खबर लहरिया जासूस या जर्नलिस्ट मानसिक हिंसा का शिकार होती महिलायें देखिए जासूस या जर्नलिस्ट में

मानसिक हिंसा का शिकार होती महिलायें देखिए जासूस या जर्नलिस्ट में

जैसे की हम हर बार हत्या रेप दहेज़ हिंसा की बात करते है लेकिन आज हम बात करेंगे महिलाओं पर होने वाले मानसिक हिंसा की, वो भी उस बात पर जिसके लिए वो जिम्मेदार भी नहीं है। अगर हम ये कहें की सारे अपराध की वजह ही इस मानसिक हिंसा से शुरू होती है तो गलत नहीं होगा।

जी हाँ आज हम बात करेंगे हमारे देश में हो रहे लिंग भेदभाव की. जैसा की सब को पता है हमारे देश मे लड़कियों की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लिंग अनुपात प्रत्येक 1000 पुरूषों पर 943 महिलाएं थी,वहीँ उत्तर प्रदेश में 1,000 पुरुषों पर 912 महिलाएं है।

कारण हर किसी को लड़का चाहिए, लड़की नहीं। और इसके लिए जिम्मेदार महिलाओं को समझा जाता है. इस मामले को थोड़ा और गहराई से जानने के लिए हम उन महिलाओं से मिले जो इस हंसा का शिकार है मतलब जिनको बेटी होने के लिए प्रताड़ना और ताने सुनने पड़ते है. महिलाओं ने जो बताया उसे सुनकर हैरानी तो नहीं पर दुःख जरूर हुआ. जैसे लड़की होने पर उन्हें घर से निकाल दिया जाता है, लड़का पैदा करने के लिए उन्हें कई तरह की जड़ी बूटी खिलाई जाती है।नुक्कड़ नाटक के जरिए वाराणसी जिले में बढ़ती महिला हिंसा को रोकने की अपील

लड़की होने पर उनसे काम कराया जाता है। यहां तक कि लड़कियों को त्योहारों में या शादी विवाह पर ताने दिए जाते है। मरने के बाद कौन लाश को कंधा देगा, वंश कैसे चलेगा, वगैरा वगैरा। समाज और परिवार का दबाव होता है कि जब तक बेटा नही होता तब तक उन्हें बच्चे पैदा करना ही करना है। जिससे वो शारीरिक रूप से भी कमजोड़पड़ जाती है. कई बार तो उन्हें गर्भपात भी करना पड़ता है.

यह ऐसी हिंसा होती है जिसमे घाव तो नही दिखते है, पर हिंसा महिलाओ को अंदर से तोड़ देती है। न चाहते हुए भी वह एक और बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर होती है। हम आज 21 वी सदी में है जहाँ लड़का लड़की कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं। सरकार लड़कियों को बचाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम भी चला रही है। लेकिन इसका खास असर नहीं दिख रहा. लड़कियों और महिलाओ के प्रति हमेशा पुरुष सत्ता का रौब रहा है।

इस रौब के चलते महिला हमेशा हिंसा का शिकार हुई है। सवाल ये उठ रहे हैं कि हमारा समाज लड़कियों को देवी का रूप मानते है, और उन्ही से इतना भेदभाव कैसा? कहीं महिला हिंसा के बढ़ते आंकड़े घटता लिंगानुपात तो नहीं। क्योकि माँ पत्नी और बहु तो सबको चाहिए लेकिन बेटी और बहन नहीं।आख़िर घटता लिंगानुपात का जिम्मेदार कौन है ? जो समाज लड़का लड़की एक समान होने की बात करता है, वह गर्भपात जैसा गुनाह कैसे कर सकते है। ऐसे आकड़ो को देखकर तो ऐसे लगता है कि वही नही चाहते कि बेटियां हो। अगर आकड़ो में फासले बराबर नही हुए तो हर मिनिट में रेप जैसी घटना सुनने को मिलेगी।