खबर लहरिया Blog संविधान में तो सबको एक समान जीने का अधिकार फिर क्यों दलितों के साथ भेदभाव

संविधान में तो सबको एक समान जीने का अधिकार फिर क्यों दलितों के साथ भेदभाव

भारत देश में शुरू से ही दलितों को छोटा दिखाते आया जा रहा है। आज़ादी से पहले की बात की जाए या बाद की, देश में दलितों की कहानी कुछ बदली नहीं है। आज भी भारत के ऐसे कई राज्य है जहां लोगो को उनकी छोटी जाति होने की वजह से अपने से बड़ी जाति के लोगो के सामने झुकना पड़ता है। गाँव हो या शहर, हर जगह यह भेदभाव देखने को मिलता है। गाँवो में आमतौर पर लोगो में ज़्यादा भेदभाव दिखाई देता है। दलित लोगो से सही से बात करना, उन्हें अपने साथ बैठाना। ऐसी चीज़े उनके साथ आए दिन होती रहती है। लोगो में छुआछूत बहुत है। अगर कोई दलित या छोटी जाति का इंसान खुद से बड़ी जाति के व्यक्ति को छू लेता है तो उसे अपराध माना जाता है। उसे सज़ा दी जाती है।यहां तक की उसे मारा भी जाता है। ये घटनाएं आए दिन होती रहती है। कुछ सामने जाती है और कुछ नहीं आती।

पानी भरने से रोका जाता है इटवा गाँव के लोगो को

इटवा, यूपी के चित्रकूट जिले रामनगर ग्राम पंचायत का एक गाँव है। इसे दलित बस्ती भी कहा जाता है। गाँव में 1000 लोगो का परिवार रहता है। गाँव में लोगो को पानी की बहुत परेशानी है। सरकारी हैंडपंप सूख चुके है। जिसकी वजह से लोगो को एकदो किलोमीटर पैदल चलकर, नदी से पानी भरकर लाना पड़ता है। लोगो का कहना है कि जिन हैंडपम्पों में पानी आता है , वह उनकी बस्ती से बाहर है। उस जगह ब्राह्मण रहते है। जहां से वह लोग पानी नहीं भर सकते क्यूंकि वो हैंडपंप बड़ी जाति के लोगो के लिए है। गाँव के लोग बताते हैं कि जब कभी पानी का टैंकर उनके गाँव से होकर गुज़रता था , तो वह उसे रुकवाकर पानी भर लेते थे। लेकिन जब भी वह पानी भरते तो बड़ी जाति के लोग उन्हें धक्का मारकर गिरा देते। इटवा की निवासी शांति देवी कहती हैहैंडपंप दोतीन सालो से खराब पड़ा है  ,जब प्रधान को पानी के लिए कहा जाता है तो वह कहता है कि वह उसका काम नहीं है ” .  जबकि वायर की 7 जून 2019 की रिपोर्ट में प्रधान का कहना है कि वह हैंडपंप सही करवा रहे है। साथ ही रामनगर के बीडीओ कहते हैं कि आज छुआछूत जैसी कोई समस्या नहीं है , लोग पढ़ेलिखे है। लेकिन पढ़ेलिखे होने के बाद भी भेदभाव तो हो ही रहे है तो रामनगर के  बीडीओ द्वारा भेदभाव को नकारना बिल्कुल गलत है।  

महिला के अंतिमसंस्कार को रोका गया

24 जुलाई 2020 को यूपी के आगरा जिले के रायभा गाँव में महिला का अंतिमसंस्कार किया जा रहा था। महिला का पति राजेश बेजनिया जब अपनी पत्नी को अग्नि देने जा रहा था तभी कुछ उच्च वर्ग के लोग उसे रोक देते है। उनक कहना था कि दलित जाति के लोगो के लिए ये शमशान घाट नहीं है। मज़बूरन महिला के पति को महिला का शव ताजमहल के पास काकरपुर गाँव लेकर जाना पड़ता है।

वहीं वह अपनी पत्नी का अंतिमसंस्कार करता है। जैसे ही यह घटना सामने आती है , बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती इस बात का विरोध करती है। 28 जुलाई 2020 को मायावती ट्वीट करते हुए कहती हैयू.पी. में आगरा के पास एक दलित महिला का शव वहाँ जातिवादी मानसिकता रखने वाले उच्च वर्गों के लोगों ने इसलिए चिता से हटा दिया, क्योंकि वह शमशानघाट उच्च वर्गों का था, जो यह अतिशर्मनाक अतिनिन्दनीय भी है। इस जातिवादी घृणित मामले की यू.पी., सरकार द्वारा उच्च स्तरीय जाँच होनी चाहिये तथा दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिये, ताकि प्रदेश में ऐसी घटना की फिर से पुनरावृति ना हो सके, बी.एस.पी की यह पुरजोर माँग है।इंडिया.कॉम की 28 जुलाई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार एसएसपी बबलू कुमार ने बताया कि सीओ अछनेरा को इस मामले की जांच सौंपी गई है। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

दलित होकर मंदिर में जाने से लड़के को गोली मार दी गयी

विकास अपने पिता ओमप्रकाश जटव के साथ साथ मंदिर गया था। 7 जुलाई 2020 की  टेलीग्राफ की रिपोर्ट में विकास के पिता बताते है कि जब वह लोग मंदिर में पूजा करने गए थे तब  उन्ही के गाँव के लड़के हरिओम और कुछ लड़को ने विकास को धमकी दी थी। कहा था की यह मंदिर दलित लोगो के लिए नहीं है। लेकिन विकास ने उन लड़को की बात नज़रअंदाज़  कर दी   वही लड़के कुछ समय बाद विकास के घर जाते है। उसे बाहर बुलाकर गोली मारते है और वहां से भाग जाते है। विकास के पिता पुलिस के पास एफआईआर कराने भी जाते है लेकिन  पुलिस उनकी एफआईआर नहीं लिखती।  

जहां दिन के उजाले में किसी को भी गोली मार दिया जाता हो , वहां कोई इंसान सुरक्षित कैसे रह सकता है। पुलिस भी अपराधों को नज़रअंदाज़ करती है। सरकार का ऐसी घटनाओ की तरफ ध्यान तक नहीं जाता। कब तक छोटीबड़ी जाति के नाम पर लोग ऐसे ही किसी को भी मारते रहेंगे। 

” दलित लाइफ मैटर ” 

दलितों के साथ लगातार बढ़ते अपराधों को देखते हुए सोशल मीडिया परदलित लाइफ मैटरके नाम से कैंपेन शुरू किया गया। लोगो नेदलित लाइफ मैटर”  हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए ट्वीट किए। इससे पहले दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को लेकर किसी ने बातचीत नहीं की। भेदभाव और दलितों की खबरे अब लोगो के लिए इतनी आम हो गयी है कि लोगो और सरकारों को भी यह समस्या नहीं लगती। 

ये सब देखते हुए ट्विटर पर एक दलित वॉइसपेज बनाया गया।  यह दलितों के साथ देश भर में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ उठाता है। भेदभाव की आवाज़ युवा से लेकर सरकार इसके ज़रिए सुनती है। आप भी चाहें तो भेदभाव की खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए इस पेज के साथ जुड़ सकते है।  यहां से सारी जानकारियां ले सकते है।

आखिर में यह सवाल रह जाता है कि संविधान में तो सबको एक समान जीने का अधिकार दिया गया है। फिर आज़ादी के इतने सालो के बाद भी ये भेदभाव क्यों हो रहा है। देश विकास के रास्ते पर तो जा रहा है पर समानता कही भी नहीं है। सरकार ज़्यादातर जाति के मामलो में चुप ही रहती है। क्या सरकार का फ़र्ज़ नहीं बनता की वो इन मामलो मे भी बोले। जब तक सरकार की तरफ से कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की जाएगी तब तक यह भेदभाव ऐसे ही चलता रहेगा।