खबर लहरिया आवास ललितपुर- पन्नी के घर में नहीं हो रहा गुजारा, आवास के इन्तजार में सहरिया आदिवासी लोग

ललितपुर- पन्नी के घर में नहीं हो रहा गुजारा, आवास के इन्तजार में सहरिया आदिवासी लोग

जिला ललितपुर, ब्लाक मडावरा, गांव सौल्दा के सहरिया आदिवासी लोगों का कहना है कि हमारे गांव में अभी तक कोई मंत्री वाले आवास नहीं बने हैं। ना हमारे गांव के लिए आए हैं इसको लेकर के हम लोगों ने कई बार मांग भी की है। और कोई सुनवाई नहीं हो रही है ऐसी स्थिति में हम लोग अपने घरों में पानी डाल डाल कर रहते हैं।

और जब बरसात का मौसम आता है तो चारों दिशाओं से चारों तरफ पानी लगता है। तो ऐसी स्थिति में हमारे बच्चों और हमारे परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि हमारा वैसे ही जंगली एरिया में गांव है तो इसलिए हम लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती है ना कोई जांच करने के लिए जाता है और कहते हैं कि सहरिया आदिवासी को भी लोगों के लिए तो हर घर में आवास बनाए जा रहे हैं। पर हमारे गांव में तो एक भी आवाज नहीं बना है।

इसको लेकर के हम लोग कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। और अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो रही है जैसे कि हम लोग प्रधान जी के यहां जाते हैं तो कहते हैं कि हम लोगों के आवास बनवा दीजिए तो बोलते हैं कि हां अभी आए नहीं हैं बन जाएंगे। पर अभी तक कोई आवाज नहीं बना है इसको लेकर के हम लोग ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक मांग भी की है और कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

हम लोग जाएं तो जाएं कहां हम लोग अपने परिवार का भरण पोषण लकड़ी मकड़ी बिन बनके बेच करके उसी से गुजारा करते हैं और बच्चों को भरण-पोषण करते हैं पर इतना हम लोग इतना पैसा होता तो हम लोग खुद ही अपने घर में मकान बनवा सकते थे पर हम लोग वक्त की रोटी का तो समय से गुजारा नहीं कर पा रहे हैं पर घर कहां से बनाएंगे इसको लेकर के हम लोग बहुत परेशान हैं और शासन-प्रशासन से यही मांग करते हैं कि हम लोगों के आवास बन जाए तो कम से कम हम अपने बच्चों को छाया में तो बैठा सकते हैं और कर ही क्या सकते हैं|

हम लोगों के पास कोई ऐसी जमीन जायदाद तो है। नहीं कि उससे कुछ हम लोग अपना गुजारा कर सकें सिर्फ है तो है मजबूरी और मजदूरी करके आज के जमाने में क्या कर सकते हैं इतनी महंगाई की वजह से अपने बच्चों का तू ही भरण पोषण कर नहीं पा रहे हैं पर घर मकान कहां से बनाएंगे तो हम लोग बहुत परेशान चल रहे हैं और हम लोगों की कोई सुनवाई नहीं होती है जाए तो जाए कहां जाए।