खबर लहरिया Blog लॉकडाउन में ग्रामीण स्तर पर बच्चों की पढ़ाई की स्थिति, समस्याएं और क्या थी रुकावटें?

लॉकडाउन में ग्रामीण स्तर पर बच्चों की पढ़ाई की स्थिति, समस्याएं और क्या थी रुकावटें?

लॉकडाउन में ग्रामीण स्तर पर बच्चों की पढ़ाई की स्थिति, समस्याएं और रुकावटों पर तैयार रिपोर्ट।

जब कोरोना महामारी शुरु हुई तो रोज़गार के साथ-साथ सबसे बड़ा सवाल शिक्षा का भी था। आधुनिक युग को देखते हुए सरकार और शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षा को डिजिटल करने का फैसला सुना दिया। यह कहा गया कि इसके ज़रिये हर तबके के बच्चों को शिक्षा मिलेगी। वह बच्चे चाहें ग्रामीण क्षेत्र के हों या शहरी क्षेत्र के। लेकिन सवाल यह है कि क्या स्कूलों के बंद होने पर बच्चों को शिक्षा प्राप्त हुई? क्या वह पढ़ पाएं? डिजिटल शिक्षा का क्या नतीजा निकला? स्कूल बंद होने से कौन-सी परेशानियां सामने आयीं? ऑनलाइन शिक्षा की पहुँच कितने बच्चों तक थी? जो बच्चे कोरोना के दौरान शिक्षा से दूर थे, उनका क्या प्रतिशत था? स्कूल बंद होने को लेकर बच्चों के माता-पिता के क्या सवाल थे?

हालाँकि, हमने महामारी के दौरान यह भी देखा की कुछ लोग अपनी तरफ से बच्चों को शिक्षा देने की पूरी तरह कोशिश रहे थे। जिसमें महाराष्ट्र के रहने वाले 32 साल के रणजीत सिंह दिसाले को साल 2020 का वैश्विक शिक्षक सम्मान दिया गया। उन्हें यह सम्मान लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मिला। इनमें अधिकतर लड़कियां पश्चिमी भारत के ग्रामीण स्कूलों में गरीब आदिवासी समुदाय से थीं। उन्हें यह सम्मान जीतने के बाद 10 लाख डॉलर यानी 7.38 करोड़ रुपए इनाम के तौर पर दिए गए थे।

ग्रामीण स्तर पर ये लोग दे रहें है बच्चों को शिक्षा- खबर लहरिया की रिपोर्ट

खबर लहरिया ने ग्रामीण रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि ग्रामीण स्तर पर कुछ समाजसेवी संस्थान कोरोना नियमों का पालन करते हुए बच्चों तक शिक्षा पहुंचा रहे थे। चित्रकूट जिले के ब्लॉक कर्वी के गांव खुटहा के रहने वाले मनीष राजकरण प्रजापति अपने गांव के ग्रामीण बच्चों को आगे बढ़ाने का मार्ग बने थे। साल 2016 में मनीष ने कुछ युवाओं के साथ गांव के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की शुरुआत की थी। उनका कहना था कि गांव में अधिकतर परिवार मज़दूरी करके अपना और अपने परिवार का भरन-पोषण करते हैं। जिसमें उन्हें मुश्किल से 500 से 1000 रुपये दिहाड़ी मिलती है। इतने कम पैसों में घर के साथ बच्चों की ट्यूशन फीस देना उनके लिए पहाड़ जैसा हो जाता है। जिसे देखते हुए उन्होंने गांव के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का कदम उठाया। उन्होंने बच्चों को शिक्षा देने के लिए केंद्र खोला।

लेकिन शरुआत में उन्हें बच्चों को इकट्ठा करने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लेकिन धीरे-धीरे परिवार वाले खुद ही उनके बच्चों को शिक्षा के लिए भेजने लगे। मनीष राजकरण प्रजापति की तरह आज हर एक गांव में इस तरह की पहल करने की ज़रूरत है ताकि कोई भी बच्चा या व्यक्ति शिक्षा से अछूता ना रहे।

स्कूली शिक्षा आपात पर तैयार की गयी रिपोर्ट

हम आपके साथ ‘तालीम पर ताला’ की एक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं जिसमें स्कूली शिक्षा पर एक आपात रिपोर्ट तैयार की गयी है। इस आपात रिपोर्ट में स्कूल चिल्ड्रेंस ऑनलाइन एंड ऑफलाइन लर्निंग (स्कूल) सर्वे के नतीजों को पेश किया गया है। यह स्कूल सर्वे अगस्त 2021 में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है। राज्य इस प्रकार हैं : असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।

इस सर्वे में उन वंचित गाँवों और बस्तियों पर ध्यान दिया गया है जहां बच्चे अमूमन सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। सर्वे में 1,362 परिवार शामिल हैं। रिपोर्ट में प्राइमरी या अपर प्राइमरी कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे से बात की गयी है।

पढ़ने और न पढ़ने वाले बच्चों का अनुपात

primary school student photo by KL

सर्वे में पाया गया कि ग्रामीण इलाके में सिर्फ 28 फीसदी बच्चे ही नियमित तौर पर पढ़ाई कर रहें थें। वहीं 37 फ़ीसदी बच्चे बिलकुल भी नहीं पढ़ रहें थे। हम आपको नीचे दी गयी टेबल के ज़रिये पढ़ने और न पढ़ने वाले बच्चों के बारे में बताते हैं…..

 

                                                              क्या बच्चे पढ़ रहे हैं ?

शहरी                                                                 ग्रामीण

नियमित रूप से पढ़ रहे हैं4728
कभी-कभी पढ़ रहे हैं3435
बिलकुल नहीं पढ़ रहे हैं1937

 

शिक्षा की पहुंच में क्या है रुकावटें?

रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में अधिकतर लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है।

– स्कूल जाने वाले सिर्फ 36 फीसदी बच्चों के पास ही अपना स्मार्टफोन था। (ग्रामीण) वहीं शहरों में यह 30 फीसदी है।

– खराब नेटवर्क

– डेटा के लिए पैसे न होना

– बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई समझ न आना।

– स्कूल पढ़ाई के लिए ऑनलाइन सामग्री नहीं भेजता व उन्हें सामग्री समझ नहीं आती।

– माता-पिता द्वारा बताया गया कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चों की पढ़ने-लिखने की क्षमता कम हुई है। शहर में इसका अनुपात 65 फीसदी और ग्रामीण में 70 फीसदी है।

( यह माता-पिता द्वारा सर्वे के दौरान बताया गया है।)

इन तरीकों से कर रहे थे बच्चे पढ़ाई

– सर्वे के अनुसार, ऑनलाइन क्लास और वीडियो द्वारा। इसमें सिर्फ वह बच्चे शामिल हैं जिनके पास स्मार्टफोन, अच्छा नेटवर्क है लेकिन इसका भी अनुपात ज़्यादा नहीं है।

– टीवी पर शिक्षात्मक कार्यक्रमों द्वारा : दूदर्शन पर नियमित तौर पर स्कूली बच्चों के लिए शैक्षिक प्रसारण होता है। लेकिन सर्वे के सैंपल के अनुसार शहर में 1 फीसदी और ग्रामीण इलाके में 8 फीसदी बच्चें ही इस तरह से पढ़ रहे थें।

– निजी ट्यूशन

– परिवार की सहायता से घर में पढ़ाई

– बिना किसी की मदद से घर पर पढ़ाई

बच्चों ने छोड़े प्राइवेट स्कूल

जब लॉकडाउन हुआ तो प्राइवेट स्कूलों ने पढ़ाई ऑनलाइन कर दी लेकिन महीने की फीस लेना ज़ारी रखा। लॉकडाउन के दौरान रोज़गार न होने पर परिवारों के लिए स्कूल की फीस देना मुश्किल हो रहा था। इसके आलावा स्मार्टफोन में डाटा डलवाना आदि जैसी समस्या भी थी। इस वजह से अभिभावकों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिले के लिए प्राइवेट स्कूल से ‘ट्रांसफर सर्टिफिकेट’ की मांग की। लेकिन ‘ट्रांसफर सर्टिफिकेट’ देने से पहले प्राइवट स्कूल अभिभावकों से बकाया फीस वसूलने की ज़िद करते नज़र आये।

 

                                              बच्चों के पढ़ने-लिखने की क्षमता में हुई गिरवाट

शहरीग्रामीण
ऑनलाइन बच्चे6570
ऑफलाइन बच्चे8276
1-5 कक्षाएं7879
6-8 कक्षाएं7270

(नोट- माता-पिता द्वारा बताये गए)

 

अध्ययन से जुड़ी रिपोर्ट : कुटमु,  झारखंड ( तेजस्वी तभाने)

कुटमु गाँव से सुमन कुमारी नाम की बच्ची से जुड़ी तीन रिपोर्ट हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं। जो महामारी के दौरान हाशिये पर रह रहे बच्चों की शिक्षा की स्थिति को दर्शाता है।

 

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सुमन की टी शर्ट पर लिखा है ‘अपना टाइम आएगा’, शायद स्कूल
                                     खुलने के बाद उसका टाइम आ जाए

 

–  सुमन, सरकारी स्कूल के पांचवी कक्षा में पढ़ती है। उसका परिवार उसे स्मार्टफोन खरीद कर नहीं दे सकता क्यूंकि उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले डेढ़ साल में उसकी पढ़ने की क्षमता में बहुत ज़्यादा गिरावट आयी है। पांचवी कक्षा में होने के बावजूद भी वह अपनी कक्षा की किताबें सही तरह से नहीं पढ़ पाती।

– अन्य सुमन जो तीसरी कक्षा में पढ़ती है। उसके परिवार के पास स्मार्टफोन है पर फिर भी वह ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर रही है। वह इसलिए क्यूंकि वह सरकारी स्कूल में पढ़ती है और स्कूल द्वारा उसे पढ़ने के लिए ऑनलाइन सामग्री नहीं दी जाती। इसके आलावा उसे नहीं पता कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल किस तरह से करना चाहिए। बस एक बार उसके अध्यापक उसके घर ऑनलाइन पढ़ाई के लिए उसका नंबर रजिस्टर करने आये थे लेकिन उसके बाद कोई दिशा-निर्देश नहीं भेजा गया।

 

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सुमन अपने माता-पिता के साथ

 

– तीसरी सुमन कुमारी भी कुटमु गाँव में तीसरी कक्षा में पढ़ती है। उसके पास भी स्मार्टफोन है पर स्कूल द्वारा ऑनलाइन समाग्री नहीं दी गयी है। जो किताबें उसे मिली है वह पांचवी कक्षा की थी। बिना किताबों और ऑनलाइन सामग्री के उसकी पढ़ाई ठप्प हो गयी। लॉकडाउन से पहले वह अपनी क्लास में पढ़ाई में बहुत तेज़ थी जो अंग्रेजी के अक्षर भी पढ़ लेती थी। लेकिन जैसे ही लॉकडाउन हुआ उसे हिंदी के अक्षर पढ़ने में भी दिक्क्त आने लगी। उसके माता-पिता ने बताया कि अध्यापक भी उनके घर स्कूल या पढ़ाई से संबंधित चीज़ें बताने के लिए नहीं आते थे। अध्यापकों द्वारा बहाने बनाये जाते की दूर गाँवों तक नहीं आ सकते जहां की सड़कें भी अच्छी नहीं है।

तीनों सुमन दलित समुदाय से थीं। इनकी कहानी हमें बताती है कि किस तरह से महामारी के दौरान हाशिये पर रहने वाले बच्चों के पास पढ़ाई ज़ारी रखने का कोई ज़रिया नहीं था। बहुत-सों के पास स्मार्टफोन नहीं थे जो की ऑनलाइन पढ़ाई का ज़रूरी हिस्सा है। अगर परिवार के पास स्मार्टफोन आ भी जाता तो सरकारी स्कूल द्वारा उन्हें पढ़ने के लिए सामग्री नहीं दी जाती। बिना स्कूल और अध्यापकों की सहायता के भी अगर बच्चा पढ़ना चाहता तो उस समय भी स्कूल उन्हें सही किताबे देने में असफ़ल नज़र आता जैसा की हमने रिपोर्ट में देखा।

स्कूल बंद होने पर ग्रामीण स्तर पर रह रहे बच्चे मज़दूरी करने लगे। लड़कियां घर का कोई न कोई काम कर रही थीं। कोरोना महामारी के आगमन से स्कूल तो बंद कर दिए गए लेकिन पिछड़े वर्ग और ग्रामीण स्तर पर रहने वाले बच्चों के बारे में सोचा नहीं गया कि उन तक ऑनलाइन शिक्षा किस तरह से पहुंचेगी। जहाँ सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों में फेल नज़र आयी, वहां कुछ लोग और संगठन ग्रामीण स्तर पर बच्चों को पूर्ण शिक्षा देने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे। लेकिन जहां आज सरकार यह दावे कर रही है कि लॉकडाउन में शिक्षा की पहुंच सब तक थी। अगर ग्रामीण स्तर पर यही सवाल सरकार से पूछा जाए तो क्या तब भी उनका यही जवाब होगा? स्कूल बच्चों को पढ़ने के लिए सामग्री नहीं दे रही। अध्यापकों द्वारा बच्चों और उनके परिवारों को पढ़ाई से जुड़ी चीज़ों से अवगत नहीं कराया जा रहा। जिनके पास स्मार्टफोन नहीं था या जिसे स्मार्टफोन चलाना नहीं आता था वह बच्चे पढ़ाई से वंचित थे। यहां तक की इस दौरान उनकी क्षमता भी कम हो गयी। इस बात का शिक्षा मंत्रालय और विद्यालयों के ज़िम्मेदार माने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ?

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