खबर लहरिया Blog प्रवर्तन निदेशालय ने किया, मानव अधिकार के लिए लड़ने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खाते ज़ब्त

प्रवर्तन निदेशालय ने किया, मानव अधिकार के लिए लड़ने वाली एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बैंक खाते ज़ब्त

मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने मंगलवार 29 सितंबर को घोषणा की कि उन्हेंभारत में कर्मचारियों को निकालने के लिए मजबूर किया गया है जिसकी वजह से 150 कर्मचारी प्रभावित होंगे। संगठन ने आरोप लगाया कि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके बैंक खातों को ज़ब्त कर लिया गया है। वह सरकारी एजेंसी केउत्पीड़नका शिकार बन रही है। वहीं यह भी बात सामने रही है कि सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही के तहत बैंक खातों को ज़ब्त किया गया है।

सरकार के कदम कोविच हंटकहा गय

मानव अधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया सफल रूप से आठ साल तक काम कर चुकी है। संगठन ने बैंक खातों को ज़ब्त करने के कदम कोविच हंट बताया है यानी बुरी तरह से उनके पीछे पड़ जाने का आरोप लगाया है। सरकार ने फिलहाल इस पर अपना कोई जवाब नहीं दिया है।

सीबीआई ने कहा एमनेस्टी ले रही थी विदेशों से चंदा

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय ( ईडी) ने सीबीआई की तरफ़ से पिछले साल संगठन पर एक एफआईआर दर्ज करवायी थी। जिसकी जांच अलग से चल रही थी। एमनेस्टी पर यह आरोप लगाया गया कि वह विदेशों से पैसा ( चन्दा) ले रही है। साथ ही उसने एफसीआरए कानून को भी तोड़ा है। एमनेस्टी ने अपने बयान में कहा कि यह सारी कार्यवाही सरकार बस हमसे बदला लेने के लिए कर रही है।

एमनेस्टी के निदेशक ने कहा, सरकार कर रही है उन्हें फंसाने की कोशिश

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक अविनाश कुमार ने कहा कि पिछले दो सालों से संस्था के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। बैंक खातों को ज़ब्त करना, कोई अचानक से किया जाने वाला काम नहीं है। प्रवर्तन निदेशालय के साथसाथ सरकारी एजेंसियों द्वारा लगातार उन्हें परेशान किया  जा रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में उन लोगों ने दिल्ली में हुई हिंसा और जम्मूकश्मीर की स्थिति को देखते हुए अपनी आवाज़ उठायी थी। और सरकार से जवाब मांगा था। ऐसा करने पर सरकार ने उन पर ही कार्यवाही कर दी थी। मानों सरकार हर उस आवाज़ को दबाना चाहती हो, जो उनसे सवाल पूछने की हिम्मत करता है।

एमनेस्टी ने कहा, भारतीयों का है उन्हें समर्थन

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा कि हम भारतीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों ही कानूनों का पूरी तरह से पालन करते हैं। साथ ही संगठन का यह भी कहना है कि वह भारत में मानव अधिकारों के कामों को पूरा करने के लिए घरेलू स्तर पर धन इकट्ठा करती है। जिसे एक अलग मॉडल के ज़रिए संचालित किया जाता है। पिछले आठ सालों में चार मिलियन से ज़्यादा भारतीयों ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कामों में अपना साथ दिया है। साथ ही तकरीबन 100,000 भारतीयों ने इसमें धन के रूप में भी अपना योगदान दिया है। इन योगदानों का विदेशी योगदान अधिनियम, 2010 के साथ कोई संबंध नहीं हो सकताएमनेस्टी ने कहा।

एमनेस्टी ट्वीट करते हुए कहती है किवह नोबेल शांति पुरस्कार जीतने का एक हिस्सा रही है। वह खुद को उच्चतम प्रामाणिक मानकों पर रखती है। भारत मे और हर जगह हमारा काम सार्वभौमिक मानवाधिकारों को बनाए रखना है। साथ ही उन लोगों से लड़ना है जो व्यक्तिगत रूप से अन्याय करते हैं

इस दिन मारा गया था एमनेस्टी में छापा

25 अक्टूबर 2018 को वित्तीय जांच एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय ने एमनेस्टी पर छापा मारा था। जो की तकरीबन 10 घण्टों तक चला था। एमनेस्टी ने कहा कि उनके द्वारा छापेमारी में पूरी तरह से साथ दिया गया था। छापे के दौरान मांगे गए दस्तावेज़ और सारी जानकारियां अधिकारियों के सामने रख दी गयीं थीं। यह बताया गया कि छापेमारी के तुरंत बाद ही उनके खातों को जब्त कर लिया गया था और सरकारी अधिकारी उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश कर रहे थे। अब उन्हें किसी भी तरह की प्रेस कॉन्फ्रेंस और रिसर्च ( शोध) के काम के लिए पूरी तरह से रोक दिया गया है।

जब से एमनेस्टी के बंद होने को खबर सामने आयी है, लोगों की बहुत मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिली है।कुछ लोग सरकार पर निशाना साध रहे हैं तो वहीं कुछ लोग अंतरराष्ट्रीय संस्था के काम करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं

 लेकिन फिर भी सवाल तो रहता है कि जो संगठन पिछले आठ सालों से भारत में मानव अधिकारों के लिए काम कर रही है, अचानक से वह आज इतनी गलत कैसे हो गयी? वो भी तब जब संगठन ने दिल्ली हिंसा, धारा 370 और जम्मूकश्मीर के हालात को लेकर सरकार से जवाब मांगा।

क्या देश में सरकार का काम सिर्फ़ आवाज़ उठाने वाले लोगों या संगठन को चुप कराना रह गया है? जब भी कोई मानव हित या सामाजिक समस्या को लेकर सवाल उठता है, उसे जवाब के बदले बस झूठे आरोपों का सामना करना पड़ता है। क्या यही रह गयी देश मे लोगों के लिए अपनी बात रखने की आज़ादी। आखिर कब तक सरकार अपनी नाकामयाबियों को छुपाने के लिए दूसरे लोगों को निशाना बनाती रहेगी।