खबर लहरिया Blog बांदा: हाईवे से लेकर मेन रोड की सड़कों की हालत हुई जर्जर, गड्ढा मुक्त अभियान का लाभ कैसा?

बांदा: हाईवे से लेकर मेन रोड की सड़कों की हालत हुई जर्जर, गड्ढा मुक्त अभियान का लाभ कैसा?

जहाँ एक तरफ सरकार गड्ढा मुक्त अभियान चलाने की बात करती है, तो वहीं मैं रोड पर मौजूद ये बड़े-बड़े गड्ढे सरकार के इस गड्ढा मुक्त अभियान को आइना दिखा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में सड़कों की हालत दिन पर दिन खस्ताहाल होती जा रही है। अगर हम बात करें बांदा जिले की तो यहाँ की मेन रोड जो बांदा-कानपुर को जोड़ती है और बिसंडा की ओर जाती है, उस रोड की स्थिति ऐसी है कि वहां से लोगों का निकलना मुश्किल हो रहा है। बारिश होते ही सड़कों के गड्ढे एक छोटे तालाब में तब्दील हो जाते हैं। बांदा के लोगों की मानें तो उन गड्ढों में आप मछलियां तक पाल सकते हैं।

जहाँ एक तरफ सरकार गड्ढा मुक्त अभियान चलाने की बात करती है, तो वहीं मैं रोड पर मौजूद ये बड़े-बड़े गड्ढे सरकार के इस गड्ढा मुक्त अभियान को आइना दिखा रहे हैं।

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3 घंटे के फासला हो रहा 5-6 घंटे में पूरा-

अगर हम बात करें बांदा-कानपुर मार्ग तो यह मेन हाईवे है जहां से हर रोज हजारों वाहन निकलते हैं और कानपुर के लिए सरकारी बसें भी काफी मात्रा में चलती हैं। लेकिन सवारियों को और गाड़ी वालों को उस रोड से जाने में बड़ी ही मशक्कत का सामना करना पड़ता है।

खबर लहरिया की चीफ रिपोर्टर गीता देवी ने हाल ही में इस सड़क पर यात्रा करने के अपने अनुभव को हमारे साथ साझा करते हुए बताया कि उन्हें 4 अक्टूबर को एक जरूरी काम से कानपुर जाना था, जिसके लिए उन्होंने एक गाड़ी बुक की थी। लेकिन जब उस गाड़ी वाले से कानपुर चलने के लिए बोला तो उसने कहा कि वो गाडी बांदा-कानपुर की मेन रोड से न ले जाकर फतेहपुर की ओर से जाएगा। भले ही यह रास्ता उल्टा होने के कारण होने के कारण दूरी ज्यादा होगी, लेकिन वह रोड फिर भी इस रोड से अच्छी है।

इस रोड पर यात्रा कर रहे गाड़ी चालक कहते हैं कि इस सड़क परगाड़ी चलाने से वाहनों को भी नुकसान होता है। बस चालक बताते हैं कि बांदा से कानपुर तक के सफर में वैसे तो 3-3:30 घंटे लगते हैं, लेकिन सड़क ख़राब होने के चलते यही सफर 5 घंटे से ऊपर का हो जाता है। जो लोग चिल्ला ललौली हो कर कानपुर की यात्रा करते हैं वह बसों में 4 घंटे की जगह 6 घंटे में भी मुशकिल से पहुंच रहे हैं और कई बार तो रोड पर ही बस खराब हो कर खड़ी हो जाती है, जिससे लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। घंटों दूसरे वाहन का इंतजार भी करना पड़ता है।

लोगों का कहना है कि सरकार जिस तरह से बड़े बड़े वादे करती है और गड्ढा मुक्त सड़कों की बात करती है,यहां पर तो उसकी सच्चाई कुछ और ही नजर आ रही है। गड्ढा मुक्त सड़कें तो तब मानी जाएंगी जब कहीं भी सड़कों में गड्ढे नजर ना आएं। कहते हैं न कि यह तो बुंदेलखंड है यहां तो समस्याओं का ढेर लगा हुआ है, और हकीकत में भी बुंदेलखंड की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। खासकर यह गड्ढा मुक्त सड़कें हर रोज लोगों को रूला रही हैं, चाहे वह मेन हाईवे हो या मेन रोड से गाँव के अंदर जाने वाली सड़कें।

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बारिश में सड़कों पर मौजूद गड्ढे बन जाते हैं तालाब-

ओरन गाँव के रामकरण अदर्शी बताते हैं कि उनके यहां की सड़कें भी बहुत ज्यादा जर्जर हैं। काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है अगर वह बात करते हैं मेन बाजार की तो वहां पर भी सड़कों में बड़े-बड़े गड्ढे हैं जिससे धूल उड़ने पर दुकानदारों का सामान खराब हो जाता है और वही गर्दा भरा सामना हम आप सभी लोग खरीद कर खाते हैं, जिससे स्वस्थ्य पर भी असर पड़ता है और बारिश होने पर सड़कों में बने गड्ढे तालाबों में तब्दील हो जाते हैं। कई बार लोगों ने विभाग के अधिकारियों से शिकायत की और मांग की कि यह सड़कें बनवाई जाएँ, लेकिन यहाँ किसी भी तरह की कोई कार्यवाही नहीं होती है।

प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई सड़कों को भी हुई दुर्दशा-

इसी तरह बांदा जिले के अंतर्गत आने वाले मोहन पुरवा गांव के प्रेम और कमला बताते हैं कि उनके यहां का रास्ता भी बहुत ज्यादा खराब है और आने-जाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वह बताते हैं कि उनके यहां की सड़क प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत बनाई गई थी और सड़क बने लगभग 4 साल हो गए लेकिन 1 साल से यह सड़क पूरी तरह से ध्वस्त हो गई है। यहां पर बड़े-बड़े ट्रकों का आवागमन होता है, इसलिए सड़क जल्दी खराब हो गई है।

सड़क में बडे़ बडे़ गड्ढे होने के कारण जब गाँव से सवारियां ऑटो में बैठ कर आती हैं, तो गड्ढो में गाड़ी उछल जाती है और सवारियों को चोट भी आ जाती है।
मोटरसाइकिल और साइकिल वाले तो आए दिन गिरते हैं और चोट खाते हैं। उन्होंने बताया कि यह रास्ता बांदा-महोबा मेन हाईवे से गाँव के अंदर जाने का रास्ता है जिसकी दूरी लगभग 15 किलोमीटर होगी और इस बीच रास्ते में 5 गाँव पड़ते हैं, जिनका आवागमन इसी रास्ते से होता है। कहीं-कहीं तो सड़क का नामोनिशान भी नहीं दीखता सिर्फ बड़े-बड़े गड्ढे ही नजरआते हैं।

नरैनी चौराहे की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। मेन चौराहे में दिनभर वाहन चलते हैं और वहां बड़े-बड़े गड्ढे होने के कारण काफी धूल उड़ती है। इसी के चलते लोगों को भी मुंह और सिर ढक कर ही यहाँ से निकलना पड़ता है। लोगों ने बताया कि यह सड़क चौड़ीकरण के चलते बन रही है, जिसमें अगल बगल से भी बहुत ज्यादा खुदाई हुई है। लोगों की मानें तो अभी इसे बनने में भी समय लगेगा और तब तक लोगों को ऐसे ही परेशानी झेलनी पड़ेगी।

विभाग की ये है दास्तान: पांच अरब की दरकार, मिले सिर्फ 1.40 करोड़-

बुंदेलखंड में प्रदेश सरकार का गड्ढा मुक्त सड़क अभियान कुछ ऐसा ही है। यहां पांच जिलों बांदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट और जालौन में 2308 किमी लंबी 725 सड़कों को गड्ढा मुक्त किया जाना है। पीडब्ल्यूडी ने इनकी सूची तैयार कर ली है,। लेकिन अभियान शुरू हुए 15 दिन बीत गए और शासन से अभियान के लिए लागत का एक फीसदी भी बजट नहीं मिला। कार्यदायी संस्थाओं के एस्टीमेट के मुताबिक, लगभग पांच अरब चार करोड़ 76 लाख रूपए लागत आएगी। शासन से अब तक सिर्फ दो जनपदों को मात्र एक करोड़ 44 लाख रूपए मिले हैं। यह कुल एस्टीमेट का आधा फीसदी भी नहीं है। बांदा जिले को मात्र 52 लाख और हमीरपुर जिले को 92 लाख रूपए उपलब्ध कराए गए हैं। अन्य जनपदों में अब तक बजट जारी नहीं हुआ है।

कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने 15 सितंबर से 15 नवंबर तक अभियान चलाकर प्रदेश के सभी शहरी व ग्रामीण सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के निर्देश दिए हैं, लेकिन बजट के अभाव में कार्यदायी संस्थाओं के अधिकारी सांसत में हैं। एक तरफ मुख्यमंत्री के फरमान को पूरा करना और दूसरी तरफ बिना पैसे के काम कराना। कुछ कार्यदायी संस्थाओं के अधिकारियों ने तो अपनी शामत बचाने के लिए बगैर बजट ही टेंडर आदि की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उनका कहना है कि बजट आने पर भुगतान कर दिया जाएगा,आशीष सागर (पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता ) की रिपोर्ट।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए गीता  देवी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

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