खबर लहरिया औरतें काम पर क्या मेरा शादीशुदा दिखना जरूरी है?

क्या मेरा शादीशुदा दिखना जरूरी है?

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ऐसा सोचने वाली आयेशा अकेली लड़की नहीं हैं बल्कि कई लड़कियों के मन में ये बात एक बार जरूरी आई होगी। औरतें न चाहते हुए भी खुद को सुहागन दिखाती ही हैं। क्यों?

29 साल की नगमा बताती हैं कि उन्हें चूड़ियाँ पहनना पसंद नहीं है क्योंकि काम करते समय चूड़ियों की आवाज़ उन्हें परेशान करती है पर वह न चाहते हुए भी चूड़ियाँ पहनती हैं। “चूड़ियाँ नहीं पहनने पर मेरे पति मुझ पर ताना मारते हैं कि मैं कुंवारी दिखना चाहती हूं।”

माना जाता है कि आपकी मांग में भरा सिंदूर भी आपके पति की लम्बी उम्र को बढ़ाने में मदद करता है।

गायत्री की शादी को 8 साल हो गए हैं। कुछ समय पहले उसने अपनी मांग में सिंदूर भरना बंदकर दिया था क्योंकि उससे उनकी त्वचा में खुजली हो रही थी। उनके मायके में रहने वाली एक बुज़ुर्ग महिला एक दिन उन्हें देखकर रोने लगी और पूछने लगी – ये कब हुआ और बच्चे कैसे हैं। गायत्री को समझने में देर नहीं लगी कि दादी क्या समझ रही हैं। उस दिन के बाद से गायत्री ने खुजली होने के बावजूद भी अपनी मांग भरना शुरु कर दिया।

कहीं न कहीं महिलाओं का शादीशुदा दिखना उनपर पति के अधिकार को दिखाता है, जिससे पता चले कि वह अब किसी की अमानत है। पर वहीं ऐसा दिखना उसके पति के लिए जरुरी नहीं है। कभी पतियों से बोले कि वह कुछ ऐसा करें, जिससे उनपर उसकी पत्नी का अधिकार दिखे। सच मानिये, आपको या तो जोर की डाँट पड़ेगी या अपनी बात को मजाक में उड़ा दिया जाएगा।

दीक्षा की शादी को 6 साल हो गए हैं। उनकी मां चाहती हैं कि वह मंगलसूत्र तो पहने ही और इसलिए उन्होंने एक छोटा सा मंगलसूत्र भी बनवाया है पर दीक्षा उस खूबसूरत मंगलसूत्र को चाहते हुए भी नहीं पहनती हैं क्योंकि वह सुहाग की निशानी जैसी किसी बात पर विश्वास नहीं करती हैं।

ऐसा ही वाकिया शांति भी बताती हैं, जब उन्हें ट्रेंन में सफर के दौरान एक महिला ने उनसे उनके शादीशुदा होने या नहीं होने की बात पूछी। उनके हां बोलने के तुरंत बाद महिला ने उनसे उनके धर्म के बारे में पूछा लिया। धर्म बताने के बाद आंटी ने अपनी नेक नसीयत दे दी कि कुछ तो सुहागनों जैसा करा करो।

हम श्रृंगार के खिलाफ नहीं हैं पर किसी के साथ होने वाली जबरदस्ती के खिलाफ हैं और शादी के बाद कैसा दिखाना चाहिए, इस बात की स्वतंत्रता महिला के विवेक को देना चाहते हैं। लोगों के तानों और बातों को नहीं।

अल्का मनराल

यूथ की आवाज़ के लेख द्वारा प्रेरित