खबर लहरिया जिला मज़दूर क्यों होते हैं बंधुआ होने को मज़बूर : मज़दूर दिवस स्पेशल

मज़दूर क्यों होते हैं बंधुआ होने को मज़बूर : मज़दूर दिवस स्पेशल

बांदा: चार महीने बीत जाने के बाद उन मजदूरों की स्थिति जानने के लिए हम जिले के कमासिन ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत इंगुवा, मजरा झन्ना का पुरवा पहुंचे। इंटरव्यू के दौरान अपनी आपबीती बाते मजदूर रो पड़े। उनके घर में खाने के लाले पड़े हैं। मनरेगा में काम नहीं मिला। बंधुवा मजदूर बनाये जाने का डर अभी भी वह झेल रहे हैं। उनकी सुध लेने वाला न प्रशासन है और न ही संगठन। उनके साथ घटना हुई थी कि 7 दिसंबर 2020 को इस गांव के भूमिहीन और दलित समुदाय के लगभग दो दर्जन मजदूरों को बंधुवा मुक्ति मोर्चा ने प्रशासन की मदद के साथ ईंट भट्ठे से मुक्त कराया गया था।

मजदूरों ने बंधुवा मुक्ति मोर्चा को फोन करके सूचना दी थी कि उन्हें तथा उसके साथियों को अजमेर शहर के समीप पंचशील नगर स्थित भारत नाम के ईंट भट्ठे पर काम करवाने के लिए पांच परिवारों को बंधक बनाकर रखा गया है जिसमें 4 महिला, 11 पुरुष, 6 बच्चे शामिल हैं। मजदूरों का आरोप है कि लगभग तीन महीने तक खाने पीने रहने की समस्याओं का सामना करने के साथ ही मज़दूरी भी मार ली गई। मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर बसे इस दुर्गम गांव में करीब एक सैकड़ा घर सभी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं। मनोज ने बताया कि श्रम विभाग में दो बार कागज श्रम विभाग में जमा कर आये हैं लेकिन कोई कार्यवाही आगे की नहीं हुई।

बंधुवा मजदूर संगठन को कई बार फोन किया। उनके पास भी गए। दबी जुबान और गुस्से में आकर यह भी बताए कि लाभ दिलाने के लिए उन्होंने संगठन को सुविधा शुल्क के नाम पर पांच हज़ार रुपये सभी मजदूर मिलकर दिए हैं। फिर भी कोई सुनाई नहीं हुई। बंधुवा मजदूरी के डर के मारे वह अपने परिवार को घर में ही छोड़कर पास के बड़े शहर इलाहाबाद गया था मजदूरी करने के लिए। दिन भर बेलदारी का काम करता और कचहरी परिसर में सोता था। एक बार एक हफ्ते और दूसरी बार 3 दिन के बाद ही वापस घर आना पड़ा क्योंकि बहुत मुश्किल से काम मिलता था। वह बात करते करते भावुक हो गए-“हम मजदूर हैं। साफ सुथरे कैसे रह सकते हैं। हमारे कपड़े मैले कुचैले रहते हैं। पसीने की बू आती है। शरीर में धूल मिट्टी सीमेंट लगी रहती है। इसलिए कोरोना के चलते हमको काम नहीं दिया जाता।”

इसी तरह से संदीपा कहती हैं कि वह लगभग बारह साल से ईंट भट्ठा से काम करती आ रही हैं। ऐसी स्थिति कभी नहीं हुई कि वह अपने आपको लाचार महसूस करी हों। अब इस साल काम पर नहीं जा पाए डर के मारे दूसरी बात कि सीजन भी निकल गया था। अब गांव में ही कुछ काम करेंगी जो मिल जाएगा। कुछ दिन फसल कटाई की मजदूरी कर ली है। जैसे भी होगा नमक रोटी खाकर जिएंगे ही। राशनकार्ड भी तो नहीं है कि उससे अनाज ही मिल जाये। इस बारे में श्रम प्रवर्तन अधिकारी महेंद्र कुमार कहते हैं कि जो भी योजनओं का लाभ मिलना चाहिए ऐसे मजदूरों को तो वह दिया जाता गया होगा। उनको स्पष्ट नहीं पता लेकिन वह इसका पता लगवाकर उचित कार्यवाही करेंगे।