खबर लहरिया राजनीति धान की सरकारी खरीद में घोटाला

धान की सरकारी खरीद में घोटाला

(फोटो साभार - पलपल इंडिया डाट काॅम)

(फोटो साभार – पलपल इंडिया डाट काॅम)

नई दिल्ली। धान की सरकारी खरीद और मिलिंग यानी दराई में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने करीब पचास हज़ार करोड़ के घपले वाली एक रिपोर्ट 8 दिसंबर को संसद में पेश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धान खरीद से लेकर चावल मिलों में दराई होने तक दर्जन भर से ज़्यादा घपले हुए हैं।
उप-उत्पादों से मिलों को लाभ
रिपोर्ट के अनुसार, धान की दराई के दौरान चावल के अलावा निकलने वाले अन्य उत्पादों की कीमत, जिनमें धान का भूसा और छिलका शामिल हैं, चावल मिलों ने बहुत कम तय की। इनकी कीमतों में साल 2005 में बहुत बढ़ोतरी की गई थी। मगर इस बढ़ी हुई कीमत के अनुसार उप-उत्पादों की कीमत नहीं लगाई गई। नतीजा यह हुआ कि सिर्फ चार राज्यों – आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में ही 2009-10 से 2013-14 के दौरान मिलों ने उप-उत्पादों से 3,743 करोड़ रुपए का लाभ कमाया।
कैसे होती है खरीद
भारतीय खाद्य निगम राज्य की एजेंसियों की मदद से किसानों से धान खरीदता है और सरकारी या निजी मिलों से मिलिंग कराकर चावल वापस लेता है। इसके बदले मिलों को मिलिंग यानी दराई का खर्चा दिया जाता है। लेकिन धान का छिलका, टूटा चावल और भूसी जैसे उप-उत्पाद भी मिलों के पास ही रह जाते हैं। सरकार मिलों को इन उप-उत्पादों की कीमत काटकर भुगतान करती है। आरटीआई कार्यकर्ता गौरीशंकर जैन का कहना है कि इस प्रक्रिया में देशभर की धान मिलें उप-उत्पादों से सालाना करीब दस हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा की कमाई कर रही हैं।
हालांकि, खाद्य मंत्रालय का कहना है कि धान की मिलिंग के लिए जिन दरों पर भुगतान किया जाता है, वह मिलिंग की दरें उप-उत्पादों से मिलों को होने वाली कमाई को ध्यान में रखते हुए ही तय होती हैं। लेकिन कैग रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 2005 में उप-उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी की गई थी। मगर इन बढ़ी हुई कीमतों की जगह पुरानी कीमतों के आधार पर ही मिलों को सरकारी भुगतान किया गया।
न्यूनतम समर्थन मूल्य भुगतान में गड़बड़ी
कैग ने न्यूनतम समर्थन मूल्य के भुगतान में भी कई गड़बडि़यां र्पाइं। रिपोर्ट के अनुसार आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में भुगतान पाने वाले किसानों के नाम, पते, पहचान और बैंक खातों के बारे में सटीक जानकारी नहीं है। इससे करीब अट्ठारह हज़ार करोड़ रुपए का चूना सरकार को लगा।
नहीं वसूला ब्याज
पंजाब में सरकारी एजेंसियों ने वर्ष 2009-10, 2012-13 और 2013-14 के दौरान धान की मिलिंग और डिलीवरी में देरी के लिए मिलों से ब्याज नहीं वसूला। इससे मिलों को एक सौ उनसठ करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
नहीं लौटाया चावल
रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, हरियाणा, ओडि़सा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में धान मिलों ने कुल 7,570 करोड़ रुपए की मिलिंग या लेवी का चावल सरकारी एजेंसियों को वापस नहीं किया।
घटिया धान का पूरा भुगतान
वर्ष 2010-11 और 2013-14 के दौरान पंजाब की एजेंसियों ने बयासी लाख टन धान की खरीद की जिसकी कीमत 9,788 करोड़ रुपए थी। लेकिन खाद्य मंत्रालय के निरीक्षण में इस धान की गुणवत्ता मानकों से खराब पाई गई। फिर भी इसके लिए पूरा भुगतान किया गया।