तुम्हारा असली घर है! मायके को अपना घर मत समझ लेना! इस तरह की बातें हम महिलाओं को बचपन से ही सुनने को मिलती रहती हैं। शिक्षा से अछूती, सिर्फ घर के कामों में लीन ग्रामीण क्षेत्रों में रह रही लड़कियों के दिमाग में यह सभी बातें अवचेतन रूप में बैठ जाती हैं।

खेलने कूदने और अपने सपनों को पूरा करने की उम्र में शादी के बंधन में बंध जाने वाली इन लड़कियों को ससुराल जाने के बाद पता चलता है कि जीवन भर जिस ससुराल को ही इनका घर बताया गया, वो ससुराल भी इनके साथ परायों जैसा व्यवहार कर रहा है। मायके-ससुराल से जुड़ी उलझनों की जटिलता इन महिलाओं को इस हाल तक असहाय बना देती है कि वो चाह कर भी अपने हक़ के लिए आवाज़ नहीं उठा पातीं।

गीता से एक अनजान रास्ते पर टकराई उस मजबूर महिला के अनुसार वो अपने मायके वालों के लिए अब गले का फंदा बन चुकी थी, जिससे न वो पीछा छुड़ा सकते थे और न ही उसे ससुराल वापस भेज सकते थे।

इस महिला की बातें गीता को इतिहास के पन्ने पलटने जैसी लग रही थीं। गीता ने भी अपने जीवन में कई जटिल सीढ़ियों और चुनौतियों को पार करके खुद को स्वतंत्र किया था। एक समय था जब गीता भी शारीरिक हिंसाओं का शिकार होती थीं, और हर औरत की तरह उस समय उनके मन में भी बस एक ही सवाल आता था कि मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊं?”

लेकिन जब सहने की हद पार हो गई तब उन्होंने ठान लिया कि कुछ भी हो जाए वो न ही अब ससुराल में रहेंगी और न ही लौटकर मायके जाएँगी। इन मुश्किल घड़ियों के दौरान गीता की माँ ने उनका हर तरह से साथ दिया, अपने आत्म सम्मान की जंग लड़ रहीं गीता ने जब-जब खुद को दो राहों पर पाया तब तब उनकी माँ उनके लिए एक नए सवेरे जैसी उभर कर सामने आयीं।

गीता का दृणसंकल्प उनके ससुराल वालों से देखा नहीं गया और परिणाम स्वरूप उन लोगों ने गीता पर लूट का मुकदमा कर दिया। गीता से उनकी जमा पूँजी और ज़ेवर छीन लिए गए , लेकिन अब हमारी गीता चुप बैठने वाली नहीं थीं। आँखों में गुस्से की चिंगारी और मन में एक नया जीवन जीने का जज़्बा लिए गीता ने भी कोर्ट जाकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ी। इस दौरान उनपर कोर्ट की तरफ से समझौते के दबाव भी बनाए गए लेकिन अब उन्हें समझ आ गया था कि उन्हें अपनी आगे की ज़िंदगी गुज़ारने के लिए ससुराल, पति, या मायके की ज़रूरत ही नहीं है।

यही समय था जब गीता को खबर लहरिया के बारे में पता चला और वहां से उन्होंने अपने जीवन का एक नया अध्याय लिखना शुरू किया। गीता ने खबर लहरिया में बेबाक और बहुमुखी चीफ रिपोर्टर के नाम से अपनी पहचान बनाई है। भले ही इस मुकाम तक पहुँचने में उन्हें समय लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

सर्दी की उस रात गीता से मिली महिला को भी अपने अधिकारों को समझने में 7 साल लग गए। लेकिन अब जब उसने अपने मनोबल को पहचान लिया है तो गीता को यकीन है कि वो महिला भी अब और प्रताड़ना नहीं झेलेगी और अपने लिए एक नए जीवन का निर्माण करेगी। अभी के लिए उसकी मांग अपने भाई भाभी से सिर्फ दो जोड़ी कपड़े और दो वक्त की रोटी की है, लेकिन क्या पता धीरे धीरे वो खुद ही अपने पैरों पर खड़ी हो जाए। कोतवाली तक उसे पहुंचा कर गीता इस उम्मीद से अपने रास्ते पर निकल पड़ीं कि अगली बार जब वो इस महिला से टकराएं तो उसका एक नया स्वरूप देखने को मिले। वो न ही सिर्फ आत्मनिर्भर हो चुकी हो बल्कि उन 7 सालों की क्षतिपूर्ति के लिए भी आवाज़ उठा रही हो।

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