इस चुनाव कांग्रेस सरकार ने ‘नई योजनाओं’ को अपना हथियार बनाया है जहां उन्होंने जनहित के लिए नई-नई योजनाएं लॉन्च की है।
#RajasthanElection2023: राजस्थान 200 विधानसभा सीटों पर वाला राज्य है जहां दशकों से कांग्रेस का शासन रहा है। इस समय सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 अब करीब आ चुका है। कांग्रेस की सबसे बड़ी टक्कर बीजेपी से है जिसका देश के अधिकतर राज्यों में दबदबा है। यह कांग्रेस के राहुल गांधी बनाम बीजेपी का नेतृत्व करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी के बीच सीटों की जंग है।
इस चुनाव कांग्रेस सरकार ने ‘नई योजनाओं’ को अपना हथियार बनाया है जहां उन्होंने जनहित के लिए नई-नई योजनाएं लॉन्च की है। चुनाव की रिपोर्टिंग के लिए हमने भी राजस्थान का रुख किया। कोशिश की, कि जान पाए नई योजनाओं व सरकार की लोगों तक पहुंच जिसकी चर्चा सरकार इस चुनाव में ढोल-बजाकर कर रही है।
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‘बाल विवाह’ एक बार फिर बना मुद्दा
चुनाव का समय आता है और राजनेताओं को बाल विवाह का मुद्दा याद आ जाता है। यूं तो साल 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित हो गया था लेकिन इसके बावजूद भी राज्य में बाल विवाह को लेकर खबरें सामने आती रहती हैं। इस चुनाव भी कांग्रेस के नेताओं के मुख से बाल विवाह का मुद्दा सुनने को मिला।
ऐसे में हमने ‘बाल विवाह’ के बारे में और गहराई से जानने के लिए भंवरी देवी से बात की। वह सामजिक कार्यकर्ता हैं व लगभग 30-35 सालों से बाल विवाह को रोकने को लेकर कार्य कर रही हैं। जब हमने उनसे पूछा कि बाल विवाह को लेकर क्या कभी उन्हें सरकार से किसी भी तरह की मदद मिली है तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया। कहा, आज तक उन्होंने बाल विवाह को रोकने के खिलाफ जो भी लड़ाई लड़ी रही है, अकेले लड़ी है। इसमें किसी ने उनकी मदद नहीं की, किसी ने उनका साथ नहीं दिया।
इस किसी में वे लोग व राजनेता भी शामिल हैं जो हमेशा समर्थन की बात तो करते हैं पर ज़रूरत पड़ने पर उनकी परछाई तक नज़र नहीं आती। पर जब चुनाव आता है तो खुद को केंद्र में रखने के लिए यही लोग कार्यकर्ताओं के पीछे-पीछे उनकी मेहनत के ज़रिये जनता का वोट बटोरने चले आते हैं।
स्क्रॉल.इन की मार्च 2023 की प्रकाशित रिपोर्ट बताती है, पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-21 में, राजस्थान में 20-24 साल की 24.5% महिलाओं ने कहा कि उनकी शादी 18 साल की होने से पहले हो गई थी। आंकड़ों से पता चलता है कि यह 2015-16 में 35.4% और 2005-06 में 65.2% से काफी कम हो गया है।
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विकास कुछ मिनटों दूर है
भंवरी देवी से मिलने के बाद हम उनके गांव से सिर्फ पांच मिनट की दूरी पर बसी एक बस्ती की तरफ गए जो जयपुर के पलदी मीणा के अंदर आता है। बस्ती का नाम वहां के लोगों के अनुसार पड़ा। रास्ता कच्चा था और आस-पास कूड़े का ढेर, जो बहुत बदबू कर रहा था। रस्ते को पार किया तो वहां बस्तियों में भी बंटवारा दिखा। लोग दो बस्तियों में बंटे हुए थे लेकिन कहीं भी विकास नहीं था। एक बस्ती के पास शौचालय था तो दूसरी बस्ती जिसे ढोलक समाज के नाम से जाना जाता है, वहां ये सुविधा नहीं थी। सड़क पर नाले का पानी बह रहा था। सड़क कच्ची थी।
जहां हम पांच मिनट पहले थे, वहां के मकान पक्के और ऊँचे थे। दीवार रंगीन थी और घरों के सामने चार पहिया गाड़ियां खड़ी हो रखी थीं। बस्ती को देखा तो उजड़े मकान थे जो बहुत मुश्किल से टिके हुए थे।
न पानी, बिजली, शिक्षा, इलाज और न ही शौचालय….. किसी भी चीज़ की सुविधा नहीं थी। महिलाएं खाली मैदान में शौच के लिए जाती हैं जिस रास्ते का हमने पहले ज़िक्र किया था। वो भी तब जब अँधेरा हो या बहुत सुबह में, इसके आलावा दिन में वह शौच के लिए नहीं जा पातीं।
हमने देखा महिलाओं ने नहाने के लिए एक अलग से छप्पर डालकर जगह बनाई हुई थी, जहां वे नहाती हैं। जब सरकार कुछ नहीं करती तो वह ही अपनी सुविधा के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेते हैं, बेशक वह कुछ समय के लिए ही क्यों न हो। इसी संबंध में एक लगभग 50 वर्षीय महिला कहतीं,
‘पानी, न खाना, न नहाना कुछ नहीं है यहां पर। बेशर्मी नहाना, बेशर्मी चलना। कितने लोग आते हैं और फिर चले जाते हैं। इतना नहीं सोचते की गरीब हैं, इनके लिए नहाने-धोने के लिए कुछ बना दें।’
फिर वह अपने घर की तरफ मुड़ती हैं। देखने में बस घर का ढांचा रह गया है। दीवारों पर दरारें आ चुकी हैं और रंग तो कह नहीं सकते, सिर्फ काले धब्बे दिखाई देते हैं। ये काले धब्बे धुएं के हैं जो मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने के दौरान निकलते हैं।
वह क़दमों को तेज़ करते हुए अपने घर में जाती हैं और हाथों में एक थैला लिए हुए आती हैं, जिस पर लिखा होता है ‘कांग्रेस राहत कैम्प।” थैले से वह कई योजनाओं के पैम्फलेट निकालते हुए पूछती हैं कि यह सब क्या है, बता दो। इससे क्या मिलेगा। कहतीं, जयपुर में कांग्रेस ने राहत कैंप लगाया था तब वह वहां गई थी जहां से उन्हें ये सारी चीज़ें मिलीं लेकिन समझ नहीं आता कि वह इसका इस्तेमाल कैसे करें।
आंखो में उम्मीद के सवाल थे और शायद यह भी कि शायद कुछ हो जाए। मैनें उन उस पैम्फलेट पर लिखी योजनाओं के बारे में उन्हें बताया और कहा कि यह सिर्फ जानकारी के लिए है। आपको अगर लाभ उठाना है तो पहले आपको योजनाओं के लिए फॉर्म भरना होगा। वह सुनकर थोड़ा चिंतित हो गईं फिर कहा ठीक है।
कुछ देर बाद कहतीं, बस यहां पर कुछ करवा दीजिये। ‘सरकार ने हमें यहां लाकर पटक दिया है। 20 साल हो गए पर उनकी बस्ती के लिए कुछ नहीं किया।’
बस्ती में स्कूल नहीं है, स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं के लिए क्लिनिक नहीं है।
इन बस्तियों या इलाकों में चुनाव नहीं पहुंचा है। शायद जब चुनाव के दिन और करीब आये तो नेता उनके पास पहुंच जाए। सवाल यह भी है कि क्या ‘कांग्रेस गारंटी यात्रा’ की तरह नेताओं का आगमन उन्हें विकास की गारंटी दे सकता है या नहीं?
अब क्योंकि बस्ती मुख्य शहर से थोड़ा अंदर की तरफ है तो चुनाव को लेकर वहां कोई ताम-झाम नहीं दिखा लेकिन इससे इस बात को नहीं भुलाया जा सकता कि सिर्फ 5 मिनट की दूरी पर बसी दो जगहों में इतना बड़ा अंतर कैसे हो सकता है।
इस चुनाव कांग्रेस ने योजनाओं की लड़ियां लगा दी हैं पर राहत जिस तक पहुंचनी थी, पहुंचनी है….. वह न तो पुरानी योजनाओं के ज़रिये हो पाया और जो नई योजनाएं हैं वह तो बस टीवी पर बने रंगीन एड तक ही है।
बता दें, 23 नवंबर को राजस्थान में मतदान होना है व 3 दिसंबर को मतगणना होगी।
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