खबर लहरिया Blog 72 साल के मुस्लिम व्यक्ति की मारपीट में सांप्रदायिक हिंसा नहीं-पुलिस, पत्रकारों और ट्विटर पर एफआईआर दर्ज़

72 साल के मुस्लिम व्यक्ति की मारपीट में सांप्रदायिक हिंसा नहीं-पुलिस, पत्रकारों और ट्विटर पर एफआईआर दर्ज़

पुलिस ने कहा कि 72 साल के अब्दुल समद सैफी मामले में कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं है। घटना को शेयर करने वाले समाचार संगठन, पत्रकार और ट्विटर पर एफआईआर दर्ज़।

फोटो क्रेडिट – द क्विंट

यूपी के गाज़ियाबाद में कुछ समय पहले एक 72 साल के मुस्लिम व्यक्ति को पीटे जाने का वीडियो वायरल हुआ था। जिनका नाम अब्दुल समद सैफी बताया गया। कई लोगों द्वारा मामले को सांप्रदायिक घटना का नाम दिया गया व बहुत लोगों ने घटना के वीडियो को अन्य सोशल मिडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर भी किया।

इन सब बातों और आरोपों से इंकार करते हुए यूपी के गाज़ियाबाद में पुलिस ने मंगलवार, 15 जून को नौ संस्थाओं के खिलाफ प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज़ की। जिसमें ट्विटर इंक, ट्विटर कम्युनिकेशंश इंडिया प्राइवेट शामिल थी। यह कहा गया क्यूंकि इन संस्थाओं ने वीडियो को वायरल होने से रोकने के लिए कोई कार्य नहीं किया इसलिए उन पर रिपोर्ट दर्ज़ की गयी है।

गाज़ियाबाद पुलिस का बयान

समाचार एजेंसी एएनआई ने बताया कि गाजियाबाद पुलिस ने अपने नोट में कहा कि, “लोनी की घटना का कोई सांप्रदायिक कोण नहीं है। जहां एक व्यक्ति की पिटाई की गई और उसकी दाढ़ी काट दी गई।”

इन पर हुई एफआईआर

गाज़ियाबाद पुलिस ने, द वायर, राणा अय्यूब, मोहम्मद जुबैर, डॉ शमा मोहम्मद, सबा नकवी, मस्कूर उस्मानी, सलमान निज़ामी के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ की। पुलिस ने कहा कि “इन व्यक्तियों ने तथ्य की जांच किये बिना घटना को ट्विटर पर सांप्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया। इससे शांति भी भंग हुई और इससे धार्मिक समुदायों के बीच मतभेद को फैलाया गया।”

यह है पूरी घटना

जब अब्दुल समद सैफी दोपहर के समय यूपी के गाज़ियाबाद के हाजीपुर भेटा के रास्ते जा रहे थे। उसी समय एक युवा ऑटो चालक ने उन्हें ऑटो से निश्चित स्थान तक पहुंचाने की आड़ में उनका अपहरण कर लिया। जिसके कुछ समय बाद ही हिंसा की घटना को घंटो तक अंजाम दिया गया।

सैफ़ी ने घटना के बारे में बताया और आरोप लगाया कि पांच लोगों ने उनका अपहरण किया था। उन्हें बेरहमी से लात-घूसा मारा गया और उनकी पिटाई की गयी। उनके सिर पर पिस्तौल रखी और उनके पास मौजूद 1,200 रुपये चुरा लिए। उन्हें जय श्री राम शब्द कहने को मज़बूर किया गया। उनकी दाढ़ी काट दी गयी।

वह आगे बताते हैं कि अपहरणकर्ताओं ने उन्हें वीडियो दिखाया जिसमें उन लोगों द्वारा मुस्लिम लोगों पर पहले भी हमला किया गया था। अपहरणकर्ताओं ने सैफ़ी से कहा कि उन लोगों ने पहले भी कई मुस्लिमों को मारा है।

इन धाराओं के तहत हुई रिपोर्ट दर्ज़

पुलिस द्वारा धारा 342 (गलत कारावास), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुँचाना), 504 (आपराधिक धमकी), 506 (अपमानजनक रूप से धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने के लिए जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण कार्य करना) और भारतीय दंड संहिता के धर्म या धार्मिक विश्वास के तहत प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज़ की गयी।

आरोपी और पीड़ित में था संबंध – पुलिस

पुलिस ने अपनी प्राथमिक नोट में कहा कि, “अब्दुल समद सूफी और आरोपी परवेश गुर्जर एक-दूसरे को लंबे समय से जानते हैं। पीड़ित ने मुख्य आरोपी को इस वादे के साथ एक ताबीज बेचा कि इससे उसे समृद्धि मिलेगी। लेकिन उसने (परवेश) शिकायत की कि इसका उसके परिवार पर उल्टा असर पड़ा। जब ताबीज ने काम नहीं किया, तो आरोपी ने गुस्सा किया और पीड़ित को पीटा, ”एएनआई ने बताया।

मामले की जांच करने की जगह पुलिस द्वारा मामले का निपटारा करना नज़र आ रहा है। साथ ही जिन पांच आरोपियों के बारे में पीड़ित ने बताया। उनके बारे में पुलिस द्वारा कुछ नहीं कहा गया बल्कि इस जगह घटना को आपसी रंजिश का मोड़ दे दिया गया। यहां तक की जिन पत्रकारों, समाचार वेबसाइट ने इन खबरों को आगे शेयर किया। उनके खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज़ की गयी। क्या इसे बात रखने की आज़ादी कहा जाता है? जहां पक्ष रखने पर आप पर ही आरोप लगाकर आपको गुनेहगार ठहरा दिया जाए।

ऐसा पहली बार नहीं है कि यूपी पुलिस ने पत्रकारों या समाचार चैनेलो पर एफआईआर दर्ज़ की हो। यूपी के हाथरस मामले में जो पत्रकार रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे थे। उन पत्रकारों पर भी यूपी पुलिस द्वारा झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया था। यहां तक की मामले को लेकर पुलिस द्वारा यह भी नहीं कहा गया कि वह मामले की जांच करेगी। किसी व्यक्ति को बिना उसकी मंज़ूरी के अगवा कर लेना, फिर उसके साथ दुर्व्यवहार करना। क्या ये आपराधिक हिंसा का मामला नहीं है ? फिर इसे सिर्फ आपसी संबंध के झगड़े का कोण किस प्रकार से दिया जा सकता है?

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