खबर लहरिया Blog चित्रकूट: कोरोना महामारी की मार सबसे ज़्यादा झेल रहे गरीब परिवार

चित्रकूट: कोरोना महामारी की मार सबसे ज़्यादा झेल रहे गरीब परिवार

कोरोना महामारी के दोबारा लौट कर आने से चारों ओर वापस से परेशानियां आ गई हैं। हर कोई इस समय किसी न किसी कारण कठिनाइयों का सामना कर रहा है। कोई वायरस की चपेट में आकर अस्पताल में अपने जीवन की जंग लड़ रहा है, तो कोई रोज़गार वापस से छिन जाने के कारण भूखा बैठा है। पूरे देश के मज़दूरों की तरह इस समय चित्रकूट ज़िले के मज़दूरों का भी रोज़गार का ज़रिया चला गया है, और यह लोग एक-एक रोटी के लिए तरस रहे हैं।

बता दें कि ये मज़दूर पहाड़ी ब्लॉक के गाँव बाक्टा के रहने वाले हैं और ईंट के भट्टे में काम करते थे, लेकिन पिछले हफ्ते जब कोरोना वायरस के केसेस दोबारा बढ़ने शुरू हुए, तब सरकार ने ईंट के भट्टे बंद करवा दिए थे। इन मज़दूरों को रोज़ की दिहाड़ी मिलती थी, जिससे यह अपने परिवार का पेट पालन करते थे लेकिन अब वो मिलना बंद हो गई है।

नहीं मिल रहा कोई दूसरा रोज़गार-

इसी गाँव के रहने वाले हनुमान का कहना है कि उनके घर में वो अकेले कमाने वाले व्यक्ति थे और जब से भट्टे का काम बंद हुआ है, उनका रोज़ का घर-खर्च निकाल पाना मुश्किल होता जा रहा है। लॉकडाउन लगने के कारण सभी मज़दूरी के काम बंद पड़े हुए हैं, ऐसे में न ही कोई दूसरा रोज़गार मिल रहा है और न ही कोई उनकी आर्थिक सहयता कर रहा है।

हीरालाल ने हमें बताया कि जब पिछले साल लॉकडाउन लगा था तब भी उन्होंने किसी से 5 हज़ार रूपए उधार लेकर अपने परिवार का पेट पालन किया था और अब जब स्थिति थोड़ी सुधरने लगी थी, तो दोबारा से लॉकडाउन लग गया। उनका कहना है कि कोरोना महामारी के कारण सबसे ज़्यादा गरीबों को परेशानी उठानी पड़ रही है। न लोगों के पास कोई काम बचा है और न ही किसी दूसरे शहर पलायन करने का मौका है क्योंकि हर जगह यही स्थिति बनी हुई है। हीरालाल का कहना है कि सरकार को गरीबों को राशन पहुंचाने का जल्द से जल्द कोई इंतज़ाम करना चाहिए, नहीं तो गरीब भूखे मर जाएंगे।

आर्थिक तंगी से जूझ रहे गरीब परिवार-

इस गाँव के निवासी चुराना ने हमें बताया कि रोज़गार ढूंढने के कारण उनके गाँव से कई लोग बाहर शहरों में जाकर रहने लग गए थे, उन्होंने भी करीब 10 साल भदोही के एक कारखाने में काम किया था, लेकिन वहां पर गन्दगी के कारण वो टीबी के मरीज़ हो गए थे और तब से दवाई खा रहे हैं। पिछले साल जब लॉकडाउन लगा था तब वो अपने गाँव वापस आ गए थे और 3- 4 महीने पहले ईंट के भट्टे में काम करना शुरू किया था। उनका कहना है कि दोबारा लॉकडाउन लगने से उनका रोज़गार दोबारा से चला गया है और परिवार का पेट पालने के साथ-साथ उनका दवाइयों का भी काफी खर्चा है। ऐसे में उन्हें सबसे ज़्यादा यह चिंता है कि उनका घर-खर्च कैसे चलेगा? चुराना ने बताया कि पिछले साल भी श्रमिकों के लिए जो योजनाएं चलाई गई थीं उन्हें उसका भी लाभ नहीं मिला था, इस समय उनकी आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि वो लॉकडाउन में भी काम की तलाश में रोज़ बाहर निकलते हैं लेकिन खाली हाँथ ही घर लौटना पड़ता है।

इस गाँव के कई मज़दूरों ने यह भी बताया कि शहर में जिन-जिन जगहों पर वो काम करते थे, वहां उन्हें कई महीनों का वेतन भी नहीं मिला था, और दोबारा लॉकडाउन लगते ही उनके मालिकों ने उन्हें काम से भी निकाल दिया। यह लोग जैसे-तैसे अपने गाँव तो लौट आए हैं लेकिन इनको हर दिन रोज़गार की तलाश में इधर उधर भटकना पड़ रहा है। गाँव के राजू का कहना है कि बाहर निकलते भी डर लगता है कि अगर कोरोना वायरस की चपेट में आ गए तो इलाज कराने के पैसे भी नहीं हैं, लेकिन परिवार का पेट पालने की खातिर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।

वो कहते हैं न कि जब परेशानी आती है तो चारों ओर से आती है। कुछ ऐसा ही हुआ है भारत देश के साथ! अभी हम कोरोना वायरस की पहली लहर से पूरी तरह निकल भी नहीं पाए थे कि दूसरी लहर ने देश को घेर लिया। जहाँ हर रोज़ देश की स्वास्थ्य प्रणाली ध्वस्त होती नज़र आ रही है और लोग अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड की कमी से दम तोड़ रहे हैं वहीँ देश का गरीब भुखमरी का शिकार हो रहा है। सोचने वाली बात तो यह है कि सरकार के पास पूरे एक साल का समय था इन सभी व्यवस्थाओं को सुधारने का, तो फिर क्यों आज भी हम वहीँ खड़े हैं जहाँ एक साल पहले थे? अगर अब सरकार ने जल्द से जल्द इस महामारी ने निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए, तो हमारे देश को यह वायरस पूरी तरीके से नष्ट कर देगा।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए सहोद्रा द्वारा रिपोर्ट एवं फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।