खबर लहरिया Blog समय के साथ खो सी गई मिटटी के बर्तन की परम्परा

समय के साथ खो सी गई मिटटी के बर्तन की परम्परा

The tradition of pottery lost over time

वक्त बदलने के साथ लोग मिट्टी से दूर होते जा रहे हैं। यह कहना है चित्रकूट जिले में सड़क किनारे मिटटी के बर्तन बेंच रहे कुम्हारों कामिट्टी से बने प्रेशर कुकर, थाली, कप-प्लेट, दालहांड़ी, पानी की बोतलें, डिनर सेट, केतली जैसी आम इस्तेमाल के बर्तन बेंच रहे हैंजो हमारे बचपन की याद दिलाते हैं। लेकिन ये लोग निराश क्यों हैं आइए जानते हैं।

पकवान से आती है स्वादिष्ट खुशबू

बर्तन बेंच रहे कारीगरों का कहना है कि इन बर्तनों में बना खाना बेहद स्‍वादिष्‍ट बनता है इसमें जहां मिट्टी के पोषक तत्‍व आ जाते हैं, वहीं मिट्टी की सोंधी खुश्‍बू और ठंडक भी खाने का स्‍वाद बढ़ा देती है इसके अलावा मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाने वाला खाना जल्‍दी खराब भी नहीं होता हैपहले लोग इन सब बातों की तवज्जो देते थे और मिट्टी के बर्तन यूज़ करते थे लेकिन आजकल के लोग मिट्टी के बर्तन में ज्यादा रुचि नहीं रखते हैं जिससे हमारा रोजगार छिन गया हैऔर इलेक्ट्रॉनिक चीजें जो फैंसी आ रही हैं उसे ज्यादा यूज करते हैं जबकि वह ज्यादा पैसा में मिलता है

फ्रिज का दाम घड़े से दस गुना ज्यादा

अगर हम एक फ्रीज लेने जाते हैं तो हम लोगों को 10,000 तक के दाम में मिलती है और हमारा मिट्टी का घड़ा 100 रुपया का मिलता है जबकि मिटटी के घड़े का पानी स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है बीमारियां नहीं होती हैं हम लोगों के अन्दर बदलाव लाना चाहते हैं हम बेरोजगार लोगों के लिए कोई नौकरी नहीं है तो सड़क के किनारे यही बेचते हैंयह बिकेगा तो हम लोगों का भी परिवार पलेगालेकिन लोग देखकर चले जाते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता

नहीं पीढ़ी नहीं समझ रही मिटटी के बर्तन का महत्व 

The tradition of pottery lost over time

रामनगर निवासी ममता देवी का कहना है कि पहले हमारे जमाने में लोग मिट्टी के बर्तन का खाना बनाना, पानी पीना, दही ज़माना, शादी में कलश पूजन के लिए खरीद कर लेकर जाते थेइसको बहुत शुभ माना जाता था और इसी को यूज करते थे लेकिन नई पीढ़ी इसका महत्व नहीं जानती जबकि यह बुंदेलखंड की पहचान है 

राजकुमार का कहना है कि यह बर्तन हम लोग पहले बहुत बनाते थे गांव-गांव घर-घर देने जाते थे। सबके अपने घर बंधे होते थे लेकिन अब दिवाली पर भी कोई नहीं लेता। कहते हैं कि हम लोग फ्रीज़, कूकर, ऐसी चीज इस्तेमाल करते हैं। यह कहकर लेते नहीं हैं। पर पहले जमाने में हमारी यही कमाई हुआ करता था। 

मिटटी का बर्तन बनाने में बहुत मेहनत होती है पहले खेतों से मिटटी लायें उसको पानी डालकर अच्छे से बनाते हैंबहुत सुंदर लगता है बनाने में और इसमें बहुत मेहनत होती है। अगर कोई लेता है तो हमारी मेहनत सफल हो जाती है।  

इन बातों का रखें ख़ास ख़याल

इंडिया. कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक वैसे तो मिट्टी के बर्तन में खाना पकाना काफी आसान होता है लेकिन मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाते समय कुछ बातों का खास ख्याल रखना होता है जब इनको पहली बार इस्‍तेमाल करें तो इन्‍हें करीब 12 घंटे पानी में भिगो कर जरूर रखें इसके बाद इन्‍हें पानी से निकाल कर सुखा लें और तब खाना बनाने के लिए इनका इस्‍तेमाल करें वहीं मिट्टी के छोटे बर्तन जैसे गिलास, कटोरी, कप आदि को भी कम से कम 6 घंटे के लिए पानी में भिगो दें इसके बाद ही इनका इस्‍तेमाल करें

इस खबर को खबर लहरिया के लिए सहोद्रा देवी द्वारा रिपोर्ट और प्रोड्यूसर ललिता द्वारा लिखा गया है।