खबर लहरिया Blog बांदा : 7 महीने से नहीं मिला चने का भुगतान,भरन-पोषण करने वाले अन्नदाता की हालत दयनीय

बांदा : 7 महीने से नहीं मिला चने का भुगतान,भरन-पोषण करने वाले अन्नदाता की हालत दयनीय

Payment of gram not received for 7 months,

साभार – खबर लहरिया

जिला बांदा नरैनी क्षेत्र के किसानों की समस्या है कि यूपीपीसीयू खरीद केंद्र द्वारा उनके चने के पैसे नहीं दिए गए हैं।भुगतान की राशि प्राप्त करने के लिए किसान उच्च अधिकारियों के ऑफिस के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन कहीं से भी उन्हें भगतान कि राशि मिलने की उम्मीद नहीं मिल पा रही। इसका सबसे ज़्यादा असर उनकी जीविका और उनके परिवार के भरन-पोषण पर पड़ा है।

कब बेचा था चना?

किसानों ने इसी साल 2020 में अप्रैल-मई में खरीद केंद्र को अपने चने बेचे थे। यूपीपीसीयू खरीद केंद्र, नरैनी कस्बा के कालिंजर रोड पर है। तकरीबन तीन सौ किसानों ने खरीद केंद्र को अपने चने बेचे थे। इस बात को लगभग सात महीने हो चुके हैं। फिर भी खरीद केंद्र द्वारा किसानों को चने बेचने का भुगतान नहीं मिला है। 

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कई किसानों का कहना है कि दिसंबर के महीने में विवाह आदि बहुत होते हैं और ऐसे में चाहें वह विवाह हो, बीमारी हो, बुवाई, जुताई का काम हो या अन्य कोई पारिवारिक समस्या। इन सब चीजों के लिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़ता है। यहां तक कि महिलाओं के ज़ेवरात और खेतों को भी गिरवीं रखना पड़ जाता है। वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि मौजूदा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उनके पास और कोई रास्ता नहीं है।

भुगतान ना मिलने से हो रही हैं ये समस्याएं

नौगांवा गांव के किसान नत्थू शिवहरे बताते हैं कि चने का उचित मूल पाने के लिए उन्होंने यूपीपीसीयू खरीद केंद्र में लगभग 10 कुंटल चना बेचा था। लेकिन अभी तक भुगतान ना मिलने की वजह से उनकी अर्थव्यवस्था पूरी डामाडोल हो गयी है। उन्होंने अधिकारियों और डीएम को भी अपनी समस्या के निपटारे के लिए दरख़्वास्त की। लेकिन कहीं से भी अभी तक उनकी समस्या का समाधान नहीं किया गया। 

मुकेरा गांव के किसान सीताराम पटेल का कहना है कि प्रशासन का केंद्र में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं है। वहीं बसरेही गांव के किसान उमेश बताते हैं कि उन्होंने भी खरीद केंद्र में इस उम्मीद से चने बेचे थे कि उन्हें सरकारी कीमत पर अपने चने का अच्छा दाम मिलेगा। लेकिन उनके साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि उनके 10 हज़ार रुपये इस दौरान फंस गए। उनका कहना कि प्राइवेट में बेचने पर बेशक़ उन्हें कम दाम मिलता था लेकिन कम से कम नगद पैसे उन्हें हाथों-हाथ मिल जाते थे।

किराये के घर मे खुला है खरीद केंद्र

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किसानों का कहना है कि ख़रीद केंद्र किसी सरकारी जगह या इमारत में नहीं बना है। बल्कि किसी किराये के घर में खोला गया है। वह भी सिर्फ अप्रैल-मई के महीने में किसानों की उपज खरीदने को खुलता है। उसके बाद फिर बन्द कर दिया जाता है। खरीद केंद्र में यहां तक की किसी भी प्रकार का बोर्ड तक नहीं लगाया गया है, जो यह संकेत करे कि मौजूदा इमारत खरीद केंद्र की है।

मामले में प्रकाशित रिपोर्ट

दैनिक जागरण की 30 नवंबर 2020 की प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि क्षेत्र के किसान राजू प्रसाद पटेल, रामआसरे बसराही, भोला प्रसाद, नत्थू प्रसाद, सीताराम, छेदीलाल आदि किसानों का कहना है कि उन्होंने भुगतान पाने के लिए 1076 मुख्यमंत्री पोर्टल हेल्पलाइन नंबर के ज़रिए शिकायत भी दर्ज की, लेकिन तब भी कुछ नहीं हुआ। इस संबंध में एसडीएम से भी बात करने की कोशिश की गयी लेकिन उनका फोन कवरेज क्षेत्र से बाहर बताता रहा।

दैनिक जागरण द्वारा 28 नवंबर 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि डीएम आनंद कुमार ने पूरे मामले को सिर्फ तकनीकी दिक्कत कहा है, जिसकी वजह से किसानों को भुगतान नहीं किया गया है। उनका कहना है कि वह सभी दिक्कतों को सही करने की कोशिश कर रहे हैं और जिसके बाद जल्द से जल्द किसानों को भुगतान भी कर दिया जाएगा।

मंडी समिति के अधिकारी का यह है कहना

खबर लहरिया द्वारा 23 जुलाई 2020 को नरैनी क्षेत्र में किसानों की चना भुगतान की समस्या को लेकर एक कवरेज की गयी थी। जिसमें जब वीरेंद्र दीक्षित, मंडी समिति के ए. आर कॉपरेटिव अधिकारी से किसानों को भुगतान ना मिलने का कारण पूछा गया तो उनकी तऱफ से बस यही कहा गया कि सत्यापन के बाद ही कुछ किया जाएगा। सत्यापन का अर्थ होता है, सच की जांच पड़ताल करना कि कही गयी बात सच है या नहीं। 

नियम कहता है कि विक्रय के बाद 72 घण्टों में किसानों को भुगतान मिल जाना चाहिए। लेकिन आज सात महीनों  के बाद भी किसान अपने भुगतान राशि का इंतज़ार कर रहा है। डीएम द्वारा लोगों को बस आश्वाशन दे दिया गया। जुलाई 2020 से आज दिसंबर 2020 आ गया और मंडी समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र दीक्षित की सत्यापन की जांच खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही।

क्या इन आश्वाशन और सत्यापन से किसानों को भुगतान मिल पाया? नहीं, बल्कि किसान तो बस कर्ज़ भी डूबते चले गए। आखिर कब अधिकारी द्वारा किसानों की समस्याओं को एहमियत दी जाएगी? कब तक अन्नदाता को अपने और परिवार के जीवनयापन के लिए कर्ज लेना पड़ेगा? जो पूरे देश का पेट भरता है। आखिर कब तक ?