खबर लहरिया Blog 5th Fodder Scam Case : लालू प्रसाद यादव को हुई जेल, 21 फरवरी को होगी सज़ा पर सुनवाई

5th Fodder Scam Case : लालू प्रसाद यादव को हुई जेल, 21 फरवरी को होगी सज़ा पर सुनवाई

5वें चारा घोटाले मामले में लालू प्रसाद यादव को भेजा गया जेल। अब इस मामले पर कोर्ट द्वारा 21 फरवरी को सज़ा सुनाई जायेगी।

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चारा घोटाले मामले को लेकर राष्ट्रिय जनता दल पार्टी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री रह चुके लालू प्रसाद यादव को झारखंड के रांची में सीबीआई की विशेष अदालत ने फरवरी 14, 2020 को डोरंडा कोषागार (डोरंडा ट्रेजरी केस) से अवैध रूप से पैसे निकालने को लेकर दोषी पाया है। लालू यादव द्वारा, गलत तरह से ​​139.35 करोड़ रूपये निकाले गए थे। केस में 36 लोगों को 3-3 साल की सज़ा सुनाई गई है। अब इस मामले पर कोर्ट द्वारा 21 फरवरी को सज़ा सुनाई जायेगी।

आपको बता दें, इस मामले को मिलाकर लालू यादव द्वारा 5 बार चारा घोटाले किये गए हैं। यादव को चारा घोटाले के चारों मामलों-देवगढ़, चाईबासा, रांची के डोरंडा कोषागार और दुमका मामले में ज़मानत मिल गई थी।

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 रिम्स भेजने की करी गयी अपील

लालू यादव की तरफ से मामले को लड़ रहे वकील ने अदालत को यादव की स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्हें बिरसा मुंडा जेल की जगह राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान यानी रिम्स भेजने की अपील की। अगर नियमों को देखा जाये तो लालू को पहले जेल ही भेजा गया। अब उन्हें अस्पताल भेजना है या जेल में रखना है, इसका फैसला सुप्रीटेंडेंट लेंगे।

99 आरोपियों के खिलाफ सुनाई सज़ा

सीबीआई के न्यायाधीश एस के शशि की अदालत ने लालू यादव समेत 99 आरोपियों के ख़िलाफ़ सुनवाई की, जो पिछले साल फरवरी यानी लगभग एक साल से चल रही है। डोरंडा ट्रेजरी केस से अवैध पैसों की निकासी को लेकर लालू यादव समेत कुल 99 अभियुक्तों का फैसला कोर्ट ने किया। इस मामले में लालू यादव समेत कुल 75 आरोपी दोषी करार दिए गए हैं। लालू यादव के अलावा पूर्व सांसद जगदीश शर्मा, तत्कालीन लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष ध्रुव भगत, पशुपालन सचिव बेक जूलियस और पशुपालन सहायक निदेशक डॉ. के एम प्रसाद मुख्य आरोपी थे।

आपको बता दें, आखिरी आरोपी डॉ. शैलेंद्र कुमार की ओर से बहस 29 जनवरी को पूरी हो गयी है। सभी आरोपियों को सुनवाई के दिन अदालत में उपस्थित रहने का आदेश दिया गया था। मामले में कुल 170 आरोपी पाए गए थे, जिसमें से 55 आरोपियों की मौत हो चुकी है। वहीं 7 आरोपी सरकारी गवाह बन गए, 2 ने अपने ऊपर लगे आरोपों को मान लाया, वहीं 6 आरोपी फ़रार हो गए।

यह आरोपी हुए बरी

24 लोगों को इस मामले में बरी किया गया है। बरी होने वालों में राजेंद्र पांडेय, साकेत बिहारी लाल, दीनानाथ सहाय, राम सेवक, ऐनल हक, सनाउल हक, मो हुसैन, कलशमनी कश्यप, बलदेव साहू, रंजित सिन्हा,अनिल सिन्हा, अनिता प्रसाद, रमावतार शर्मा, चंचल सिन्हा, रामशंकर सिंह, बसंत सिन्हा, क्रांति सिंह, मधु मेहता शामिल हैं।

90 के दशक से शुरू हुआ था चारा घोटाला मामला

90 के दशक के चर्चित करोड़ों रुपये के चारा घोटाले केस में सीबीआई ने तब कुल 66 मामले दर्ज किए थे। इनमें से छह मामलों में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी आरोपी पाए गए थे। बिहार विभाजन के बाद इनमें से पाँच मामले झारखंड में ट्रांसफ़र कर दिए गए थे। इन पाँच मामलों में से चार में लालू यादव पहले ही दोषी करार दिए जा चुके हैं। हालाँकि, इन मामलों में उन्हें ज़मानत मिल गई थी।

आरसी 47-ए/96 यहाँ चल रहा पाँचवा और अंतिम मामला था। इसमें साल 1990-91 और 1995-96 के बीच फ़र्ज़ी बिल्स पर अवैध निकासी के आरोप हैं। पैसों को अवैध रूप से निकालने के मामले में यह सबसे बड़ा मामला है।

इसमें लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ आइपीसी की धारा 120-बी और भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून-1998 की धाराओं 13(2) आर डब्ल्यू 13(1) (सी), (डी) के अंतर्गत आरोप तय किए गए थे।

यादव पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए इस मामले में कोई कदम नहीं उठाया था जबकि कई विधायकों और सांसदों ने विधान परिषद और लोकसभा में यह मामला उठाते हुए कहा था कि पशुपालन विभाग में गड़बड़ियाँ की जा रही हैं और फ़र्ज़ी बिल्स के ज़रिए अवैध निकासी करायी जा रही है। इसके बावजूद भी कोई कड़ी कार्यवाही नहीं की गयी थी।

चारा घोटाले की पहली रिपोर्ट

साल 1996 में घोटाले के पर्दाफ़ाश के बाद तत्कालीन बिहार के डोरंडा थाना में 17 फ़रवरी को इसकी एफ़आइआर (नंबर 60/96) दर्ज़ करायी गयी थी। उसी साल 11 मार्च को पटना उच्च न्यायालय ने इसकी सीबीआई जाँच का आदेश दिया था। इसके बाद सीबीआई ने 8 मई 2001 को 102 आरोपियों के ख़िलाफ़ पहली चार्जशीट दायर की थी।

फिर 7 जून 2003 को 68 दूसरे आरोपियों पर भी चार्जशीट की गई। 26 सितंबर 2005 को कोर्ट ने कुल 170 अभियुक्तों के ऊपर आरोप की मुहर लगाई थी।
इनमें से 55 अभियुक्तों की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई। आठ दूसरे अभियुक्त सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता 1973) के प्रावधानों के मुताबिक़ सरकारी गवाह (अप्रूवर्स) बन गए. दो अभियुक्तों ने पहले ही दोष स्वीकार कर लिया था।

यह मामला कमज़ोर न्याय व्यवस्था और सत्ता की गलत शक्ति के इस्तेमाल का प्रदर्शन करता है। हर बार दोषी पाए जाने के बाद भी आरोपी बरी हो गया। ऐसे में सत्ता में बैठे व शक्ति के नशे में चूर कुछ नेता और अधिकारी गुनाह करते रहते हैं। सज़ा और अदालत की सुनवाई के नाम पर फिर साल बीतते जाते हैं और सज़ा की तारीख़ आते-आते इतनी देर हो जाती है कि उस सज़ा का कोई मतलब ही नहीं रह जाता।

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