खबर लहरिया Blog चित्रकूट : कहाँ गया 15 सालों का बजट? क्यों नहीं हुआ तालाबों का सुंदरीकरण?

चित्रकूट : कहाँ गया 15 सालों का बजट? क्यों नहीं हुआ तालाबों का सुंदरीकरण?

ग्रामीण अपने दैनिक कार्यों के लिए तालाब के पानी पर निर्भर करते हैं लेकिन जब वह पानी भी दूषित हो तो वे कहां जाएं?

            मज़बूरी में इस गंदे तालाब से ही ग्रामीण करते हैं पानी से जुड़े दैनिक कार्य

चित्रकूट जिले के मऊ ब्लॉक गांव सुरौधा,छिवलहा,मन्डौर मजरा भिटरिया ,ददरी मजरा पुरा के तालाबों की सफाई पिछले 15 सालों से नहीं हुई हैं। जो घाट बना था वह भी अब टूट-फूट गया है। इस समय बरसात का सीज़न है और घाट में बिच्छू घुस जाते हैं। घटना का डर बना रहता है। पानी इतना गन्दा है कि उसमें नहा लेने से लोगों को खुजली होने लगती है। शरीर पर बड़े-बड़े दाने निकल जाते हैं। गर्मी के सीज़न में तालब के पानी में गांव के लोग नहाते-धोते हैं और लगभग हजारों लोग इस समास्या को झेलते है।

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हज़ार लोगों में एक हैंडपम्प

         हज़ार लोगों में एक हैंडपंप, आस-पास खीचड़ होने से हमेशा बना रहता गिरने का डर

 

सुरौधा गांव के पवन, शोभा, शैल कुमारी, छिवलहा गांव के सुखिया, देवकली, राजकुमार, भिटरिया से सूरजकली, मोनू गांव ददरी मेला पुरा के राजकुमार, सुमन आदि लोगों का कहना है कि हज़ारों लोगो में एक हैण्डपम्प है। जब हैण्डपम्प बिगड़ जाता है तो उन्हें मजबूरी में तालाब के पानी से ही नहाना और कपड़े धोना पड़ता है।

तालाब के पास घाट बनवाने की मांग

इस तरह की स्थिति को देखते पीढ़ी बीत गई। लोगों का कहना है कि जब तालाब का पानी साफ़ होता है तो उसी से घर के सारे काम होते हैं। यह पानी जानवरों को भी पिलाते हैं। लोग कपड़े,बर्तन आदि के लिए तालाब का पानी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन नहाने के लिए अभी तक घाट नहीं बना है। तालाब के आस-पास कीचड़ होने से बच्चे, बुज़ुर्ग गिर जाते हैं। वह कहतें हैं कि अगर तालाब के पास घाट बन जाये तो उन्हें नहाने-धोने में आराम मिल जाएगा।

एक घाट बहुत ही पुराना है लेकिन अब वह भी पूरी तरह से टूट गया है। तालाब तकरीबन 40 बीघा में बना है। लोगों के अनुसार, इस तालाब का पानी कभी नहीं सूखता। बारहों महीने तालाब में पानी भरा रहता है।

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बजट आता है और खर्च हो जाता है

आपको बता दें, तालाब के सुन्दरीकरण के लिए हर ग्राम पंचायत में बजट आता है। लेकिन यहां पर कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता है। जब चुनाव आते हैं तो वोट के लिए झूठा वादा किया जाता है।

चुनाव के समय कहा जाता है कि, ‘मैं जीत जाऊंगा तो गांव का विकास करवा दूंगा’ पर जब जीत जाते है तो गांव की तरफ कोई झांकने तक नहीं आते की गांव का क्या हाल है।
सरकार की तरफ से बजट भी आ भी जाता है पर कोई ध्यान नहीं देता। बजट आता है तो कहां खर्च होता है? किधर जाता है? ऐसे कई सवाल सामने आते हैं पर जवाब कुछ नहीं होता।

क्या कहती हैं सुरौधा गांव की प्रधान?

सुरौधा गांव की प्रधान मैना देवी कहती हैं कि उनके ग्राम पंचायत में दो तालाब हैं। उनकी तरफ से तालाब के सुंदरीकरण और सफाई के लिए बजट का प्रयास किया जा रहा है। जल्द ही वह यह कार्य करवाएंगी।

बजट आने पर होगा काम – एडीओ

एडीओ पंचायत सन्तोष का कहना कहना है कि मऊ ब्लॉक में 56 ग्राम पंचायत है। सभी में दो या एक तालाब है। कुछ तालाबों की साफ-सफाई और सुन्दरीकरण के लिए एस्टीमेंट बना के भेजना है ताकि उसकी सफाई हो जाये और कुछ घाट भी बन जाये। इसके बाद तालाब का ही काम करवाया जायेगा। वह आगे कहते हैं कि ददरी गांव और सुरौधा में दो तालाब है। जब बजट आयेगा तो तालाबों की साफ-सफाई और सुन्दरीकरण का कार्य किया जायेगा।

अब भी अधिकारी कार्य के लिए बजट का इंतजार कर रहे हैं। जबकि पिछले 15 सालों में कभी-भी तालाब की साफ-सफ़ाई को लेकर कोई कार्य नहीं करवाया गया। फिर इतने सालों का बजट कहाँ गया? उसका इस्तेमाल कहाँ किया गया? जब घाट ही नहीं बने, तालाब भी गन्दे पड़े हुए हैं तो बजट का पैसा कहां खर्च हुआ? अधिकारियों ने अपने रिकॉर्ड में इतने सालों का क्या ब्योरा डाला?

इस खबर की रिपोर्टिंग सुनीता देवी द्वारा की गयी है।

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