खबर लहरिया Blog चित्रकूट : नाबालिगों ने लगाया अध्यापक पर छेड़खानी का आरोप, परिजनों पर पड़ा दबाव तो बदला बयान

चित्रकूट : नाबालिगों ने लगाया अध्यापक पर छेड़खानी का आरोप, परिजनों पर पड़ा दबाव तो बदला बयान

चित्रकूट जिले के मानिकपुर क्षेत्र में पढ़ने वाली नाबालिग छात्राओं ने अपने अध्यापक पर छेड़खानी का आरोप लगाया गया है। वहीं कई लोगों द्वारा मामले को दबा आरोपी को बचाने की पूरी तरह से कोशिश की जा रही है।

manikpur THANA

साभार- खबर लहरिया

चित्रकूट जिले के थाना मानिकपुर क्षेत्र में 20 मार्च को नाबालिग लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने का मामला सामने आया है। खबर लहरिया की रिपोर्ट के अनुसार, मानिकपुर क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय के अध्यापक द्वारा स्कूल की बच्चियों के साथ आमतौर पर छेड़छाड़ की जाती थी। ऐसा बच्चियों का आरोप है। आरोपी अध्यापक का नाम मोहित कुमार बताया गया। प्राथमिक विद्यालय के सहायक अध्यापक के रूप में मोहित की पोस्टिंग 30 जनवरी 2021 को हुई थी।

गलत तरह से छूता था हमें – बच्चियों का आरोप

मानिकपुर क्षेत्र की गांव की आबादी ज़्यादातर आदिवासी लोगों की हैं। उन्हीं लोगों की अधिकतर बच्चियां स्कूल में पढ़ाई के लिए जाती हैं। बहुत-सी बच्चियों का आरोप है कि अक्सर अध्यापक द्वारा उनके साथ अश्लील हरकतें की जाती थी। आरोपी अध्यापक पहले कुछ बच्चों की जल्दी छुट्टी कर देता था। फिर दो-तीन बच्चियों के साथ अपमानजनक व्यव्हार करता था। उनके गुप्तांगो को स्पर्श करने की कोशिश करता। उन्हें गलत तरह से छूता। उनके करीब आने की कोशिश करता।

इन सब के दौरान एक बार स्कूल के ही एक विद्यार्थी ने उसे ऐसा करते हुए देख लिया। जब उसने कहा कि वह उसके दुष्ट कार्यों के बारों में सबको बता देगा तो आरोपी अध्यापक द्वारा उसकी पिटाई की गयी।

मामले को लेकर गांव वालों में दिखा गुस्सा

MANIKPUR AREA VILLAGE

मानिकपुर क्षेत्र का गाँव

बच्चियों ने अध्यापक द्वारा की जा रही गलत हरकतों के बारें में अपने परिजनों को बताया। धीरे-धीरे यह बात पूरे गाँव में फ़ैल गयी। सबकी ज़बान पर एक ही बात थी कि “अध्यापक होकर ऐसी हरकत है। कैसे भरोसा करें और किस पर भरोसा करें। बच्चों को पढ़ाने भी ना भेजें। डर भी लगता है।” परिवारों का कहना था कि क्यूंकि वह छोटी जाति के हैं तो उनकी बात पर कोई यकीन भी नहीं करेगा। सब उन्हें लालची और झूठा ही कहेंगे।

परिजनों ने डर से बदला अपना बयान – लोगों का कहना

जब खबर लहरिया की रिपोर्टर द्वारा बच्चियों के परिजनों से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि जो कुछ भी उनके द्वारा कहा गया। वह सब गुस्से में कहा गया था। वह कहते हैं कि,”हम गरीब लोग है, किसी तरह से गुज़ारा करते हैं। बड़े लोग हैं वो, हम कहां उनसे टक्कर ले पाएंगे। हमारे साथ कोई भी हादसा कर सकते हैं।”

दूसरी बच्ची के परिवार वालों का कहना था कि उनकी बेटी दूसरी कक्षा में पढ़ती है। उनकी बच्ची को क्या पता कि क्या सही है और क्या गलत। वह फिर बात को बदलते हुए कहते हैं कि उस समय तो वह अपनी बेटी की बात मान गए थे। उन्होंने कहा,“बच्चे हैं, बोल गए।”

मानिकपुर क्षेत्र का गाँव

मानिकपुर क्षेत्र का गाँव

तीसरी बच्ची की माँ का कहना था कि,“हो गया, अब क्या होगा। हम तो लड़ नहीं सकते। क्या होगा रहने दीजिये। गरीब लोग हैं। हम कुछ नहीं कर सकते। हमें अपने बच्चे प्यारे हैं।”

जब इस मामले में थाने के आस-पास के लोगों से बात की गयी तो अलग ही बात सामने आयी। लोगों का कहना था कि पुलिस द्वारा परिजनों को बुलाकर समझौता करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था। इस बयान के बाद यह बात तो साफ़ हो जाती है कि दबाव और डर की वजह से ही बच्चियों के परिजनों ने अपनी बात बदली है।

कोई लिखित बयान देने को तैयार नहीं – मानिकपुर थाना प्रभारी

साभार- खबर लहरिया

खबर लहरिया द्वारा मामले को लेकर मानिकपुर थाना प्रभारी शुभाष चंद्र चौरसिया से बात की गयी। उनके अनुसार मामला उनके संज्ञान में आया था। वह और अन्य एक अफ़सर, दोनों गांव में गए थे। लेकिन गांव वाले लिखित बयान देने को तैयार नहीं है। उन्हें थाने में भी बुलाया गया था पर वह नहीं आये। वह कहते हैं कि जब गाँव में से कोई बोलने को ही तैयार नहीं तो वे लोग कार्यवाही किस प्रकार करें। अगर कोई लिखित शिकायत दें तो वह कार्यवाही करने के लिए तैयार है।

बच्चों से बुलवाया गया झूठ – प्रधान अध्यापक

प्रधान अध्यापक अभिजीत सिंह से मामले को लेकर फोन पर बात की गयी। वह साल 2015 से प्रधान अध्यापक के रूप में कार्यरत है। वह कहते हैं कि इन मामलों में ज़्यादा कुछ सच नहीं होता। अगर अध्यापक को ऐसा कुछ करना होता तो वह इस क्षेत्र में आता ही क्यों? वह कहते हैं कि बच्चे झूठ बोल रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि पहले ऐसा कुछ हुआ है तो उन्होंने बात बदल दी क्यूंकि इससे पहले ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी थी।

वह कहते हैं कि गाँव के कुछ आप्रकृतिक तत्वों द्वारा बच्चों से झूठ बुलवाया गया है। गाँव में कुछ न कुछ मामले चलते रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि ,”वह (मोहित) कुछ परोपकार करना चाहते थे, जिसका उन्हें परिणाम मिल गया।” उनका कहना है कि विद्यालय में दो मजरे के बच्चे बैठते हैं। अगर दूसरे बच्चों के साथ ऐसा कुछ हुआ होता तो वह भी बोलते।

प्रधान अध्यापक के पूरे बयान में सिर्फ यह दिखा कि वह अपने स्कूल की छवि और आरोपी अध्यापक को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। कहीं पर भी उनके द्वारा यह नहीं कहा गया कि वह मामले की जांच करवाएंगे। उनके द्वारा सीधे तौर पर आरोपी अध्यापक को सही साबित करते हुए, बच्चियों के आरोपों को झूठा बताया गया।

खबर लहरिया की रिपोर्टर जब बच्चियों से मिलने गाँव जा रही थीं। तब अन्य पत्रकारों द्वारा उन्हें गांव ना जाने की भी सलाह दी गयी। यह कहा गया कि उन्हें मुद्दे को आगे न बढ़ाकर मामले को रफ़ा-दफ़ा कर देना चाहिए ताकि आरोपी अध्यापक की नौकरी बच जाए।

यूपी पोस्को एक्ट के तहत मामलों में आगे

स्क्रॉल इन की 30 सितंबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में पोस्को एक्ट के तहत बच्चियों के खिलाफ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज़ हुए हैं। जो की 7,444 हैं। यूपी के बाद महाराष्ट्र में 6,402 मामले और मध्य प्रदेश में 6,053 मामले दर्ज़ किये गए थे। यह आंकड़े 2019 में हुए अपराधों के मामलों को दर्शाते हैं।

पोस्को एक्ट यानी ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस’, जिसे यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम भी कहते हैं। इसे साल 2012 में लागू किया गया था। साल 2018 में एक्ट में एक संसोधन किया गया था। जिसके बाद 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया।

जब भी बच्चियों और महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले सामने आते हैं। वह बड़ी ही तेज़ी से हर जगह फ़ैल जाते हैं। लेकिन अपराध के खिलाफ बोलने वाले कोई नहीं होते। जो बोलना चाहते हैं, वह शक्ति प्राप्त अधिकारीयों के डर से कुछ कह नहीं पाते। जैसा की हमें इस मामले में भी देखने को मिला। पहले परिजनों ने काफी रोष व्यक्त किया। लेकिन फिर दबाव और डर ने उन्हें उनके बयानों को बदलने के लिए मज़बूर कर दिया। यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसी कई घटनाएं हैं जो डर की वजह से ना तो सामने आ पाती है और ना ही कोई व्यक्ति उन वारदातों पर कुछ बोल पाता है।

आखिर कानून और उसका इंसाफ इस बीच कहां चला जाता है? लोगों में बैठा डर कहीं न कहीं यह बात ज़ाहिर करता है कि कानून से उन्हें कोई सहायता नहीं। अगर होती तो शायद वह चुप नहीं होते। समाज ने वैसे ही गरीब और छोटी जाति के नाम पर लोगों को काफी प्रताड़ित किया है। अब उनके साथ होने वाली घटनाओं को भी कई बार इसी वजह से महत्व नहीं दिया जाता क्यूंकि समाज ने उनकी मुश्किलों को कभी बड़ा ही नहीं माना। आखिर ये शक्तिशाली लोग कौन है जो सच को भी चुप कराने की ताकत रखते हैं? कहां है वो कानून जो इंसाफ देने की बात करता है? जो कहता है कि हर व्यक्ति की समस्या समान है? कानून से उन लोगों को वह विश्वास क्यों नहीं मिल पाता कि लोग अपने डर से उठकर अपनी आवाज़ उठा सकें?

इस खबर को खबर लहरिया के लिए नाज़नी रिज़वी द्वारा रिपोर्ट किया गया है।