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उन्नाव-किसानों की भावुक कर देने वाली दास्तान आखिर पुलिस ने क्यों लाठियों से मारा

जिला उन्नाव, गांव शंकरपुर सराय। किसानों की भावुक कर देने वाली दास्तान आखिर पुलिस ने क्यों मारा लाठियों से

यहां पर ट्रांस गंगा सिटी के नाम से किसानों की हजारों ह एकड जमीन पर सरकार ने कब्जा करके उस पर काम चालू कर दिया। इस परियोजना में लगभग 8 गांवों के किसानों की खेतिहर जमीन जा रही है। किसानों ने उस जमीन पर फसलें सरसों, गेहूं, मक्का, मूंगफली बोई थीं

जिसको प्रशासन ने जोतवा कर पूरी नष्ट कर दिया। मुआवजे के नाम पर तीसरी बार 12•51 लाख रुपए प्रति एकड तीन चार किस्तों में दे रही है। ये मुआवजा कम है ऊपर से बहुत किसानों को सभी किस्त नहीं मिली और प्रशासन ने काम चालू कर दिया। यह देख किसानों ने धरना प्रदर्शन कर अपनी सभी किस्त का भुगतान करने की मांग कर रहे थे। तभी उनके ऊपर लाठियां बरसाने लगी पुलिस

बीते 17 नवम्बर को प्रशासन भी भारी पुलिस बल के साथ धरना स्थल पर पहुंच गये। किसान और प्रशासन की बातचीत चल ही रही थी कि अचानक से बात बात में बहस होने लगी। बहस हाथापाई में शुरू हुई। भद्की प्रशासन ने पुलिस को फुल छूट दे दी तब पुलिस ने राड और लाठियों  से दौड़ा  कर मारा। महिला, पुरूष, जवान, बूढ़े और बच्चे किसी को नहीं छोड़ा।

ललितपुर: समाधान दिवस में किसानों का फूटा गुस्सालगभग 250 किसानों के खिलाफ पुलिस ने अज्ञात में मुकदमा लिखा। कई किसानों को जेल में बन्द कर दी। किसानों को पकड़ने के लिए पुलिस रात में घरों में छापामारी करती है। हमें बहुत लोगों ने बताया कि उन्के घर के लोगों का पता नहीं चल पा रहा कि कहां हैं। बूढ़े और बीमार मां बाप का सोच सोच कर हाल बुरा है कि आखिरकार उन्के बच्चे हैं कहां। रात दिन खाना पीना सोना रहना हराम है। लोग घर के अंदर कैद हैं इधर उधर नहीं जा पा रहे। पुलिस लगातार गांवों में डेरा डाले है गांव पुलिस छावनी में बदल गया है।

शेषनारायण बताते हैं कि 2003 में उनकी जमीन ले ली गई। लगभग 150 किसानों को मुआवजा नहीं दिया गया बाकी को साढ़े बारह लाख रुपये दिए गए। जबकि समझौता के समय बताया गया था कि साढ़े सात-सात लाख रुपये चार किस्तों में दिए जाएंगे। इस बात को लेकर धरना प्रदर्शन चल रहा था। जिसका नतीजा ये मिला कि पुलिस और पीएसी ने मिलकर पुलिस के ऊपर लाठियां बरसाना शुरू  कर दिया। लगभग 70 प्रतिशत किसान गायब हैं। घर में सिर्फ महिलाएं ही हैं। उनकी खुद दस बीघे खेतीहर जमीन चली गई। उसमें सरसों गेहूं मक्का और मूंगफली बोई थी। लगभग डेढ़ लाख की फसल बर्बाद कर दिया प्रशासन ने इसका भुगतान कौन करेगा। अब तक में हम नहीं जान पाए की आखिकार प्रशासन हमारी जमीन को छीनकर बनाना क्या चाहती है। पहले सुना था हमने कि यहां फैट्री बनेगी जिसमें सभी किसानों को नौकरी मिलेगी। अब सुनने में आ रहा है कि यहां स्मार्ट सिटी बनाकर बडे अमीर लोगों को प्लाट बेचेंगे। हमसे लाखों की कीमत में जमीन खरीदकर उसको करोडों की कीमत में बेचेंगे।

किसान नेता हीरेन्द्र निगम की लगभग 85 वर्षीय रामदुलारी निगम स्वांस, ब्लडप्रेशर की मरीज़ है। उनके बेटे का पता चार दिन से नहीं है। वह बहुत दुखी हैं इस बात से कि उनका लड़का किसानों के हित में काम करता था। किसानों को मुआवजा दिलाने की हरसंभव प्रयाशरत था। पुलिस ने उसको भी बहुत मारा और अब गायब किये है। चार रात से सोई नहीं हैं।

70 वर्षीय किसान सुशील कुमार द्विवेदी अपनी चोट दिखाते और रुधे आवाज में बताते हैं कि वह विकलांग हैं। पुलिस ने उन्हें लाठियों से  बहुत मारा। हाथ, पैर, जान्घा, कूल हर जगह मार के निशान काले पड़ गये हैं। वह दौड नहीं पाएं तो जो पुलिस सामने पडा दो चार राड लगाता हुआ गया। मारे दर्द के नीन्द नहीं आती। खाना खाने में बहुत दर्द होता है। 4 भाइयों के बीच चार चार बीघे जमीन थी जो सब चली गई ट्रांस गंगा सिटी में।

पचास वर्षीय सुरेश का पैर का ऑप्रेशन हुआ था। वह दवाई लेकर घर आ रहा था। उसको भी पुलिस ने लाठियों से बहुत मारा। उसका पैर सूझ गया है। उसके 5 लड़कियां हैं। पत्नी बीमारी के चलते खत्म हो गई। उसका पैर सूझ गया। अब अपना और बेटियों का पालन पोषण कैसे होगा। लगभग डेढ़ बीधे जमीन थी वह भी हाथ से चली गई।

सत्तर वर्षीय गंगादेई बताती है कि हम महिलाओं को भी लाठियों से बहुत  मारा है पुलिस ने। उस दिन से रात दिन नीन्द नहीं आ रही। खाना नहीं बना पा रही हूं।

बीस वर्षीय छोटू का कहना है कि पुलिस ने मार मार कर लोगों के अंदर इस कदर दर भर दिया है कि वह घर नहीं आ पा रहा। भगा भगा फिर रहा है। लोग अपने घर में नहीं सोएंगे तो कहां सोए। लोग शौंच तक के लिए निकलने में डर रहा है।

हमारी इन्सक्लूसिव खबर में जो निकल कर आया कि रामदुलारी निगम के हिसाब से बाहरी लोगों ने भी यहां पर पैसा कमाने के सोर्स निकाल लिए। चुकी उनका बेटा किसान नेता है तो उनसे अजय अनमोल यादव नाम के बाहरी व्यक्ति ने इनके बेटे हीरेन्द्र यादव से दोस्ती बढाई और किसानों की लड़ाई में शामिल हो गए। मिलने वाले मुआवजे से कुछ हिस्सा कमीशन के रूप में इन्होंने लिए। किसानों ने भी दिया उसके लिए किसानों ने चार पहिया गाड़ी ख़रीदवाई, उसकी मां के इलाज के लिए पैसे दिए। इस तरह की हरकतें जब हीरेन्द्र समझें तो उन्होंने विरोध किया। इसलिए अजय अनमोल यादव खुन्नस भर लिया। 17 नवंबर की घटना के दिन इसी व्यक्ति ने ईंट का टुकड़ा फेककर मारा जो सीधा एसएसपी को लगा।

इसलिए ये मामला इतना ज्यादा भड़क गया। मामला जो भी हो पर किसानों के साथ प्रशासन की तरफ से बहुत बुरा व्यवहार किया गया। कृषि प्रधान देश की सरकार अगर किसानों को मान-सम्मान, उनका हक़ अधिकार नहीं दे सकती तो उनकी जमीन लेने और उनके मेहनत से उगाया गया अनाज व सब्जियों को खाने का कोई हक नहीं है।