खबर लहरिया जिला मोहन साहू और शालिनी पटेल, राजनीति के शिकार तो नहीं? राजनीति, रस, राय

मोहन साहू और शालिनी पटेल, राजनीति के शिकार तो नहीं? राजनीति, रस, राय

नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ मीरा देवी, खबर लहरिया की ब्यूरो चीफ। मेरे शो राजनीति रस राय में आपका बहुत बहुत स्वागत है। एक बार फिर हाजिर हूँ आपके साथ गर्मागर्म राजनीतिक चर्चा के लिए तो आइए फिर देर किस बात की, शुरू करते हैं। या समय राजनीति का लइके बांदा मा का चल रहो है या तौ तुम्हैं पतै होई न।

अगर आप लोग मुझसे जानना चाहते हैं तो वह मुद्दे हैं कथित रूप से पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता शालिनी पटेल का। असल में बात यह है कि पन्द्रह अगस्त के दिन अटल सरोवर में राष्ट्रगान के बीच से ही विधायक और सांसद चलते बने। शालिनी पटेल इस मामले को लेकर उग्र हो गई और आंदोलन छेड़ दिया। जब वह इस केश को जिले के आला अफसरों तक ले गई तो पुलिस ने उन्हें ही जेल भेज दिया। हालांकि वह अब जेल से बाहर हैं और धरने में बैठी हैं। देखते हैं पुलिस आगे किस तरह की कार्यवाही करने को मजबूर होती है। क्योकि ये तो साफ है कि यह मुद्दा देश के सम्मान का है लेकिन पुलिस मजबूर हो गई सांसद विधायक के सम्मान और गरिमा को बचाने में। ऊपर से यही है नारी के सम्मान में, bjp मैदान में…..

आइए आगे ले चलूं नगर पालिका अध्यक्ष मोहन साहू के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर जिस तरह का राजनीतिक पैतरा खेला गया उसको लेकर। खैर ये तो देखने को मिला कि जिले के अंदर सरकार चलाने में सपा और बीजेपी की कड़ी टक्कर मोहन साहू के चुनाव लड़ने के समय से ही शुरू हो गई थी। bjp के दिग्गज नेता इस सीट को कदापि अपने हाथ से नहीं जाने देना चाह रहे थे जिसमें खुद सभासद भी कुछ शामिल थे लेकिन बांदा की जनता और व्यापारिक संगठन ने मोहन साहू को ही अपना अध्यक्ष चुन लिया। अध्यक्ष की कुर्सी में बैठते ही मोहन साहू को कुर्सी से नीचे उतरने के पैतरे जारी हो गए थे। लेकिन अध्यक्ष की लोकप्रियता के कारण अध्यक्ष की कुर्सी गिर ही नहीं रही थी। हालांकि अब मोहन साहू के सारे वित्तीय अधिकार सीज हो चुके हैं और आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है।

मोहन साहू कहते हैं कि बीजेपी पार्टी में शामिल होने का दबाव बनाया गया था। उस समय उनको दो बातें कही गई थी कि छह महीने के अंदर नगर पालिका अध्यक्ष भाजपा ज्वाइन करेंगे या फिर अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ेंगे। वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि यह बात उन्होंने उस समय क्यों नहीं उजागर की जब उनको यह बात कही गई थी और जब उनके ऊपर भृष्टाचार का आरोप आया तब वह ऐसी बाते क्यों कर रहे हैं। दूसरी तरफ नगर पालिका के सभासदोनों ने ढोल नगाड़ों और पटाखों के साथ अध्यक्ष की कुर्सी जाने का जश्न पालिका परिसर के अंदर मनाया। बताया जा रहा है कि जिन सभासदों ने ऐसी हरकत की है वह सब अध्यक्ष के विरोधी या यूं कहें भाजपा समर्थक सभासदों का मुख्य हाथ था।

इन दोनों मामलों को लेकर मौजूदा सरकार की बौखलाहट इतनी तेज है कि उसका सीधा संबंध विधानसभा चुनाव 2022 से जोड़ा जा रहा है। यह आवाजें लखनऊ के आईएएस अधिकारी अमित ठाकुर तक ही नहीं सीमित बांदा जैसे छोटे शहरों और गांवों में भी सुनाई देती है। भाजपा की टक्कर पार्टियों से तो होती ही रहती हैं लेकिन अब व्यक्ति विशेष से भी कड़ी टक्कर शुरू हो चुकी है। बांदा में जो शालिनी पटेल और मोहन साहू के साथ हुआ उन मामलों में दूध का दूध और पानी का पानी कौन करेगा? इन दोनों को किससे न्याय की उम्मीद है? क्या इनको न्यायालय की शरण लेनी पड़ेगी?

साथियों इन्हीं विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा, अगली बार फिर आउंगी एक नए मुद्दे के साथ। अगर ये चर्चा पसन्द आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। लाइक और कमेंट करें। अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। बेल आइकॉन दबाना बिल्कुल न भूलें ताकि सबसे पहले हर वीडियो का नोटिफिकेशन आप तक सबसे पहले पहुंचे। अभी के लिए बस इतना ही, सबको नमस्कार!

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