खबर लहरिया Blog लॉकडाउन में डर और दबाव में काम कर रहे थे सफ़ाई कर्मचारी

लॉकडाउन में डर और दबाव में काम कर रहे थे सफ़ाई कर्मचारी

लॉकडाउन लोगों की ज़िन्दगी का एक ऐसा दौर था जिसे लोग भुला नहीं सकते। इस दौरान हमने कई लोगों की कीमत जानी। इसके साथ यह भी जाना कि जिन कामों को लोग बड़ा नहीं मानते वह काम उस दौरान सबसे कठिन और खतरनाक थे। हम बात कर रहें, सफाई कर्मचारियों की। जब सब लोग लॉकडाउन में अपने घरों में थे, उस समय फ्रंटलाइन वर्कर्स सबसे आगे खड़े थे और सबसे ज़्यादा जोखिम भरा काम कर रहे थें। सड़को, गलियों, हॉस्पिटल की सफ़ाई के साथ-साथ यह लोग लाशों को पहुँचाने और उन्हें जलाने का भी काम कर रहें थे। वो भी बिना किसी सुरक्षा उपकरण के। छत्तीसगढ़ की हमारी एक टीममेट ने लॉकडाउन के दौरान सफाई कर्मचारियों के अनुभव को जाना जिसके बारे में आज हम आपको इस आर्टिकल के दौरान बताने जा रहें हैं।

छत्तीसगढ़ में रहने वाली सफाई कर्मचारी महिला का नाम खेमीन है। हमने उनसे लॉकडाउन के दौरान उनके अनुभव को जानने के लिए उनसे कई सवाल पूछें। हमारा पहला सवाल था, आप कब से सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहीं हैं?

खेमीन कहतीं…. 2007 से नगर पालिका कुम्हरि में सफाई कर्मचारी हूँ। जब से लॉकडाउन हुआ है तब से हमारे काम करने के समय को बढ़ा दिया गया है। पहले एक शिफ्ट में काम करते थे पर अभी सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक 2 शिफ्ट में काम कराया जा रहा है।

हमारा अगला सवाल था कि आपको क्या-क्या काम करना पड़ता है?

वह जवाब में कहतीं…. ठेकेदार हमे जहाँ काम करने भेजते हैं, हम सब अलग-अलग जगह ग्रुप में बंट कर काम करते हैं। जैसे: रोड की सफाई ( रास्ते का कचरा उठाना, रास्ते में मरे जानवरों आदि को उठाना), नाली की सफाई, अस्पताल, भवन इत्यादि जगह काम करने भेजते हैं। काम को लेकर बहुत ज़्यादा दबाव बना रहता है। इतना दबाव की काम न करने पर काम से निकाले जाने की नौबत आ जाती है। 16 से 17 घण्टे काम कराया जाता है वो भी बिना किसी सेफ्टी सुरक्षा, ग्लव्स, मास्क, सेनेटाइज़र और जूते के। उन्हें कुछ भी नहीं दिया जाता है। वह सब अपने ही पैसे खरीदती हैं।

अगला सवाल- आपको वेतन कितना दिया जाता है? क्या सब कर्मचारियों को बराबर वेतन मिलता है?

वह बतातीं…. हम लोगों को एक ही शिफ्ट का पैसा दिया जाता है। हम लोगो को महीने में पी.एफ.एसाई काटकर 9,000 रूपये मिलते हैं। पुरुषों से ज़्यादा समय तक काम कराने की वजह से वह लोग बीमार पड़ जाते हैं। इस वजह से पुरुषों के काम भी महिलाओं को ही करना पड़ता है। जैसे- बेलचा मारना, सिर पर मिट्टी रखकर दूर तक फेंकने जाना। चलते-चलते, मिट्टी की खुदाई करते हुए उनके पैर भी छिल जाते थे।

महिलाओं को बहुत ज़्यादा परेशनी उठानी पड़ती है। उन्हें महावारी, डिलीवरी के समय भी छुट्टी नहीं दी जाती। वह बतातीं हैं कि जब उनकी एक साथी डिलीवरी होने से कुछ दिन पहले छुट्टी मांगी थी तो उसे छुट्टी तो दी पर उसके छुट्टी के पैसे काट लिए गए। उसके कमाये हुए पैसे भी नहीं दिए गए। इतनी ही नहीं उसे काम में भी वापस नहीं लिया गया। इस वजह से लोग छुट्टी मांगने से डरते हैं और दबाव में काम करते रहते हैं। वहीं सुपरवाइज़ार छुट्टी लेकर कहीं जाते हैं या काम पर नहीं आते तो भी उन्हें पूरा पैसा मिलता है। उन्हें बोनस में भी कुछ नहीं मिलता।

– क्या सुरक्षा के लिए कोई सुविधा दी जाती है?

खेमीन ने बताया…. नगर पालिका कुम्हरि में ड्राइवर और महिला कर्मचारी सबको मिलाकर 200 से 250 तक कर्मचारी काम करते हैं। दो साल पहले एक बार साड़ी दी थी बस और अभी मई महीने में एक बार ग्लव्स दिया गया है वो भी लोगो को चिंहित करके। उसके बाद से अभी तक उन्हें कोई सुरक्षा या सुविधा नहीं दी गयी है। यहां काम करने वाले कुछ मजदूरों के राशन कार्ड व मज़दूर कार्ड भी नहीं बने हैं। वह लोग सफाई का काम करके अपना घर चलाते हैं। वोट के समय लोग उनके पास आते हैं और फिर उसके बाद शक्ल दिखाने भी नहीं आते।

ये भी देखें : लॉकडाउन में ग्रामीण स्तर पर बच्चों की पढ़ाई की स्थिति, समस्याएं और क्या थी रुकावटें?

– लॉकडाउन के दौरान आपका क्या अनुभव रहा?

खेमीन ने कहा, अभी इस साल के लॉकडाउन में काम के लिए बहुत ज़्यादा दबाव डाला जा रहा है। जवाब देते हैं तो उन पर ही चिल्लाया जाता है। अधिकारी कहते हैं, ‘यहां नेतागिरी करने आते हो, कल से काम पर मत आना, मुझसे ज़्यादा बोलती हो कहकर दूसरे वार्ड में काम करने भेज दिया।’ अध्यक्ष लोगों का ज़्यादा दबाव रहता है। इतनी बिमारियां बढ़ने के बावजूद भी हमेशा उनसे जानवरो की तरह काम कराया जाता है। कोराना से मरे लोगों की लाशों को लाने व जलाने का काम दिया जाता है। इससे बहुत सारे कर्मचारी बीमार भी पड़े। उन्हें न तो उनके इलाज के पैसे दिए जाते हैं और न ही मानदेय। छुट्टी मारने पर पैसे काट दिए जाते हैं।

वह कहतीं, अगर कुछ कहा जाता तो उन्हें ही काम से निकाला जाता। लोग अपनी बात रखने के लिए कलेक्टर ऑफिस और नगर निगम पत्र लिखकर देने भी गए थे। वहां से भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। पूछे जाने पर कोई बहाना बना दिया जाता है। ऐसा हाल है सफ़ाई कर्मचारियों का।

हक़ की लड़ाई के लिए बनीं आंदोलन का हिस्सा

खेमीन एक संगठन से साल 2008 से जुड़ी हुई हैं। वह कहती हैं कि संगठन एक ऐसी जगह है जहां अपने ही जैसे साथी काम करते हैं और हम जैसे गरीबो के हक, अपने ही ज़मीनी चीज़ों की मांग के लिए लड़ते हैं। रूढ़ीवादी सोच, एकता और समानता के अपने हक के लिए आवाज़ उठाना में मदद करते हैं।

खेमीन अपने हक़ की लड़ाई के लिए आंदोलन में शामिल हैं। उनका कहना है कि वह लोगों को उनके हक़ के बारे में समझाती हैं और बताती हैं कि वह जो मांग कर रहे हैं असल में वह उनका हक़ है। वह आगे कहती कि इतना आसान नहीं होता लोगों को जागरूक करना। कभी-कभी अपने लोग ही सवाल करते हैं कि हम ये सब क्यों करें, जो मिल रहा है उसी में खुश रहो। काम से निकाल देंगे तो हमें और कहीं काम नहीं मिलेगा। काम से निकालने के डर से लोग साथ छोड़ते है लेकिन फिर भी वह उनको साथ में लेकर चलते हैं। उनके आंदोलन की कुछ मांगे हैं जो कुछ इस प्रकार हैं :-

– जो वेतन हाथ में दिया जाता है उसे बैंक खाते में दिया जाए।
– महिला और पुरुष दोनों के काम के 8 घंटे होना चाहिए।
– महिला और पुरुष के कामों और वेतन में समानता।
-पीएफएसआई मिलना चाहिए।
– काम के लिए सुरक्षा उपकरण दिया जाये।
– वेतन को बढ़ाया जाए।

यूँ तो सरकार द्वारा कहने के लिए सफ़ाई कर्मचारियों को नाम के लिए सम्मानित किया गया पर जो उनकी असल समस्या थी उस तरफ किसी का गौर नहीं गया। जहां सफाई कर्मचारी दबाव और डर में काम कर रहे थे। लॉकडाउन के दौरान कई ऐसी कहानियां थी जो सुनी न गयीं, जहां तक लोग पहुंच नहीं पाए।

इस खबर की रिपोर्टिंग छत्तीसगढ़ से उर्मिला द्वारा की गयी है।

ये भी देखें :  लॉकडाउन के बाद विद्यालय खुलने से बच्चों में आई खुशहाली

(हैलो दोस्तों! हमारे  Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)