खबर लहरिया जिला साहब! रोजगार की तलाश में बन जाते हैं बंधुआ: मज़दूर

साहब! रोजगार की तलाश में बन जाते हैं बंधुआ: मज़दूर

जिला बांदा, ब्लाक कमासिन, ग्राम पंचायत इंगुवा का मजरा झन्ना का पुरवा। 7 दिसंबर को यहां के भूमिहीन और दलित समुदाय के लगभग दो दर्जन मजदूरों को बंधुवा मुक्ति मोर्चा ने प्रशासन की मदद के साथ ईंट भट्ठे से मुक्त कराया। मजदूरों ने बंधुवा मुक्ति मोर्चा को फोन करके सूचना दी थी कि उसे तथा उसके साथियों को अजमेर शहर के समीप पंचशील नगर स्थित भारत नाम के ईंट भट्ठे पर काम करवाने के लिए पांच परिवारों को बंधक बनाकर रखा गया है जिसमें 4 महिला, 11 पुरुष, 6 बच्चे शामिल हैं। मजदूरों का आरोप है कि लगभग तीन महीने तक खाने पीने रहने की समस्याओं का सामना करने के साथ ही मज़दूरी भी मार ली गई। अब वह दाने-दाने को मोहताज़ हैं। मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर बसे इस दुर्गम गांव में करीब एक सैकड़ा घर सभी अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं।

बहुत ही गरीब और भूमिहीन जो पलायन कर मजदूरी करके रोटी का जुगाड़ करते हैं। मजदूर नरेंद्र ने बताया कि लगभग तीन महीने पहले ठेकेदार उन्हें उत्तर प्रदेश के बांदा व चित्रकूट से अजमेर, राजस्थान ले आया था तब से वे भट्टे पर काम कर रहे हैं पर मजदूरों को आवास और पेयजल तक उपलब्ध नहीं करवाया गया । महिलाओं से दुर्व्यवहार किया गया। और मजदूरों ने भी बताया कि वे भट्ठे से काम छोड़कर घर लौटना चाहते थे लेकिन भट्ठा मालिक और ठेकेदार उन्हें घर जाने से रोक रहे थे। अगर वह बाज़ार या भट्ठे के बाहर जाएं तो निगरानी के लिए उनका एक व्यक्ति जाता था। महिला मजदूरों के साथ यौनिक हिंसा करते थे। मना करने पर जान से मारने की धमकी देते थे। महिला मजदूरों ने बताया कि भट्ठे के मालिक और ठेकेदार उनके साथ गलत नियत से घर घुस आते थे।

उनको छूने और हाथ पकड़ने की वारदातें भी की। अश्लील बातें और गालियां देते थे। उनके पुरुष अगर मना करें तो उनके साथ मारपीट, गाली गलौच और जान से मारने की धमकी देते थे। बंधुआ मुक्ति मोर्चा के जनरल सेक्रेटरी निर्मल अग्नि ने फोन पर बताया कि 5 दिसंबर को मजदूरों से बंधुवा बनाये जाने की सूचना मिली। उसके बाद प्रशासन के साथ और मदद से इस मामले को निपटाया। भट्टे से बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाने के लिए मानव तस्करी विरोधी यूनिट और बंधुआ मुक्ति मोर्चा भट्ठे पहुंचे।

मजदूरों का बयान दर्ज कर 7 दिसंबर को देर शाम तक मुक्त कराया और एसडीएम अवधेश मीणा के समक्ष पेश किया गया। एसडीएम ने बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम 1976 के तहत सभी मुक्त बंधुआ श्रमिकों को मुक्ति प्रमाण पत्र प्रदान किया। सभी श्रमिकों को रेलवे स्टेशन के समीप स्थित रैन बसेरे में ठहराया गया है। मजदूर 8 दिसंबर को भारत बंद (किसान आंदोलन को लेकर किया गया) होने के कारण रैन बसेरे में ही फंसे रहे। दूसरे दिन चलकर वह तीन दिन बाद अपने-अपने घर पहुंचे।

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के जनरल सेक्रेटरी निर्मल अग्नि ने यह भी बताया कि अजमेर जिला प्रशासन को प्रति मज़दूर दो लाख रूपये के हिसाब से तत्काल सहायता राशि बंधुआ मजदूरों की पुनर्वास योजना 2016 के तहत प्रदान करने के लिए कहा गया। पुलिस सुरक्षा के साथ उत्तर प्रदेश उनके पैतृक गांव तक पहुंचाने की अपील की गई थी। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल मुक्त बंधुआ मजदूरों के उचित पुनर्वास करने की गुजारिश की। केन्द्र सरकार के पास उचित बजट होने के बाद भी जिला स्तर पर कोरपस फंड नहीं बन पाया है।

लगभग 450 से ज्यादा बंधुआ मज़दूर पिछले तीन साल से पुनर्वास की आस लगाए बैठे है। आज भी निर्मल अग्नि की कई जनहित याचिकाएं इलाहाबाद हाई कोर्ट में विचाराधीन हैं।