खबर लहरिया जवानी दीवानी बदनाम हो, पर गुमनाम ना हो – लोकप्रियता के नाम पर कुछ भी चलता है

बदनाम हो, पर गुमनाम ना हो – लोकप्रियता के नाम पर कुछ भी चलता है

ऐसा क्यों है की आंटी की घंटी और ऐसे अन्य भद्दे गाने इतने लोकप्रिय हो जाते हैं? क्या इसमें सिर्फ कलाकार ही दोषी है? पिछले दिनों ओम प्रकाश मिश्रा नाम के एक युवक का गाना ‘आंटी की घंटी’ सोशल मीडिया में खूब चला, लेकिन अश्लील होने के साथ इस गाने को लेकर विवाद भी बहुत हुए। हम यहां उन विवादों पर बात नहीं करना चाहते हैं। हम इन गानों को बनाने वालों की सोच और इनके चलने के पीछे की वजहों पर बात करेंगे। इन गानों को बनाने और गाने के पीछे एक बड़ा मकसद सिंगर का एक रात में मशहूर होने का सपना है, जो काफी हद तक पूरा भी होता है। आपको याद हो तो हनी सिंह, बादशाह, रफ्तार ऐसे ही सोच की उपज हैं।

साभार: यूट्यूब

इस तरह के गानों को सुनने और चलाने वाले वहीं लोग हैं, जो बलात्कार की घटना की आलोचना करते हैं। हालांकि इस अपराध में मैं भी कुछ हद तक शामिल हूँ, क्योंकि इस लेख को लिखने के लिए मैंने भी इन गानों को सुना। इन गानों में महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणायां होती हैं, साथ ही बहुत से दो अर्थ वाली बातें। ये गानें महिलाओं को एक खास मकसद (संभोग) में तुष्टि देने वाली सोच को भी दिखाते हैं।  आंटी की घंटी गाने को गाने वाला ओम प्रकाष मिश्रा अकेले ऐसे महाशय नहीं हैं बल्कि यो-यो हनी सिंह, रफ्तार, बादशाह जैसे रॉक स्टार भी इस जमात में हैं, जिनके ‘बलात्कारी’ और ‘वॉल्यूम 1’, ‘वॉल्यूम 2’ जैसे गाने अपनी गंदगी के लिए बदनाम हैं। बदनाम से याद आया कि एक कहावत हैं, ‘नाम हो, बदनाम हो पर गुमनाम मत हो’, सो इस कहावत को ये गानें और इनके सिंगर अच्छे से इस्तेमाल कर रहे हैं।

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हमारा भारतीय सिनेमा यानी बॉलीवुड में भी ऐसे गाने हैं, यहां तो इन गानों में ठुमका भी हमारी अभिनेत्रियां लगाती हैं, जो खुद को सशक्त और महिला हितों की हितौषी कहती हैं। इस लिस्ट में करीना कपूर अपने आइटम सांग फेवरिकॉल से के साथ सबसे ऊपर हैं, जहां वो खुद को तंदुरी मुर्गी बताते हुए एल्कोहोल से गटकाने की बात कहती हैं। तो दूसरी तरफ चित्रांगदा सिंह हैं, जो कुण्डी न खटकाने की बात कहती हैं। ये अभिनेत्रियां तो ठुमका लगाकर इस बात को यहीं खत्म कर देती हैं, लेकिन सड़क पर चलने वाली लाखों औरतों का क्या जो इस तरह के गानों को शोहदे के मुंह से खुद के लिए सुनती हैं। सलमान खान का ‘बेबी को बेस पसंद है’, ये गाना तो हर बच्चे के मुंह में चढ़ा हैं, जो बिना अर्थ जाने इस गाने को गाते हैं।
रफ्तार का नया गाना ‘बेबी मरवा के मानेगी’ भी एक अर्थ के साथ दूसरा अर्थ दे रहा हैं, जहां एक चंचल स्वभाव की लड़की को रफ्तार अपनी सेक्स फीलिंग को बढ़ाने वाली बता रहा है। इस तरह के बहुत से गाने हैं, जो महिलाओं को एक खास चीज के लिए बनाकर गाये जाते हैं और कहीं न कहीं महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लिए ये जिम्मेदार भी होते हैं। इस लेख का उदेश्य सिर्फ इस तरह के गानों को रोकना ही नहीं, बल्कि महिलाओं को लक्ष्य बनाकर उसे संभोग की वस्तु बनाने से रोकना भी है। तो अगली बार जब ये गानें आए तो उन्हें पसंद और नापसंद करके मशहूर बनाने से रोकिए क्योंकि अगर ये गानें मशहूर नहीं होंगे तो बनेंगे भी नहीं।

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