हर साल सरकारी योजनाओं के तहत करोड़ों पौधे लगाने का दावा किया जाता है। बजट पास होता है, फोटोशूट होता है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है। बुंदेलखंड जैसे इलाकों में पौधे लग तो जाते हैं, लेकिन देखरेख की कमी, पानी की व्यवस्था न होना और पथरीली जमीन की वजह से ज़्यादातर पौधे सूख जाते हैं। यह रिपोर्ट दिखाती है कि कैसे सिर्फ आंकड़ों में हरियाली दिखती है, लेकिन धरती पर हालात सूखे ही हैं। क्या पौधारोपण सिर्फ एक वार्षिक रस्म बनकर रह गया है?
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