खबर लहरिया Blog सुप्रीम कोर्ट कृषि बिल के खिलाफ दायर याचीकाओं पर सुनाएगी आज फैसला

सुप्रीम कोर्ट कृषि बिल के खिलाफ दायर याचीकाओं पर सुनाएगी आज फैसला

आज सुप्रीम कोर्ट कृषि कानूनों को संवैधानिक वैधता देने वाली याचीकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों की समस्याओं को सही तरह से नहीं देखा है और ना ही अभी तक उसका निपटारा कर पाई है। पिछले ढेड़ महीने से किसानों द्वारा दिल्ली की सीमाओं पर केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन कृषि बिलों के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा है। अभी तक केंद्र के साथ किसानों की 8 दौर की बैठक हो चुकी है। लेकिन इसके बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया है।

जयराम रमेश बोलेयेमोदी का ईगो

सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश की तरफ से ट्वीट करते पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए लिखा, “सुप्रीम कोर्ट ने आज कृषि कानूनों को होल्ड पर रखने को लेकर बिल्कुल सही पूछा कि, किस बात का अहम है? जिसका उत्तर स्वाभाविक हैये सब कुछ मी (ME) के लिए है (मोदी का ईगो)

हरियाणा के नेता ने स्पीकर को लिखी चिट्ठी

हरियाणा के पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल के नेता अभय सिंह चौटाला ने हरियाणा विधानसभा के स्पीकर को एक चिट्ठी लिखी है। जिसमें उन्होंने कहा कि, अगर 26 जनवरी तक केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है तो इस चिट्ठी को राज्य विधानसभा से मेरे इस्तीफे के रूप में स्वीकार किया जाए। इससे पहले आईएनएलडी ने किसानों के समर्थन में निकाय चुनावों का बहिष्कार करने की बात कही थी।

कांग्रेस ने कहापीएम करें कानून को रद्द करने की घोषणा

कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि, “सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि आपसे नहीं होता तो हम कृषि कानूनों पर रोक लगा देते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सामने आकर कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा करनी चाहिए। मोदी सरकार कानूनों में 18 संशोधन करने के लिए तैयार है, साफ है कि ये कानून गलत हैं।

सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक मुद्दों का निर्णय करती है, राजनीतिक बेईमानी से खेती को पूँजीपतियों की ड्योढ़ी पर बेचने की साज़िश का नही। सवाल 3 कृषि विरोधी कानूनों में एमएसपी अनाजमंडियों को ख़त्म करने का है,किसान को अपने ही खेत में ग़ुलाम बनाने का है, उसके लिए क़ानून रद्द करने होंगे।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कृषि बिल को लेकर दिया बयान

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मामले को लेकर बयान दिया कि, “मैं तो शुरू से कह रहा हूँ कि 3 नए कृषि कानून लेकर आए हैं, तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चौथा भी ले आएं। अगर एमएसपी से कम पर कोई भी खरीदेगा तो उसमें सजा का प्रावधान कर दीजिए। वही आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ये कृषि कानून किसानों के हित के लिए नहीं हैं।

अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार और ताना निशाना

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट की फटकार से पहले केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए ट्विटर पर लिखा था कि

भाजपा सरकार किसानों के प्रति असंवेदनशील होकर जिस प्रकार उपेक्षापूर्ण रवैया अपना रही है, वो सीधेसीधे अन्नदाता का अपमान है। घोर निंदनीय! अब तो देश की जनता भी किसानों के साथ खड़ी होकर पूछ रही है: दुनिया में उठता हुआ धुआं दिखता है जिन्हें, घर की आग का मंजर, क्यों दिखता उन्हें।

किसान नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट को कहाधन्यवाद

Supreme court expressed resentment with central government

किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट के सख़्त रवैये के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के इस मामले का संज्ञान लिया, इसके लिए हम धन्यवाद देते हैं। टिकैत ने फिर साफ किया कि आंदोलन कानूनों को खत्म करने के लिए जारी है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जताई नाराज़गी

कृषि कानून और किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा कि जिस तरह से सरकार इस मामले को हैंडल कर रही है, हम उससे खुश नहीं हैं। साथ ही कोर्ट ने कहा, “हम नहीं जानते कि क्या बातचीत चल रही है? क्या कुछ समय के लिए कृषि कानूनों को लागू करने से रोका जा सकता है?”

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा किकेंद्र सरकार इन कानूनों को पहले होल्ड पर रखे, नहीं तो सुप्रीम कोर्ट इन कानूनों पर रोक लगा देगा।

सरकार के पक्ष में अटॉर्नी जनरल ने यह कहा

चीफ जस्टिस के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की मिसालें हैं कि अदालतें कानून नहीं बना सकती हैं। अदालत तब तक कानून नहीं बना सकती जब तक कि यह नहीं पता चलता कि कानून विधायी क्षमता के बिना पारित किया गया है और कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

कृषि कानून के समर्थन में एक भी याचिका नहीं

 सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हमारे पास कई किसान संगठन आते हैं और हमें बताते हैं कि कानून प्रगतिशील हैं। बाकी किसानों को कोई कठिनाई नहीं है। इस पर चीफ जस्टिस जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, “कुछ लोगों ने आत्महत्या की है, बूढ़े और महिलाएं आंदोलन का हिस्सा हैं। क्या हो रहा है? हमारे पास एक भी याचिका दायर नहीं की गई है जिसमें कहा जाए कि कृषि कानून अच्छे हैं।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने अटॉर्नी जनरल से कहा, हमें यह कहते हुए खेद है कि आप, भारत के संघ के रूप में, समस्या को हल करने में सक्षम नहीं हैं। आपने बिना किसी सलाह के एक कानून बनाया है जिसके परिणामस्वरूप हड़ताल हुई है। इसलिए आपको हड़ताल को हल करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट की तीन अध्यक्षता वाली पीठ की दलीलें

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस एस बोपन्ना की पीठ याचिकाओं पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा कि बिना किसी हिंसा के विरोध शांतिपूर्ण रहा है, लेकिन पुलिस ही समस्याओं का कारण बन रही है।

वहीं सरकार की तरफ से वकील साल्वे ने कहा कि अगर कानून पर रोक लगती है तो किसानों को विरोध प्रदर्शन बंद करने दें। इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा कि सब कुछ एक आदेश के साथ प्राप्त नहीं किया जा सकता है। समिति के सामने किसान जाएंगे। कोर्ट एक आदेश पारित नहीं करेगा कि नागरिकों को विरोध नहीं करना चाहिए।

कोर्ट ने समीति गठित करने का दिया प्रस्ताव

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम एक समिति गठित करने का प्रस्ताव रख रख रहे हैं। अगर कोई बहस करना चाहता है तो बहस करे। आगे चीफ जस्टिस ने कहा कि किसान कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उन्हें समिति के समक्ष अपनी शिकायतें बताने दें। हम समिति द्वारा एक रिपोर्ट दायर करने के बाद कानूनों पर फैसला करेंगे।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा हम अपने हाथों पर किसी का खून नहीं चाहते। अगर कुछ गलत हुआ तो हममें से हर एक जिम्मेदार होगा।

अब सवाल यह है कि आज सुप्रीम कोर्ट कृषि बिल के खिलाफ़ दायर याचीयकाओं को लेकर क्या सुनवाई करती है। साथ ही क्या इस फैसले से किसानों की समस्याओं का हल निकल पाएगा? फैसले के बाद केंद्र सरकार का इस पर क्या रवैया होगा?