खबर लहरिया Blog ज्ञानवापी मस्जिद : सामाजिक व धार्मिक मुद्दों के बीच अदालत व प्रमुखता

ज्ञानवापी मस्जिद : सामाजिक व धार्मिक मुद्दों के बीच अदालत व प्रमुखता

ज्ञानवापी मस्जिद / काशी विश्वनाथ मंदिर : मस्जिद के अंदर शिवलिंग पाया गया है और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जहां शिवलिंग पाया गया है उस जगह को सुरक्षित किया जाए।

देश में फिर हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की लड़ाई और चर्चा चल रही है। इस बार का मुद्दा है वाराणसी जिले का ज्ञानवापी मस्जिद / काशी विश्वनाथ मंदिर। ताज़ा खबर यह है कि मस्जिद के अंदर शिवलिंग पाया गया है और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जहां शिवलिंग पाया गया है उस जगह को सुरक्षित किया जाए। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि मुस्लिम श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो। अदालत द्वारा 20 मई को आगे की सुनवाई होगी।

मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई भारत जैसे विविधता वाले देश में बहुत समय से गहन होती जा रही है। लोग खुदा/ ईश्वर के नाम पर लड़ रहें हैं, उसे जानते नहीं, उसे देखा नहीं पर हाँ, ये लोग कहते हैं कि वह अपने भगवान, अपने खुदा के लिए लड़ रहें हैं। मनुष्य खुदा/ भगवान के लिए लड़ रहा है जिनका जीवन खुद भगवान भरोसे है।

ये मंदिर-मस्जिद की लड़ाई लड़ने वाले कोई कट्टर आस्तिक नहीं है, जो रात दिन राम-नाम जपते हैं या खुदा-खुदा कहते हैं पर हाँ, जब मंदिर-मस्जिद की बात आती है तो उनकी भक्ति, इनकी आस्था ज़रूर से जाग जाती है।

अगर इनसे कोई पूछ ले कि तेरा खुदा, तेरा भगवान क्या चाहता है तो वह शायद ही इसका जवाब दे पाएंगे लेकिन हाँ, यह लोग मंदिर-मस्जिद की लड़ाई ज़रूर लड़ेंगे।

देश इस समय, महामारी, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य, भुखमरी, क्राइम और न जाने ऐसे ही कितनी बड़ी-बड़ी समस्यायों से गुज़र रहा है और गुज़रता आ रहा है। जिस तरह से लोग आस्था के लिए लड़ रहें हैं, वैसी ऊर्जा सामाजिक मुद्दों के लिए……???

आस्था कोई सवाल नहीं है पर हाँ, आपकी आस्था, आपके विश्वास से क्या परिणाम आ रहा है या आएगा, ये ज़रूर सवाल है। मंदिर-मस्जिद की बात हो रही है तो मुझे एक कबीर का दोहा याद आ गया। यह बचपन में या अभी भी कई लोगों ने पढ़ी होगी। इस मामले में यह दोहा बहुत सही बैठता है।

मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में,
ना तीरथ में, ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में, ना मस्जिद में
ना काबे कैलाश में

मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में

ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं व्रत-उपास में
ना मैं क्रिया-क्रम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति -प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तो तुरंत मिल जाउं
इक पल की तलाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में।

अब यह विश्वास और मंदिर-मस्जिद का मामला इतना बड़ा हो गया कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को बाद के लिए टाल ही नहीं सकती, क्यों? लोग भी नहीं रुक सकते क्यूंकि अगर ये फैसला नहीं हुआ कि मस्जिद की जगह पहले मंदिर था तो वह न तो भक्ति कर पाएंगे और न ही नमाज़ अदा कर पाएंगे, क्यों? शायद यही बात है तभी तो मामले को इतनी गंभीरता से लिया जा रहा है।

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ज्ञानवापी मस्जिद :  लोग, अदालत और मामलें

credit – Business world

शाहीन बाग़ मामले में जहां दिल्ली नगर निगम द्वारा अतिक्रमण अभियान के तहत लोगों के घर गिराए जा रहें थे। उस समय जब लोगों ने याचिका डाल सुप्रीम कोर्ट की तरफ रुख किया तो अदालत ने साफ़ कह दिया कि वह इसमें कोई फैसला नहीं लेगी। जिसके बाद अदालत की मामलों की तरफ प्रमुखता का सवाल खड़ा होता है।

यही नहीं, हाल ही में दिल्ली बीजेपी के नेता रजनीश सिंह ने इलाहबाद हाई कोर्ट में ताजमहल के 22 कमरों को खोलने को लेकर याचिका डाली थी। कुछ हिन्दू समूह और प्रतिष्ठित संत ने स्मारक को शिव मंदिर होने का दावा किया है। इस पर भी अदालत की तरफ से बहुत जल्द सुनवाई हुई थी।

अब बात करते हैं देश में हो रहीं हिंसाओं की। महिलाओं के साथ रोज़ाना हिंसाएं होती हैं। सरकार, अदालत कहने को तो इन मामलों को प्राथमिकता देने की बात करती है। साल 2012 का निर्भया मामला, 2017 उन्नाव सामूहिक बलात्कार मामला, इन मामलों की सुनवाई में अदालत को सालों लग गए।

छत्तीसगढ़ की सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी, जिन्हें नक्सलवादियों के संबंध के झूठे मामले में 11 सालों तक रखा गया और इस साल 15 मार्च 2022 को उन्हें सारे झूठे आरोपों से बरी किया गया।

जिन मामलों में बिना देरी के सुनवाई की ज़रुरत थी, उन मामलों में अदालत को सुनवाई करने में सालों लग गए पर मंदिर-मस्जिद मामला आज भी सबसे पहले। लोगों के लिए भी और……

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ज्ञानवापी मस्जिद/ काशी विश्वनाथ मंदिर मामला : पूरा मामला

credit – OpIndia

– ज्ञानवापी मस्जिद/ काशी विश्वनाथ मंदिर मामला, इस समय

जानकारी यह है कि वाराणसी की अदालत ने मंगलवार 17 मई 2022 को अधिवक्ता-आयुक्त अजय कुमार मिश्रा को मीडिया से जानकारी शेयर करने की वजह से उनके पद से हटा दिया गया। अजय कुमार मिश्रा को काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के फिल्मांकन और सर्वेक्षण की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।

इसके साथ ही अदालत ने सर्वेक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए समिति (अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद) को दो और दिन का समय दिया है। इससे पहले सोमवार, 16 मई को वाराणसी की अदालत ने जिला प्रशासन को मस्जिद परिसर में उस जगह को सील करने का आदेश दिया था जहां वीडियोग्राफी के दौरान शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया था।

– 5 महिलाओं ने डाली थी याचिका

दिल्ली की पांच महिलाओं द्वारा एक याचिका दायर कर हिंदू देवी-देवताओं की दैनिक पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी, जिनकी मूर्तियाँ ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं।

– ज्ञानवापी मस्जिद/ काशी विश्वनाथ मंदिर – सबसे पहली याचिका

साल 1991 में वाराणसी की अदालत में एक याचिका दायर की गई थी जहां याचिकाकर्ताओं, स्थानीय पुजारियों ने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में पूजा करने की इज़ाज़त मांगी थी।

आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाई कोर्ट और वाराणसी कोर्ट के सामने कई याचिकाएं दायर की गई थीं जिसमें आरोप लगाया गया था कि 16 वीं शताब्दी में काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करके मुगल सम्राट औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण करवाया था।

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साल 2019 में ज्ञानवापी मस्जिद/ काशी विश्वनाथ मंदिर मामला आया था सामने

इण्डिया टूडे की रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने निचली अदालत में याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में अवैधता का दावा किया था। इसके साथ ही मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग की थी। यह मामला दिसंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद मामले के फैसले के बाद सामने आया था।

अप्रैल 2021 में वाराणसी की अदालत ने एएसआई को सर्वेक्षण करने और अपनी रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया था। हालाँकि, उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद चलाने वाली अंजुमन इंतेज़ामिया मस्जिद कमेटी ने विजय शंकर रस्तोगी की याचिका और मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी अदालत के आदेश का विरोध किया था।

इसके बाद यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचा और इसमें शामिल सभी पक्षों को सुनने के बाद एएसआई को सर्वेक्षण करने के निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया गया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार, कानून पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में किसी भी तरह के बदलाव पर रोक लगाता है, क्योंकि यह 15 अगस्त, 1947 से अस्तित्व में है।

मार्च 2021 में, भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने पूजा स्थल अधिनियम की वैधता की जांच करने पर सहमति जताई थी।

ज्ञानवापी मस्जिद/ काशी विश्वनाथ मंदिर मामले की अगली सुनवाई कल 20 मई को होनी है। सवाल वही है, प्राथमिकता क्या? जूझता देश या हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की लड़ाई?

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