खबर लहरिया कोरोना वायरस कोरोना वायरस और भूख से बिलखते मजदूरों की दास्तान सुनिए कविता शो के इस एपिसोड में

कोरोना वायरस और भूख से बिलखते मजदूरों की दास्तान सुनिए कविता शो के इस एपिसोड में

कोरोना वायरस और भूख से बिलखते मजदूरों की दास्तान सुनिए कविता शो के इस एपिसोड में  :कोरोना बीमारी को लेकर लाक डाउन है इस कोरोना ने हम सबकी जिंदगी को प्रभावित किया है 14 दिन का लाक डाउन ऐसा अहसास दिला रहा है मानों हम सब जेल के बंदी हैं लेकिन सबसे ज्यादा इसमें तबाह है हो गया मजदूर वर्ग खासकर वो मजदूर जो दो जून की रोटी का जुगाड करने के लिए पलायन करके दिल्ली मुंबई हरियाणा गुजरात या और भी बड़े शहरो में गये थे लांक डाउन के बाद सारी कम्पनीज़ फैक्ट्री बंद होने पर मजदूरों को सड़क पर छोड़ दिया गया उनकी दास्तान दिल को दहला देती हैं वो कोरोना वायरस और भूख दोनों से परेशां हैं

लॉक  डाउन होने पर राज्य से लेकर जिले तक सील कर दिये गये सारे साधन बंद कर दिए गये जो मजदूरों को सड़क पर छोड़ दिया वो अब कहां जाये न तो सर छुपाने की जगह न ही पेट भरने का एक निवाला कोरोना वायरस और भूख से लोग बहुत अधिक परेशां हैं इसलिए सारे मजदूरों ने ठाना कि अब उनको शहर को छोड़कर अपने गांव ही जाना होगा और लोगों ने तय किया पैदल चलना । दिल्ली से यूपी लोग पैदल आये कोई हरियाणा से ओई मथुरा से कोई इलाहाबाद और कानपुर से ऐसी तपती धूप में काली रात में अपने छोटे छोटे बच्चों महिलाओं और बुजुर्गो के साथ लोग चलते गये चलते गये इसमें सबसे बड़ी संख्या यूवा पीढी की है 3=पैदल आना भी इनके लिए आसान नहीं हुआ हर जगह पर पुलिस का अत्याचार इन गरीब मजदूरों को सहना पड़ा कयी मजदूरों को पुलिस ने रास्ते में रोका तो कइयौ को मुर्गा बनाया गया और बहुत लोगों घुटने के बल पर चलाया भी गया जहां पर इन मजदूरों की सहायता करना चहिए उनको खाना पानी या साधन की ब्यवस्था होना चहिए उसके बदले भी अत्याचार का सिकार बनना पड़ा खैर मीडिया ने इसपर खूब सवार खड़ा करी और यूपी के मुख्यमंत्री को निर्णय लेना पड़ा की मजदूरों को बस चला कर उनके घर तक भेजा जायेगा दो दिन तक के लिए 100बसे चलाई गई लेकिन और मजदूरों को बैठा कर उनके घर के बजाये छोड़ा गया स्कूलों कालेजों में अब मजदूर वहां पर बंधक बन कर रह रहे हैं साथियो मेरे पास कयी मजदूरों के फोन आ रहें हैं कि उनको बंधक जैसे बना कर बेड दिया गया है लेकिन वहां पर न तो खाने की ब्यवस्था था न लेटने की न ही साफ सफाई है उपर है हमको टार्चर किया जा रहा है महिलाएं और छोटे छोटे बच्चे भी भी स्कूलो में ताले के अंदर बंद कर दिए गये हैं कुछ महिलाएं हैं इनके लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है तिंदवारी के कस्तूरबा बालिका बालिका विद्यालय में एक महिला को भी बंद किया गया है सात माह की गर्भवती हैं इस की एक भी फिक्र प्रसासन को नहीं है ऐसी जी ने जाने कितनी औरतों को कैद करके रखा होगा और एसी महिलाएं भी होगी जिनको पीरीएड का समय होगा और उनके पास सेनेटरी पैड तक नहीं होगें बच्चे जो बंद हैं मां बाप के साथ में वो सुबह से चाय धमकी बिस्कुट मांगते हैं उनकी भी कोई ब्यवस्था नहीं अरे सरकार में किस तरह आप लोगों के साथ मानसिक हिंसा कर रहे हैं अगर लोगों 14 दिन के लिए आइसोलेशन में रखे हैं तो उनकी पूरी व्यवस्था करिए न लोगों ने खबर लहरिया से इस शिकायत को प्रशासन तक पहुंचाने की मांग कर रहे हैं 4= मजदूरों ये दुर्दशा सुनकर आंसू निकल रहे हैं इस पर मेरे कयी सवाल है हैं प्रशासन से आखिर पूरी तरह की व्यवस्था इनके लिए क्यो नहीं है अगर अचानक से सरकार ऐसे निर्णय ले रही है पूरी व्यवस्था करें जहां पर साफ सफाई ,स्वच्छ पीने का पानी दवा इलाज की व्यवस्था हो और महिलाओं के लिए उनकी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराई जाये । 5-दूसरी तरफ जो गरीबों के घरों में राशन सामग्री नहीं है उनके चूल्हे नहीं जल रहें‌हैं वहां पर तुरंत राशन सामग्री पहुंचाई जाये क्योंकि बहुत सारे गांव से मेरे पास फोन आये हैं और अभी भी आ रहे हैं कि उनके घरों में खाने के लिए नहीं है तो वहां पर तत्काल में राशन सामग्री भेजी जाये ताकि बीमारी के बजाये भूख से लोगों की मौते न हो साथियों वैसे तो सरकार पलायन रोकने के लिए सैकड़ों योजनाएं चलाई है लेकिन इन योजनाओं की पोल पूरी तरह से खुल गई है वैसे तो यूपी और बुंदेलखंड के पलायन का कोई आंकड़ा नहीं था लेकिन पहली बार शहर से गांव की ओर लौट रहें मजदूरों के झुंड को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर इलाके की आधी आबादी पलायन में थी और वो गरीब भी दिख गई अब सरकार को आंख खोल कर देख लेना चहिए और हो सके तो इसी दौरान अमीरी गरीबी की जनगणना भी हो जानी चाहिए अरे दोस्तों यही गरीब मजदूर बहुत लोगों को अमीर बनायें है इन्हीं मजदूरों के खून पसीने से बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां और कारखाने चलते हैं यही मजदूर अमीरों कै घरों में झाड़ू पोंछा लगाने से लेकर उनके पेट तक पका-पकाया भोजन भी कराते हैं और आज जब उनकी बारी आई तब ये अमीर लोग मुंह फेर लिए अपने घरों से कारखानों और फैक्ट्रियों से बाहर निकाल फेंका ये दर्रनाक स्थति सब इतिहास के पन्नों पर लिखी जायेगी और मजदूरों को भी अच्छा सबक मिला है कि वो दुबारा शहरों की तरफ जायेगें या अब अपना गांव बसायगें अपनी खेती करेगें