खबर लहरिया जवानी दीवानी जजमेंटल है क्या? आओ थोड़ा फिल्मी हो जाएं

जजमेंटल है क्या? आओ थोड़ा फिल्मी हो जाएं

कंगना रानौत और राजकुमार राव ने क्वीन के बाद फिर से साथ में काम किया है फिल्म है जजमेंटल है क्या. वैसे इस फिल्म का नाम मेंटल है क्या था जिसे बदलकर अब जजमेंटल है क्या कर दिया गया. फिल्म एक सय्क्लोजिकल कोमिडी है. जिसकी शुरुआत बाबी यानी के कंगना के बचपन से होती है. जो बचपन में माता-पिता के झगड़े में हुई उनकी मौत के कारण इस बीमारी से घिर जाती है। उसका दिमाग सच और झूठ में फर्क नहीं कर पाता है. बोबी एक डबिंग आर्टिस्ट भी है. जो डबिंग के दौरान उस सीन में खुद को देखने लगती है. उसके हावभाव और पहनाव सब उसी किरदार की तरह होता है. साथ ही उस किरदार के रूप में अपनी फोटो भी खिचवाटी है. बोबी की एक और आदत थी अखबारों के ओरिगैमि बनाना. उसकी हरकतें अजीबोगरीब होती है एकबार इसी हरकतों की वजह से उसे तीन महीने मिडिकल असयालेन में भी रहना पड़ा था. उसकी इसअजीबो गरीब जिंदगी में उसके साथ उसके ताऊ, ताई और 1 बॉय फ्रेंड कम असिस्टेंन वरुण यानी की हुसैन दलाल भी है. इसी बीच एक दिन बॉबी के घर केशव यानी के राजकुमार राव अपनी पत्नी रीमा यानी के अमायरा दस्तूर के साथ किराए पर रहने आते है. बॉबी केशव की ओर आकर्षित हो जाती है, मगर साथ में केशव की हरकतें बॉबी को शक में डाल देती हैं। अभी बॉबी, केशव की जासूसी कर ही रही होती है कि रीमा की मौत हो जाती है। पुलिस के सामने बॉबी अपना पक्ष भी रखती है, लेकिन उसकी ‘सनक’ भरी बातों से उस पर कोई यकीन नहीं करता। 2 साल बाद बॉबी अपनी दूर के रिश्ते की बहन मेघा के घर लन्दन जाती है तो उसे पता लगता है मेघा का पति कोई और नहीं बल्कि केशव है. बॉबी के सनकी व्यवहार से कोई उसकी बातों को सीरियस नहीं लेता. इसी ताने बाने के साथ पूरी फिल्म उलझी हुई है. कहानी जैसे जैसे आगे बढती है सस्पेंस, डर और पागलपन के साथ रोचक होती जाती है. प्रकाश कोवलामुदी के निर्देशन में बनी इस फिल्म को कनिका ढिल्लन की दमदार स्क्रिप्ट के साथ पूरा न्याय किया है. एक्टिंग की अगर बात करें तो कंगना और राजकुमार राव दोनों ने अपनी भूमिका के साथ कमाल किया है. कंगना का पागलपन देखने लायक था अगर ये बोलूं की इस रोल के साथ कोई और फिट नहीं होता क्योकि कंगना ने इस किरदार को ऐसे निभाया है मानो आपके पड़ोस की हो. क्योकि जो लोग मानसिक रोग का शिकार होते है उसे लोग अपनी दुनिया से ही कटा हुआ मान लेते है या ये कहूँ की अगर एक महिला अगर समाज के बन्धनों से अलग व्यवहार करें तो भी उसे पागल ही समझा जाता है या उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता. कई बार हम उसे खतरनाक भी मानने लगते है. लेकिन उससे भी खतरनाक लोग हमारे आसपास होते है जिनपर हमारा ध्यान नहीं जाता जिसे इस फिल्म में बखूबी दर्शाया गया है. अब पूरी उलझी कहानी का सार जानने के लिए आपको फिल्म देखना होगा. फिल्म में गानों की बात करें तो वखरा गाना लोगों की जुबा पर चढ़ गया है. कुल मिला कर हम इस फिल्म को देते हैं 4 स्टार.