खबर लहरिया ताजा खबरें मेले में मनोरंजन या राजनीति? देखिए राजनीति रस राय में

मेले में मनोरंजन या राजनीति? देखिए राजनीति रस राय में

इस बार अपने शो पर बात करने वाली हूं मेले पर होने वाली राजनीति पर। बांदा जिले का बहुत ही विशाल, धार्मिक और मशहूर मेला सिमौनी धाम की बात करती हूं। हर साल दिसंबर की 15 से 17 तारीख तक लगने वाला मेला दिनों दिन राजनीतिक तरक्की कर रहा है। सुरुवात से ही इस मेले में राजनीतिक लोगों का बोलबाला रहा है। सपा शासन काल में सिमौनीधाम में लगने वाले मेले को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने राष्ट्रीय मेले का दर्जा दिया। बताया जा रहा है कि सन 1967 से इस मेले की शुरूआत हुई थी। इस साल भी मेले में राजनीतिक लोगों ने धर्म और आस्था की आड़ में राजनीति करने से बाज नहीं आये।

भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश से प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह 16 दिसंबर को मेले में पहुंचे थे। मीडिया से रूबरू होते हुए उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस पार्टी नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ लोगों के बीच भ्रम फैला रही है। सभी पार्टियों को इस बिल का समर्थन करना चाहिए। वहां पर मंत्री को देखने के लिए जुटी भीड़ ये सब बातें सुनकर हैरान और परेशान हो रही थी जबकि मेले बाँदा: सिमौनी धाम मेले में भगवा राजनीति का बोलबालामें मनोरंजन करने के साथ साथ मिठाई, गन्ने और झूले का आनंद लेना चाहिए था। न खुद आनन्द लिया और न ही लेने दिया।

लोग साल भर इस मेले का इंतज़ार करते हैं कि उनके रोजमर्रा के दिनों में एक दिन तो ऐसा हो जब वह बेफिक्र होकर मौज मस्ती करें। और ऐसे राजनीतिक लोग उनका मजा किरकिरा कर देते हैं। उससे बढ़कर एक अचम्भा और देखने को मिला। जादूगरी से लोगों का मनोरंजन करने वाला जादूगर योगा अपनी जादूगरी में योगी सरकार के कलर और सरकार का गुण गान करता रहा। जबकि इस बात को लोग समझ रहे थे इसीलिए कई लोगों ने कह डाला कि यहां भी लोग राजनीति को नहीं छोड़ते।

अपनी रिपोर्टिंग के दौरान मैंने ये भी पाया कि बांदा निवासी एक व्यक्ति ने कहा कि कुछ लोग व्यापार, कुछ लोग मनोरंजन तो कुछ लग राजनीति भी करने आते हैं। लाखों की संख्या में जुटी भीड़ के बीच अपनी भाषणबाजी से प्रभावित करते हैं। खुद में फेमस होते हैं। इसीलिए श्रमदान की आड़ में जिले समेत भारतीय जनता पार्टी के कई छोटे बड़े नेता और विधायक नज़र आये। पुरुष ही नहीं महिलाएं भी नज़र आईं। इसके अलावा दूसरी पार्टी के लोग नज़र नहीं आये। ये तो स्पष्ट है कि जिस पार्टी की सरकार होती है वही नेता अपनी राजनीतिक ताकत का अंदाज़ा लगाने आते हैं।

सरकारी योजनाओं के स्टॉल भगवा रंग से रंगे थे। पूरे मेले में ज्यादातर टेंट भगवा रंग से नहाए थे। यहां तक कि तेज आवाज करने वाला माइक भी। इस पूरे मामले को लेकर भाजपाई श्रमदानी मीडिया के कैमरे पर बाईट देने से कतराते रहे। बहाने से कहते रहे कि अवधूत महाराज नाराज हो जाएंगे। उन्होंने सबको मना कर रखा है। खैर चाहे जो भी कहा जाए पर इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि राजनीति और भगवा रंग सिर चढ़ कर बोल रहा था। मेरी रिपोर्टिंग और लोगों की बातचीत से ये पता चलता है कि मेले में जुटा हुजूम, चाहे आम लोगों का हो या राजनीतिक लोगों का सब अपनी चाह में आये थे। आम लोग कई दिनों की भूख मिटाने और कई दिन के खाने की व्यवस्था करने तो कुछ लोग रोजगार करने आये थे तो वहीं राजनीतिक लोग इन भूखे लोगों के दिल में ऐहसान के रूप में जगह बनाने। मेरा सवाल उन लोगों से है जो गरीब और मासूम लोगों पर धर्म और भूख की आड़ में एहसान का बोझ लादते हैं जिसको वह लोग जिंदगी पर लाद कर चलते हैं, क्या इनको अपने अधिकारों के साथ जो सरकारी योजनाओं में शामिल हैं जीने का हक़ नहीं है। आपको इनका हक़ छीनकर मीठी छूरी चलाने में क्यों इतना आनंद आता है। और भोली जनता, आखिरकर कब तक आप इनके कारनामों से जानबूझकर अनजान बने रहना चाहती है। तो दोस्तो इन्ही सवालों और विचारों के साथ मैं लेती हूं विदा। अगली बार फिर आउंगी एक नये मुद्दे के साथ। तब तक के लिए नमस्कार!