खबर लहरिया आओ थोड़ा फिल्मी हो जाए चम्बल की दिल को छूने वाली कहानी है सोनचिड़िया

चम्बल की दिल को छूने वाली कहानी है सोनचिड़िया

चम्बल की दिल को छूने वाली कहानी है सोनचिड़िया

“सोन चिड़िया जाके सब ढूंढ रहे हैं, जो काहो के हाथ नहीं आनी की”जी हाँ दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं चम्बल की पृष्ट भूमि पर बानी फिल्म सोनचिरैया की तो कर लें थोड़ी फ़िल्मी गपशप ?

70 और 80 के दशक में डाकू फिल्मों की कहानियों का अहम हिस्सा होते थे लेकिन पिछले डेढ़ दशक में डाकू फ़िल्म की कहानी से पूरी तरह से बिसरा दिए गए. अभिषेक चौबे की सोन चिड़िया चंबल के डाकुओं की कहानी है हालांकि हिंदी सिनेमा के मुख्यधारा वाले डकैतों से चंबल के ये बागी बिल्कुल अलग है. क्यों कि हम अक्सर फिल्मो देखतें हैं डाकू घोड़े पर आते हैं मुजरा सुनते है वगैरा वगैरा लेकिन ये डाकू चंबल के बीहड़ों में रहते हैं. जो एक सूखी रोटी पर पूरा दिन गुज़ार देते हैं. पुलिस से खुद को बचाने के लिए जो पैदल मीलों तक चलते हैं. इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं सुशांत सिंह राजपूत, भूमि पेडनेकर, मनोज बाजपेयी, रणवीर शौरी और आशुतोष राणा।

सोनचिड़िया कहानी है चंबल घाटी के घुमावदार रास्तों पर राज करते डाकू मान सिंह उर्फ दद्दा यानी मनोज बाजपेयी के गिरोह की. उसी गिरोह में दो और मुख्य किरदार हैं. लखना यानी सुशांत सिंह राजपूत और वकील सिंह यानी रणवीर शौरी। इस गिरोह के पीछे हाथ धोकर पड़ा है पुलिस वाला वीरेंद्र सिंह गुज्जर यानी आशुतोष राणा। गुज्जर की इस गुट से एक निजी दुश्मनी भी है. कहानी में इन सब किरदारों के चलते जो ट्विस्ट एंड टर्न्स हैं सो तो हैं हीं, कुछ और भी आ जाते हैं. जब एक लड़की इंदुमती यानी भूमी पेडणेकर इनके साथ हो लेती है. इंदुमती के साथ है एक और 12 साल की लड़की सोनचिड़िया जो बाल शोषण का शिकार है और जिसे इंदु अपनी छोटी बहन कहकर इंट्रोड्यूस करती है।

अभिषेक की इस फिल्म में आपको जो देखने को मिलेगा वो आपकी कल्पनाओं से परे है. इस फिल्म में आरक्षण की. जातियां, उप जातियां और उनसे जुड़ा अजीबोगरीब मान सम्मान दिखाया गया है . डाकू मान सिंह होना या फुलिया यानी फूलन देवी होना आपका चुनाव नहीं,बल्कि ज़िंदा रहने की शर्त बन जाता है.

अभिनय की बात करे तो सुशांत सिंह राजपूत का यह बेस्ट परफॉर्मेंस मान सकते हैं। सुशांत ने डायलॉग डिलीवरी से लेकर अपने पोस्चर को किरदार के मुताबिक ढाला। हर प्रकार से सुशांत सफल नजर आते हैं। मनोज बाजपेयी डाकू मानसिंह की भूमिका के रूप में आते हैं और अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। पुलिस ऑफिसर के किरदार में आशुतोष राणा जिस तरह से व्यक्तिगत रंजिश के चलते गिरोह का पीछा करते हैं उसमें वे किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय करते दिखाई देते हैं। भूमि पेडनेकर ने बेहतरीन अभिनय किया है। रणवीर शौरी ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। फिल्म में बाकी कलाकार भी किरदार के मुताबिक अच्छा अभिनय करते नजर आए।

इन सब के बाद भी ये फिल्म उतनी सफल नहीं हुई जितनी की उम्मीद थी। लेकिन फिर भी ये फिल्म आपको अंत तक बंधे रखती है। वैसे आप को ये फिल्म कैसी लगी हमें कमेंट कर के जरूर बताइयेगा। अगर वीडियो पसंद आई हो तो लाइक और दोस्तों के साथ शेयर जरूर कीजिये। और हाँ कोरोना अभी गया नहीं है तो याद है न मास्क लगाएं उचित दूरी बनायें समय समय पर हाथ धोएं और अपनी बारी आने पर वैक्सीन जरूर लगवाएं। अब इतना कर ही रहें है तो अगर आपने हमारा चैनल सब्स्क्राइब नहीं किया है तो अभी कर लें। तो मिलते है अगले एपिसोड में तब तक के लिए दीजिये इज़ाज़त नमस्कार।

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