खबर लहरिया Blog Emergency: आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: क्या है आपातकाल, क्या हुआ था आज के दिन 50 साल पहले? जानिए पूरी जानकारी 

Emergency: आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: क्या है आपातकाल, क्या हुआ था आज के दिन 50 साल पहले? जानिए पूरी जानकारी 

आज आपातकाल को 50 साल पूरे हुए हैं। आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद के हाईकोर्ट को बताया जाता है। यह आपातकाल 1975 के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया था।

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सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार:आइबीसी)

दर असल इंदिरा गांधी के शासन काल में यानी साल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आज इस आपातकाल को 50 साल पूरे हो गए। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। वर्तमान में आज के दिन देश की सरकार (भाजपा) देशभर में काला दिवस और “संविधान हत्या दिवस” मना रही है। अब विस्तार से जानते हैं कि आपातकाल क्या है?,इसे क्यों लगाया गया था?,आपातकाल में क्या-क्या हुआ? 

क्या है आपातकाल (Emergency)

आपातकाल एक ऐसी स्थिति होती है जब देश की सुरक्षा,कानून व्यवस्था,या कोई बड़ा संकट जैसे-युद्ध,दंगे या देश में सरकार का कामकाज खतरे में पड़ जाना आदि। ऐसे में सरकार को एक खास अधिकार मिल जाते हैं ताकि वह जल्दी और मजबूती से हालात को संभाल सके। इस दौरान आम लोगों को कुछ अधिकार सीमित किए जाते हैं जैसे-बोलने या अखबार छापने की आजादी नहीं होती। एक तरह से देश की आधी चलती फिरती स्थितियों को बंद कर दिया जाता है।

आपातकाल की घोषणा होते ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 36,37,38,39,40 और 42 में सूचीबद्ध सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं और ये अधिकार तब तक स्थगित रहते हैं जब तक आपातकाल समाप्त नहीं हो जाता। इसके परिणामस्वरूप कार्यकारी अधिकारी इन अधिकारों को विरुद्ध कोई भी कदम उठा सकते हैं और उसके अनुसार कानून बना सकते हैं।

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक की आपातकालीन भारत में पहली आपातकालीन की स्थिति थी।

आपातकाल क्यों लगाया गया था 

आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को बताया जाता है। उस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार अभियान में कदाचार (दुर्व्यवहार और कुप्रबंधन) का दोषी करार दिया गया था। दरअसल, 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी बड़े अंतर से जीती थीं। पार्टी को भी बड़ी जीत दिलाई थी। राजनारायण (भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ) ने इंदिरा की जीत पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है। मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था और उन्होंने अपनी सत्ता बचाने के लिए देश का और विपक्षी दलों का, प्रेस का और तमाम बढ़ते संगठनों का आपातकाल के जरिए रोक लगा दिया गया। पूरे आपातकाल के दौरान नागरिकों के तमाम संविधान और मौलिक अधिकारों को कानूनन निलंबित रखा गया। इंदिरा गांधी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम देश में कई ऐतिहासिक घटनाओं की वजह बना। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद समय था। 25 जून 1975 को घोषणा के बाद 21 मार्च 1977 तक यानी की करीब 21 महीने तक भारत में आपातकाल लागू रहा।

आपातकाल में क्या-क्या हुआ 

– आपातकाल के दौरान देशभर में चुनाव स्थगित हो गए थे।

– प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी रख दिये गये थे। उस सेंसर अधिकारी की अनुमति के बिना कोई खबर छप ही नहीं सकती थी। अगर किसी ने सरकार के खिलाफ खबर छापी तो उसे गिरफ्तारी झेलनी पड़ी। 

– पांच जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण जैसे बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया।

– इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था कि जेलों में जगह ही नहीं बची।

– आपातकाल की घोषणा के साथ हर नागरिक के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। लोगों के पास न तो अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार था, न ही जीवन का अधिकार।

आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस ने लोगों को प्रताड़ित किया, जिसकी कहानियां बाद में सामने आईं।

इसके अलावा देश के आम नागरिकों को भी इस आपातकालीन स्थिति के कारण कई मुश्किलें झेलनी पड़ी जो कभी दुनिया के सामने आ ही नहीं पाई।

आज के दिन काला दिवस “भाजपा” 

आपातकाल के विरोध में भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) 25 जून को आपातकाल की 50वीं बरसीं को संविधान हत्या दिवस के रूप में मना रही है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नई पीढ़ी को आपातकाल के काले अध्याय से अवगत कराना है। भाजपा सरकार द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि यह दिन “संविधान का हत्या” दिवस है। भाजपा सरकार अलग अलग स्थानों में जहां उनकी सरकार है जैसे-उत्तरप्रदेश,छत्तीसगढ़,हरियाणा आदि राज्यों में आपातकाल का विरोध करते हुए आज के दिन को काला दिवस के रूप में मना रहे हैं।

पर आज भी यही सवाल उठता है कि इसमें आम जनता का क्या भागीदारी या उनके कल्याण और सुविधाओं में क्या कोई बदलाव नजर आ रहा है? सरकार चाहे किसी की भी हो इसमें आमजनों की तकलीफ कम होते हुए नहीं दिखाई पड़ती।इंदिरा गांधी के समय आपातकालीन घोषित तो था जो निंदनीय है गलत है जिसका अगले चुनाव में जनता ने उनको करारा जवाब भी दिया लेकिन अगर हम देखें कि आज तो अघोषित तरीके से ही एक आपातकाल चल रहा है। धर्म के नाम पर लड़ाई,कई दंगे,मोब लिनचिंग लागतर देखने को मिल रही है। मेहनतकश गरीब तबके के लोगों के घरों और दुकानों पर लगातार बुलडोज़र चलाया जा रहा है। अपने मांगो को लेकर प्रदर्शन कर रहे चाहे वो शिक्षक हो या किसान उन्हें आंदोलन से उठा दिया जा रहा है,लाठियां बरसाई जा रही हैं। चुनाव प्रणाली में भी निष्पकता और पारदर्शिता समाप्त हो रही है। दलितों और महिलाओं पर तेजी से हिंसा बड़ती दिख रही है। आदिवासियों की जल जंगल ज़मीन छिनी जा रही है। विकास के नाम पर जंगले उजाड़े जा रहे हैं।वर्तमान स्थिति में भले ही आपातकालीन की स्थिति नहीं है लेकिन वर्तमान में अघोषित तरीके से आपातकालीन चलते देखी जा सकती है। 

 

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