खबर लहरिया चित्रकूट जातिगत भेदभाव का उदाहरण है, चित्रकूट जिले का मानिकपुर रेलवे स्टेशन

जातिगत भेदभाव का उदाहरण है, चित्रकूट जिले का मानिकपुर रेलवे स्टेशन

मइल ढोवै के प्रथा यानी मानव मल हाथ से सफाई के प्रथा का खतम करै के खातिर 1993 मा सफाई कर्मचारी नियोजन अउर शुष्क शौचालय सन निर्माण अधिनियम 1993 बना। पै स्थिति नहीं बदले मा कानून मा संसोधन करत हवै। 2013 मा मइला उठावै वालेन के खातिर प्रतिशोध अउर पुनर्वास के खातिर कानून आवा। यहिके बवाजूदौ मइल ढोवै के प्रथा जारी हवै। सामाजिक न्याय मंत्रालय के अनुसार आजौ 12742 मड़इ या काम करत हवैं। जेहिमा 82% मामला उत्तर प्रदेश मा हवै। मैइला ढोवै के काम मा 10317 लाग मड़इन का पुनर्वास के खातिर उत्तर प्रदेश मा से चुने गें हवै, पै यहिमा से 182 मड़इन का पुनर्वास का लाभ मिलत हवै। भारतीय रेल मैइला ढोवै का सबसे बड़ा नियोक्त हवै। काहे सफाईकर्मी के पास मैइल साफ करै के कउनौ तकनीकी प्रणाली नहीं आय। सफाईकर्मी आजौ बिना दास्तान, मास्क जइसे अन्य सुरक्षा उपकरण के काम करत हवैं। हालाँकि रेलवे यहिका इनकार करत हवै। रेलवे मा सफाई का काम ठेकेदारी प्रथा मा हवै। जिला के मानिकपुर रेलवे स्टेशन मा देखै मा पता चलत हवै कि हिंया ठेका ऊंची जाति के मड़इन का मिलत हवैं। पै सफाई का काम तौ दलित के हिस्सा मा आ जात हवै। ठेका दलित जाति का न मिलै का एक बड़ा कारन धन का अभाव। काहे से लाखों रुपियन मा होय वाला या ठेका गरीब दलित मड़इन के खातिर कबहूं संभव नहीं आय। हम चित्रकूट जिला के मानिकपुर रेलवे स्टेशन मा जातिगत भेदभाव का समझावै के कोशिश कीन गे हवै। जहां प्लेटफार्म के सफाई से लइके शौचालय के सफाई का काम दलित जाति खासकर मेहतर जाति से लीन जात हवैं। 2019 तक मैइल ढोवै के प्रथा से मुक्ति की बात होत हवै, पै ठेकेदारी के द्वारा होय वाला या काम सरकारी कागजन मा दर्ज होत आय। तौ मुक्ति के बादौ मा कल केत्ती सच्चाई होई? ख़ैर चित्रकूट जिला के मानिकपुर रेलवे स्टेशन मा मैइला ढोवै के प्रथा के साथै जातिगत भी खुले तौर मा चलत हवैं। सफाईकर्मी चित्रकूट राहुल का कहब हवै कि गंदगी साफ करै का अउर मशीन चलावत हौं। प्लेटफार्म मा झाडूं लगावै का पड़त हवै।

सुपरवाइजर चित्रकूट दीपक चन्द्र बताइस कि ठेका मिली तौ मड़इ आगे बढ़वै करी, पै ठेका एत्ता बड़ा होत हवै कि मड़इ उतना पैसा नहीं इकटठा कई पावत आय। या ठेका लगभग छह लाख का होत हवै। वेतन इनकर पचपन सौ रुपिया हवै अउरसरकारी वेतन मा कम से कम पन्द्रह हजार का फर्क हवै।

जूनियर इंजीनियर सी.एन.डब्ल्यू.दिनेश कुमार का कहब हवै कि टेंडर ज्यादातर हाईफाई मड़इन के हवैं। बजट के कारन ही दलित आगे नहीं आ पावै।

सफाईकर्मी चित्रकूट राजकुमार बताइस हवै कि मोहिका ठेका मा काम करत डेढ़ साल होइगें हवैं। ठेका मा केवल पांच हजार वेतन भर मिलत हवै।

सफाईकर्मी चित्रकूट बाबुल का कहब हवै कि मेहतर जाति का आहूं। काम करत कम से कम बीस साल होइगें हवैं। पहिले हम दूसरे के जघा मा नौकरी करत रहे हन, तौ पहिले तीन हजार मिलत रहै, पै अब ठेका होय के कारन पांच हजार मिलत हवै।

सफाईकर्मी चित्रकूट दीपू बताइस हवै कि मेहतर जाति का आहूं। मोहिका लगभग तीन चार महीना काम करत होइगें हवैं। कउनौ काम न मिलै के कारन या काम करत हौं। फार्म कइयौ दरकी डारे हौं, पै कउनौ रिजल्ट नहीं निकरत आय। चेयरमैन कर्वी नरेंद्र गुप्ता का कहब हवै कि सफाईकर्मचारी पंडित जी का कइ दीन्हें हौं। पै पंडित जी तौ सफाई करिहैं न, सफाई तौ वहै करी जउन सफाई वाला हवै। पै वा जउन सफाई कर्मचारी हवै आपन मल्हम पट्टी कइके अपने का इधर-उधर अटैच कइ लेई अउर सफाईकर्मी काम नहीं करत आय।

रिपोर्टर: नाजनी रिजवी और मीरा जाटव

Published on Apr 29, 2018