खबर लहरिया Blog भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये गाँव में बने शौचालय

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये गाँव में बने शौचालय

स्वच्छ भारत मिशन को बढ़ावा देने के लिए गांवों को खुले में शौच मुक्त बनाने की पहल हुई थी। सरकार की मंशा थी घर-घर शौचालय बनवाकर गाँव को ओडीएफ करने की, पर अफसोस कि इस महत्वपूर्ण कार्य को कागजों में ही पूरा किया गया है। इसकी हकीकत तो गांवों में देखने को मिलती है, जब सुबह शाम हाथों में लोटा लेकर महिलाओं, पुरुषों को खेतों में जाते या सड़क किनारे देखा जाता है।

गाँव में जो शौचालय बने भी हैं वह अधूरे हैं। लोगों किसी की पहली क़िस्त नहीं आई तो उसमें कंडा भर दिया है। किसी के शौचालय पर छत या पाइप नहीं डली है ऐसे में लोग क्या करेंगे। इन शौचालयों को बनाने में गाँव में बजट‌ तो करोड़ो रूपये खर्च हुआ‌ पर सिर्फ नाम के लिए। चाहे जिस गांव मे देखा जाये‌ तो हर घर में शौचालय अधूरा पड़ा है। ‌इस तरह शौचालय बनवाने से क्या‌ फायदा? जब गरीब‌ जनता‌ लोटा‌ लेकर शौच‌ के लिए इधर‌-उधर‌ भटकती रहती है।

कुछ गांव ऐसे हैं जहाँ पांच साल की प्रधानी बीत गई है पर वहां शौचालय नही मिला। यही हाल चित्रकूट जिले के गांव डोडिया माफी मजरा छतैनी का है। यहाँ की ममता और रोशनी का भी कहना है कि लोगो को शौचालय नहीं मिला है। बाहर जंगल में शौच के लिए जाते हैं। जंगल में शौच जाने पर एक व्यक्ति की सांप काटने से मौत हो गई थी। पर क्या किया जाए लोग मजबूर हैं। लोगों के पास इतना पैसा नही है कि अपने से शौचालय बनवा सकें।

ये भी देखें- बुंदेलखंड: शौचालय बनाने में कछुए की चाल में तेज़ी लाने को दिये गए निर्देश

जंगलों में सताता है जंगली जानवरों का खतरा

गांव हर्दी कला मजरा डीह पुरवा की दुर्गा वती, सूरजकली, आशा, बिद्यावती और मनीषा का कहना है कि सब लोग सुबह शाम झुंड बनाकर जाते हैं। लोग अपने खेतों में फसल लगा रखे हैं बैठने नहीं देते। काफी दूर जाना होता है डर की वजह से महिलाएं साथ ही निकलती हैं। बरसात के मौसम में इतनी समस्या झेलनी पड़ती है कि हर खेत में पानी भरा रहता है। बैठने के लिए जगह नही होती है। हर्दी गाँव में ऐसे सौ घर हैं जिनको इस पंचवर्षीय में शौचालय नहीं मिला है। जिनको दस साल पहले मिला भी था उनका अभी तक अधूरा पड़ा है। न छत पड़ा न दरवाजा लगा और न ही सीट बैठाई गई है। बस ईट की दीवाल उठवा दिया गया है। जो यूज करने के हाल में नहीं है। सरकार के कागज में तो पूरा है पर गांव में कुछ व्यवस्था नही है।

नाम के लिए बने अधूरे शौचलय

ग्रामीणों का आरोप है कि अगर किसी के घर में एक मरीज है तो दुसरे व्यक्ति की हालत उसे खेतों में शौचालय लाने ले जाने में निकल जाती है। किसी का पेट ख़राब हो गया तो ढूढ़े जगह नहीं मिलती है। यह समस्या महिलाओं के लिए सबसे बड़ी है। पुरुष तो कहीं भी बैठ जायेंगे पर महिलाएं मठेठ कर रह जाती हैं। जिससे तरह-तरह की बीमारियाँ भी जन्म लेती हैं। शहर से कोई मेहमान आ गया तो वह अलग मुंह टेढ़ा करता है की शौचालय ही नहीं बना। उनको कहाँ शौच के लिए ले जाए? खेतों में खुले में बैठने की उनकी आदत नहीं होती है।

ये भी देखें – चित्रकूट: 5 महीने से सामुदायिक शौचालय में लगा ताला, ग्रामीण शौच के लिए जंगल में जाने को मजबूर

शौचालय के लिए नहीं आया है बजट

पूनम हर्दी कला की प्रधान का कहना है जिनको शौचलय नही मिला उनको दिया जायेगा। अभी उनके कार्यकाल में ‌शौचालय‌ के लिए बजट नहीं आया है। अगर बजट आता है तो वह पूरा शौचालय बनवाएंगी जो लोगों के यूज के लायक हो। अधूरे शौचालय के लिए उनके पास दूसरी क़िस्त आएगी तो उनपर भी काम कराएंगी।

सचिव रामकुमार का कहना है कि हर गाँव में घर-घर लोगों को शौचालय दिये गये हैं। जो मजरे हैं उनमें कुछ घर छूटे हैं उनको शौचालय दिया जायेगा। गांव में सामुदायिक शौचालय भी बनवाये गये हैं तो लोगों को बाहर जाने की जरुरत नहीं है उसे भी यूज कर सकते हैं।

कागज पर बना इज्जतघर और खुले में शौच

शौचालय कब बनेगा इसका किसी को पता नहीं है क्योंकि लोगों को या तो बजट का हवाला दिया जाता है या तो शौचालय बनवाने का आश्वासन। यहाँ की महिलाएं सरकार को कोसती हैं कि कैसे उनके घरों में नाम के लिए बना शौचालय भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गया। और जबसे शौचालय बना तबसे वह इस्तेमाल नहीं कर पाए हैं।

इस खबर की रिपोर्टिंग सहोद्रा द्वारा की गयी है।

ये भी देखें – साढ़े तीन लाख रुपये की लागत से बना शौचालय ध्वस्त, राहगीरों को हो रही परेशानी

(हैलो दोस्तों! हमारे  Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)