खबर लहरिया Blog आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट #MainBhiRiz

आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट #MainBhiRiz

भीड़ से हटकर इस महिला पत्रकार ने बनाई अपनी एक छवि और शुरू किया अपने साथियों के साथ मिलकर खुद का एक अखबार।

कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर चल रहे आन्दोलन की कई ऐसी कहानियां हैं जो आपने सुनी होंगी, देखी होंगी जहाँ पर लोग एक दूसरे की मदद कर रहे हैं लेकिन हम आपके बीच एक ऐसी युवा एक्टिविस्ट की कहानी लेकर आये हैं जिन्होंने इस आन्दोलन के जरिये एक मुकाम हासिल किया है।

“मैं पहले भी बहुत सारे आंदोलनों का हिस्सा रही हूँ लेकिन ये पहला किसान आंदोलन है जिसने मुझे पत्रकार बना दिया। और मेरा इस आन्दोलन में आन्दोलनकारी होना रिपोर्टर होने के लिए बहुत मददगार साबित हुआ। क्योंकि हमें इस आंदोलन में लाखों लोगों के बीच एक अलग पहचान मिली है।”- पत्रकार व डेंटल सर्जन डॉ. नवकिरण नट

नवकिरण नट ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कोई कोर्स तो नहीं किया पर रूचि जरूर थी क्योंकि वह छात्र युवा एक्टिविस्ट हैं और अखबार में खासकर महिलाओं व युवाओं के मुद्दे पर लिखती भी रही हैं। लेकिन भविष्य में वह पत्रकार बनेगीं ऐसा सोचा नहीं था।

नवकिरण नट मूलरूप से पंजाब के मानसा जिले की रहने वाली हैं। चंडीगढ़ पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर चुकी नवकिरण नट 2017 से दिल्ली में हैं। और शुरुआत से ही किसान आंदोलन का हिस्सा रही हैं। और वह किसान आंदोलन में एक आंदोलनकारी की हैसियत से ही जुड़ी थी।

पत्रकारिता से पहले नवकिरन नट ने तीन साल चंडीगढ़ में डेंटिस्ट के पद पर काम किया। इसके साथ ही कई युवा संगठन जैसे आइसा (आल इण्डिया स्टूडेंट एसोशिएशन) और यूथ एसोशियन के साथ छात्रों के मुद्दे और द 1947 पार्टीशियन आर्काइव जो एक एनजीवो है, उनके साथ काम कर चुकी हैं।

जरूरतों ने बना दिया पत्रकार

किसानों के लिए निकाला गया साप्ताहिक अखबार ‘ट्रॉली टाइम्स’

पत्रकार कैसे बनीं के सवाल पर वह कहती है कि 2014 से जबसे बीजेपी की सरकार जीत कर आई है। तबसे लगातार एक चीज जो पूरा देश महसूस कर रहा है वह ये की सरकार ने हमारे साथ क्या किया है? हमें चाहिए था स्वास्थ्य, हमें चाहिए था भोजन, हमें चाहिए थी शिक्षा लेकिन इस सरकार ने हमें क्या दिया?…..सिर्फ मौत। और हमारा जो नेशनल मीडिया है वह सरकार की ही बात करता है। जो आम लोगों के मुद्दे हैं उनको आगे लेकर नहीं आता। ऐसे में उन्हें लगा की पंजाब का इतना बड़ा आंदोलन है इसमें शामिल लोगों की आवाज बाहरी लोगों तक पहुँचाने के लिए एक उन्हीं लोगों की भाषा में अखबार निकाला जाये उस आवाज को बुलंद किया जाए जो यह बिकाऊ मीडिया नहीं पहुंचा रहा। और उन्होंने अपने छह युवा टीम के साथ मिलकर साप्ताहिक अखबार निकाला ट्रॉली टाइम्स। ट्रॉली में बैठकर ही यह लोग इस अखबार की प्लांनिंग करते हैं, इसलिए इसे ट्रॉली टाइम्स नाम दिया गया है। 18 दिसंबर 2020 को ट्रॉली टाइम्स का पहला अंक छपने के बाद वह पूर्ण रूप से पत्रकार बन गई।

 

उन्होंने हमें बताया कि पंजाब पितृसत्ता से भरा हुआ समाज है और क्योंकि वह पंजाब में ही पली-बढ़ी हैं और उन्होंने एक महिला होने के नाते यह महसूस भी किया है कि जो मर्द खुद से एक पानी का गिलास उठाकर नहीं पीते। और आज वही मर्द सड़को में बैठकर प्रोटेस्ट कर रहे हैं। आन्दोलन में शामिल महिलाओं के बारे में पूछे जाने पर नवकिरण नट ने हमें बताया कि महिलाओं को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरह के उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। आन्दोलन तो ख़त्म हो जाएगा लेकिन कुछ ऐसी चीजें है जिससे लगातार सीखते ही रहेंगे।

मेरे जीवन की ऐसी कहानी है जो कभी भूल नहीं पाउगी- नवकिरण नट

नवकिरण नट जो वर्तमान में कोरोना से जंग लड़ रही हैं बताती हैं कि पिछले दिनों जब बंगाल में इलेक्शन चल रहा था तो किसान आंदोलन के कुछ किसान बंगाल गये हुए थे। उन लोगो से मोटिवेट होकर एक 25 वर्षीय लड़की आंदोलन का हिस्सा बनने आई थी। 12 अप्रैल से वह टिकरी मोर्चा में थी, और फिर अचानक उसको कोरोना हुआ और उसकी वजह से उसकी यही मृत्यु हो गई। वह कहती हैं जब लोग अपने घरों में कैद हैं इन सबके बावजूद ऐसे युवा जो घरों से निकलकर सड़कों पर आ रहे हैं ये एक ऐसा जज्बा है जो उन्हें हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

कोरोना वायरस के इस दौर में एक चीज बहुत जरुरी है वह है मानसिक संतुलन न खोते हुए इस दौर को पार करना। क्योंकि हम सब झल्लाये हुए हैं। सोशल मीडिया खोलते ही किसी अपने जानकार की मौत की खबर मिलती है। ऐसे में बहुत मुश्किल है अपने आपको स्थिर रख पाना। हमें ये समझना होगा की बुरा टाइम ही अच्छे बुरे की परख बताता है। इसके साथ-साथ हमें इस समझ को बरकार रखना होगा की दुबारा ऐसे मोड़ पर आकर खड़ा न होना पड़े।

नवकिरण नट के अन्दर पहले ही बदलाव का जज्बा था वह शुरू से ही आन्दोलनकारी रही हैं जिसने उनकी पत्रकारिता को और भी निखारने का काम किया। और वह यह बदलाव जारी रखेंगी।

( नोट – यह आर्टिकल प्रेस फ्रीडम डे के एक सप्ताह की सीरीज़ का हिस्सा है। जो खबर लहरिया की रिपोर्टर रह चुकीं रिज़वाना तबस्सुम की याद में मनाया जा रहा है। यह 3 मई से 8 मई तक मनाया जाएगा। इस बीच हम आप लोगों के साथ ग्रामीण महिला पत्रकारों की कहानियां शेयर करते रहेंगे।)

 

इस सीरीज के अन्य भाग नीचे दिए गए लिंक पर देखें:

भाग 1: पत्रकारिता के लिए ली समाज से लड़ाई – ग्रामीण महिला पत्रकार शिवदेवी
भाग 2: एक ऐसी महिला पत्रकार जिसने हमले के बाद भी नहीं छोड़ी पत्रकारिता
भाग 3: समाज की सोच को पीछे छोड़, अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए लोगों का दिल जीत रहीं रूपा
भाग 4: “खबर बनाना ही नहीं, न्याय दिलाना भी मेरा काम है” – ग्रामीण युवा महिला पत्रकार सीता पाल
भाग 5: आन्दोलन ने दिखाई पत्रकारिता की राह – नवकिरण नट
भाग 6: अखबार बेच कर शुरू किया सफर, आज पत्रकारिता के ज़रिये दे रहीं समाज की सोच को चुनौती