खबर लहरिया Blog सुर्ख़ियों में अयोध्या मामला, अंतिम चरण में सुनवाई

सुर्ख़ियों में अयोध्या मामला, अंतिम चरण में सुनवाई

अयोध्या मामला एक बार फिर सुर्ख़ियों में है. क्योकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले की सुनवाई को 17 अक्टूबर तक खत्म करने की अपील की थी.और हम 17 अक्टूबर के करीब है. हर बार की तरह इसका खामियाजा वहां के लोकल लोगों को भुगतना पड़ेगा। हालात को देखते हुए  अयोध्या में धारा-144 लगा दी गई है. अयोध्या के डीएम की ओर से जारी आदेश के मुताबिक अब शहर में चार से ज्यादा लोग  इकट्ठे नहीं हो सकते. इसके साथ ही जिले में ड्रोन ( कैमरा जो ऊपर उड़ कर तस्वीरें या वीडियो लेता है) का इस्तेमाल कर किसी भी तरह की फिल्म रिकॉर्डिंग पर बैन लगा दिया गया है. ये  धारा 10 दिसंबर तक के लिए लगाई गई है.

 प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस जटिल मुद्दे का सौहार्दपूर्ण हल निकालने के लिये मध्यस्थता प्रक्रिया के नाकाम होने के बाद मामले में 6  अगस्त से रोजाना की कार्यवाही शुरू की थी. अब तक की बहस के दौरान हिंदू पक्षों की दलीलें पूरी हो चुकी हैं और वरिष्ठ वकील राजीव धवन संवैधानिक पीठ के सामने मुस्लिम पक्ष की दलीलें रख रहे हैं।

आपको बता दें की ये मामला  1950 में शुरू हुआ पहली बार  श्रद्धालु गोपाल सिंह विशारद ने जब निचली अदालत में ये केस दायर दायर किया था। उन्होंने कोर्ट से हिंदुओं को विवादित स्थल में प्रवेश कर पूजा करने का अधिकार दिए जाने की मांग की थी। उसी साल  परमहंस रामचंद्र दास ने भी कोर्ट से पूजा करने की अनुमति देने और राम लला की मूर्ति को केंद्रीय गुंबद( अब ध्वस्त विवादित ढांचे) में रखे जाने की मांग की थी। बाद में उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी। फिर 1959 में निचली अदालत का रुख निर्मोही अखाड़े ने लिया था और 2.77 एकड़ विवादित जमीन के प्रबंधन और ‘शेबायती’ (सेवक) का अधिकार देने की मांग की थी। इन सबके बाद 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी कोर्ट पहुंच गया और उसने विवादित संपत्ति पर अपना दावा किया। फिर ‘राम लला विराजमान’ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल और राम जन्मभूमि ने 1989 में मुकदमा दायर कर पूरी विवादित जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया। 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद इन सभी मुकदमों को इलहाबाद हाई कोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया। इलाहाबाद कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं थीं। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया। अब इन 14 अपीलों पर लगातार सुनवाई हो रही है।