खबर लहरिया Blog निर्भया, हाथरस, उन्नाव मामले बने ब्रांड नेम, जानिये ग्रामीण क्षेत्रों में हुए मामलों की सच्चाई

निर्भया, हाथरस, उन्नाव मामले बने ब्रांड नेम, जानिये ग्रामीण क्षेत्रों में हुए मामलों की सच्चाई

16 दिसंबर 2012 हो या 16 दिसंबर 2022, आज भी महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ सवाल ही है। साल 2012 में निर्भया थी और आज कईं और हैं।

साभार – FII

16 दिसंबर 2012 और 16 दिसंबर 2022, इन दस सालों में मुझे कोई बदलाव तो नहीं पर हाँ, बहुत-सी निर्भया ज़रूर देखने को मिली। महिलाओं और नाबालिगों के साथ बलात्कार के मामले तेज़ी से बढ़े। निर्भया मामले में आरोपी को साल 2020, मार्च में पूरे 10 सालों बाद सज़ा मिली। अभी भी इन्साफ की वही कहानी है। निर्भया मामले के बाद देश के कोने-कोने से लोगों की आवाज़ें आ रहीं थीं कि निर्भया को जल्द से जल्द इंसाफ मिलना चाहिए। हेडलाइन और नेता भी यही कह रहे थे। बड़े स्तर तक मामले की पहुँच के बाद भी दोषियों को सज़ा देने में दस साल लग गए। अब ज़रा सोचिये उन सामूहिक बलात्कार के मामलों का क्या, जिनकी आवाज़ गाँव, कस्बे की दहलीज़ भी न पार कर पाई हो।

एक ग्रामीण नारीवादी चैनल होने के नाते हमारी खबरें छोटे कस्बों और गाँवों से निकलकर आती हैं इसलिए हम यह तो कह सकते हैं कि जो ज़मीनी मामले हैं, उनमें से अधिकतर तो अधिकारीयों के कानों तक भी नहीं पहुँचती हैं और कुछ को तो अनसुना कर दिया जाता है। फिर सरकार और चुनावी नेता वादों का ढकोसला बांधे हुए, महिला सुरक्षा, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण इत्यादि अभियान चलाते हैं और कागज़ों में मनगढ़त रिकॉर्ड भरकर और सजाकर जनता को पेश कर देते हैं।

अगर यूपी की बात करें तो ऐसा लगता है कि यूपी बलात्कार के मामलों का गढ़ बन चुका हैं। राज्य में हुए हाथरस, लखीमपुर खीरी मामला और उन्नाव केस, कुछ ऐसे मामले थे जिसे देशव्यापी कवरेज मिली। जिसमें यह दिखा कि किस तरह से पुलिस ने सबूतों को जला दिया, वह किस तरह से पीड़िता के परिवार वालों को बचाने में नाकमयाब रही। लोगों में घटना को लेकर रोष होने के बावजूद भी आरोपियों को सज़ा दिलाने में सालों लग गए। इन सब चीज़ों के बाद यूपी सरकार कहती है, “हम महिलाओं की सुरक्षा का वादा करते हैं।” अब यह जुमला नहीं तो क्या है?

निर्भया, हाथरस, उन्नाव और लखीमपुर खीरी मामलों को तो बस एक ब्रांड की तरह उपयोग किया गया है जिसका लाभ उस समय भी कुछ लोगों ने उठाया और आज भी उठा रहे हैं। मैं यहां ब्रांड शब्द इसलिए इस्तेमाल कर रही हूँ क्यूंकि ये नाम यह बताते हैं कि सिर्फ यही वो मामलें थे जिसने सबको अपनी तरफ खींचा और लोगों की भावुकता का केंद्र बनें। वहीं जिन घटनाओं के नाम सामने उभर नहीं पाए वह मामले गंभीर होने के बावजूद भी दबा दिए गए। ग्रामीण स्तर पर अगर सामूहिक बलात्कार के मामलों की बात की जाए तो इंसाफ तो छोड़िये, कानूनी कार्यवाही तक पहुँच जाने के बाद भी आरोपियों को सज़ा नहीं मिलती। सिर्फ कुछ ही केस होते हैं जिनमें तुरंत कार्यवाही कर दोषियों को पकड़ा जाता है।

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ग्रामीण स्तर पर हुए सामूहिक बलात्कार के मामले


जिला चित्रकूट, पहाड़ी थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला गाँव। 13 दिसंबर 2020 को गाँव के ही दो आरोपियों ने 13 साल की नाबालिग बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार किया। परिवार वालों ने खबर लहरिया को बताया कि बच्ची बेहोशी की हालत में घर पहुंची थी। घर पहुंचने पर उसने अपने साथ हुई पूरी घटना के बारे में उन्हें बताया। घटना की खबर मिलते ही परिवार बलात्कार के मामले की रिपोर्ट लिखवाने के लिए 13 दिसंबर को पहाड़ी थाना पहुंचा था। परिवार वालों का कहना था कि रिपोर्ट लिखने की जगह पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें डांटकर वापस भेज दिया गया। रिपोर्ट लिखवाने के लिए परिवार दो दिन तक पुलिस थाने के चक्कर काटता रहा लेकिन कुछ नहीं हुआ।

पुलिस द्वारा मामले की रिपोर्ट ना लिखने पर, परिवार चित्रकूट के उच्च पुलिस अधीक्षक अंकित मित्तल के पास मदद के लिए पहुंचा। फिर अधीक्षक के निर्देश पर पहाड़ी थाना के प्रभारी निरीक्षक श्रवण कुमार को मामले की रिपोर्ट लिखने और जांच के लिए कहा गया। जिसके बाद 15 दिसंबर को पुलिस ने मामले की रिपोर्ट लिखी और पीड़ित बच्ची को मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा।

इन्साफ पाने के लिए परिवार को काफ़ी जद्दोजहत करनी पड़ी। पहाड़ी थाना के थाना प्रभारी श्रवण कुमार ने बताया, आरोपियों के नाम दीपक कुमार और शिवम हैं। दोनों ही आरोपी पीड़िता के गांव से है। दोनों आरोपियों को पहाड़ी जनपद चित्रकूट से 16 दिसंबर को गिरफ़्तार किया गया। दोनों आरोपियों पर धारा 376 डी, 504,506 और पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है।

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– उम्र 17 साल, घटना की तारीख 23 अगस्त 2020


चित्रकूट जिले के बहिलपुरवा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गाँव में 23 अगस्त 2020 को एक 17 साल की लड़की का शव पेड़ पर लटका हुआ पाया गया था। जैसे ही गांव वालों ने शव को देखा, वैसे ही पुलिस को सूचना देकर मौके पर बुलाया गया। शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भी भेज गया।

नाबालिग लड़की के पिता का आरोप था कि पहले उनकी बेटी के साथ सामूहिक बलात्कर किया गया और फिर उसकी हत्या की गयी। लेकिन पुलिस द्बारा बलात्कार की बात को साफ़ तौर पर नकार दिया गया। पिता का कहना था कि पुलिस द्वारा पोस्टमॉर्टम की गलत रिपोर्ट बनाई गयी। साथ ही पुलिस को कहने पर भी हत्या और बलात्कार की कोई रिपोर्ट नहीं लिखी गयी। यहां तक लड़की के पिता का यह भी कहना था कि उनकी बेटी के पास जो मोबाइल फ़ोन था , वह भी पुलिस द्वारा ज़ब्त कर लिया गया। जिसमें शायद कोई सबूत हो सकते थे। जब उन्होंने मोबाइल फ़ोन माँगा तो उन्हें वह भी नहीं दिया गया।

लड़की के पिता का कहना था कि जब उन्होंने अपनी बेटी के शव को देखा तो उसकी दोनों जाँघें खून से सनी हुई थी, इस पर किसी धारदार हथियार के निशान थे और गर्दन की हड्डी भी टूटी हुई थी। लड़की के पिता के अनुसार शव की हालत को देखकर साफ़ पता चल रहा था कि पहले उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया है और फिर उसकी हत्या की गयी है।

पिता ने बताया कि आरोपी गांव के ही पांच लोग लवकुश, मैकू, सोनू, लालमन और मूलचंद हैं। उनका कहना था कि आरोपियों द्वारा लगातार उन्हें जान से मारने की धमकी दी जा रही थी। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वह अपनी बेटी के लिए इंसाफ की मांग कर रहे थें। मिलती धमकियों के बावजूद पुलिस द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी।

23 अगस्त को ही बहिलपुरवा थाना के प्रभारी पंकज पांडेय द्वारा लड़की के पिता को यह आश्वासन दिया गया था कि सारे आरोपियों को पकड़कर उन्हें सज़ा दी जाएगी लेकिन आरोपियों का नाम साफ़ होने के बाद भी ना तो उन्हें पकड़ा गया और ना ही उनके खिलाफ़ कोई रिपोर्ट दर्ज की गयी।

आरोपियों की सज़ा की मांग करते हुए लड़की के पिता जिला प्रशासन भी पहुंचे लेकिन जब उन्हें वहां से भी कोई मदद मिलती नहीं दिखी तो वह 11 सितंबर 2020 को बीजेपी के प्रमुख सचिव गृह,लखनऊ, प्रयागराज के एडीजीपी, डीआईजी, चित्रकूट के एसपी आदि लोगों के पास भी इंसाफ की उम्मीद लेकर पहुँचे। लेकिन इन जगहों पर भी उनकी बात को नही सुना गया। थक–हारकर उन्होंने अदालत में इस उम्मीद से मुकदमा किया कि शायद अब उनकी बात को सुना जाएगा। अदालत द्वारा बहिलपुरवा थाने के अधिकारी को मामले की रिपोर्ट लिखने को कहा गया, लेकिन फिर भी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी।

तो कुछ ऐसी है ग्रामीण स्तर पर हुए मामलों में इंसाफ न मिलने कहानी जहां पीड़ित परिवार दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए हर सम्भव कोशिश करते दिखा। वहीं पुलिस-प्रशासन भी कुछ मामलों में आरोपियों को बचाने में पूरी मेहनत करते हुए दिखी।

टाइम्स नाओ न्यूज़ की अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में हर 16 मिनट में एक बलात्कार की घटना होती है। यहां तक की 2020 में यूपी को महिलाओं के रहने के लिए सबसे असुरक्षित राज्य तक घोषित कर दिया गया।

निर्भया मामला हो या ग्रामीण क्षेत्रों में हुए मामले, यह सब यही दिखाते हैं कि आज भी सुरक्षा सिर्फ सवाल है। शहर हो या गाँव, न्याय की कहानी थोड़ी भी नहीं बदली। बस घटनाओं की तारीख और नाम बदल गया। इसके बावजूद भी सरकार कहती है कि महिलाओं की सुरक्षा और उनकी समस्यायों के लिए योजनाएं और संस्थाएं स्थापित की गयी हैं फिर इन मामलों की खबर उन कमिटी या संस्थाओं तक क्यों नहीं पहुचंती? ऐसी कौन सी सुरक्षा है जो आज तक महिलाओं को मिल पाई है?

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