खबर लहरिया चित्रकूट चित्रकूट : डायरिया से जब दो बहनों की हो गई मौत, तब जागा स्वास्थ्य विभाग

चित्रकूट : डायरिया से जब दो बहनों की हो गई मौत, तब जागा स्वास्थ्य विभाग

डायरिया बीमारी से मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग की नजर उस गांव में गई तो लेकिन अब फिर से गहरी नींद में सो गया। चित्रकूट जिला, मानिकपुर के गांव चूल्ही में 19 अगस्त को दो सगी बहनों की मौत हो गई और तीसरी को किसी तरह बचा लिया गया। इस घटना का ठीकरा आशा कार्यकर्ता ने पीड़ित परिवार के ऊपर फोड़ दिया। हालांकि ये जिम्मेदारी पूरी तरह से गांव की आशा कार्यकर्ता और स्वास्थ्य विभाग की है।

मानिकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से करीब बीस किलोमीटर दूर जंगल के बीच बसा यह गांव है। पक्की सड़क से चार किलोमीटर के बीच जंगल को चीरता हुआ रास्ता इस गांव को जाता है जो मिट्टी और पत्थरों से भरा पूरा पड़ा है। लोग ज्यादातर पैदल यात्रा करते हैं या फिर किसी के पास साइकिल या मोटरसाइकिल हो तो यह उनका एक मात्र साधन है।

ये भी देखें – Lumpy Skin Disease : लंपी वायरस से 67,000 मवेशियों की जान, स्वदेशी वैक्सीन ‘Lumpi-ProVacInd’ को आने में लगेंगे 3-4 महीने

मृतक लड़कियों का पिता राजकिशोर बताता है कि घटना के दिन वह मजदूरी करके वापस छह बजे घर आया। देखा कि बड़ी बेटी राधिका उम्र छह साल बीमार है। उल्टी और दस्त से बेहाल लड़की को लेकर किसी तरह साधन की व्यवस्था करके मानिकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा। वहां से जिला अस्पताल चित्रकूट के लिए रेफर कर दिया गया और वहां उसका इलाज शुरू हो गया। डॉक्टरों ने कहा कि लड़की को डायरिया हुआ है। 19 से 22 अगस्त तक भर्ती रही। कम से कम दस बॉटल चढ़ाई गईं और रातो दिन इलाज चलता रहा।

मृतक लड़कियों की मां भोलाबाई ने बताया कि बड़ी बेटी राधिका को ले जाने के बाद सबसे छोटी बेटी निर्मल उम्र 2 साल को उल्टी दस्त शुरू हो गई। गांव में ही आशा द्वारा मिली जिंक और ओआरएस का घोल बनाकर पिलाती रही लेकिन कोई राहत नहीं मिली। अंत में 8 बजे रात में निर्मल खत्म हो गई। उसके बाद एक और बेटी शीतल उम्र तीन साल को भी उल्टी दस्त शुरू हो गई। वह बिटिया रात भर उल्टी दस्त में परेशान रही। घर में अकेली मां इन बेटियों की देखरेख कर रही थी जो खुद नौ महीने की गर्भवती है। उस दिन बारिश भी बहुत तेज थी। एक बेटी की लाश और दूसरी बेटी की गम्भीर नाज़ुक स्थिति में कैसे देख सकती थी। गांव में पड़ोसियों से मदद मांगी कि उसकी बेटी को उसके पिता के पास पहुंचा दें। आशा कार्यकर्ता शांति से चिरौरी बिनती करती रही लेकिन उसका सुनने वाला कोई नहीं था। उसकी आँखों के सामने सुबह 6 बजे शीतल भी मौत की नींद सो गई। दो बेटियों की लाश को दफनाया और पिता तो मुंह भी नहीं देख पाया।

ये भी देखें – हमीरपुर : बाढ़ के बाद जलभराव से जमा हुआ मलवा , फैली गंदगी

इस मामले पर आशा कार्यकर्ता शांति से बात हुई। शांति कहती है कि उस महिला के घर साफ सफाई नहीं है जबकि उसके द्वारा बहुत जागरूक किया गया है। घटना के बाद प्रशासन आया है तो उसके घर की साफ सफाई कराने का दबाव दिया गया। कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया गया। घटना के पहले भी गांव में जागरूक किया गया। दवाई का छिड़काव किया गया। अब घटना के बाद पूरे गांव में दवाई का छड़काव हुआ है। पानी की जांच के लिए सैंपल भेजा गया है।

जिस बात की सच्चाई है वह यह है कि अगर गांव का रास्ता इतना दुर्गम न होता तो उन लड़कियों की जान भी बचा ली गई होती। एम्बुलेंस क्यों नहीं बुलाने के सवाल पर जवाब मिला कि एम्बुलेंस बुलाना उसके लिए रिस्की था क्योंकि एम्बुलेंस भी उनको सही रास्ते पर बुलाना पड़ता है। चूंकि रास्ता ठीक नहीं था ऐसे में अगर एम्बुलेंस फंस जाती तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। चाहे किसी की जान भले ही क्यों न चली जाए।

ये भी देखें – टीकमगढ़ : गाँव में फैली उल्टी-दस्त की बीमारी, दर्जनों लोग पड़े बीमार

 

‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’

If you want to support  our rural fearless feminist Journal   ism, subscribe to our  premium product KL Hatke