अगर किसी को कैंसर हो भी जाए तो उन्हें समय रहते नहीं पता चल पाता। जिन्हें अगर पता चल भी जाए तो वह बीमारी के इलाज में लाखों रूपये खर्च करने में असमर्थ होते हैं।
4 फरवरी का दिन हर साल “विश्व कैंसर दिवस” के रूप में मनाया जाता है। साल 1933 में इसे मनाने की शुरुआत की गयी थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में लोगों को कैंसर जैसी बीमारी के प्रति जागरूक करना और लोगों को इसके बारे में बताना है। लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हर साल इस दिवस को एक थीम यानी विषय के अनुसार मनाया जाता है।
विश्व कैंसर दिवस 2022 का इस बार का विषय है, “Close the Care Gap” क्लोज़ द केयर गैप। यह सिर्फ विषय या कैलेंडर की कोई तारीख नहीं है। इसका उद्देश्य कैंसर देखभाल में वैश्विक असमानताओं को पहचानना है, जिसका सामना एक कैंसर का मरीज़ देखभाल के दौरान करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा
साल 1933 में पहला कैंसर दिवस जिनेवा, स्विट्जरलैंड में मनाया गया था।
शहरी और विकसित क्षेत्रों में लोगों को कैंसर के बारे में पता है। लेकिन वहीं अगर हम ग्रामीण पिछड़े क्षेत्र और कस्बों की बात करें तो आज भी उनमें इस बीमारी को लेकर उतनी जागरूकता नहीं है। अगर किसी को कैंसर हो भी जाए तो उन्हें समय रहते नहीं पता चल पाता। जिन्हें अगर पता चल भी जाए तो वह बीमारी के इलाज में लाखों रूपये खर्च करने में असमर्थ होते हैं। सिर्फ कुछ ही लोग होतें हैं जो किसी न किसी तरह से पैसे और साधन जुटा कर अपना इलाज करा पाते हैं।
कहने को सरकार ने आयुष्मान कार्ड आदि जैसी कई योजना शुरू की है जिसके तहत लोगों को 5 लाख रूपये तक का बीमा दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या इससे ग्रामीणों को फायदा मिल पाता है?
इससे पहले खबर लहरिया आज आपको एक ऐसी ग्रामीण महिला से मिलाने जा रही है जो न सिर्फ कैंसर से लड़ी बल्कि जीतीं भीं।
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“मैं जल्दी मरने वाली नहीं” – फूला देवी यादव
50 साल की फूला देवी यादव, बडोखर खुर्द, बांदा जिले की रहने वाली हैं। खबर लहरिया के साथ साल 2020 में हुए इंटरव्यू के दौरान उन्होंने हमसे अपनी बीमारी और उनके आगे के सफ़र के बारे में बताया। यह साल 2012 की बात है। अचानक से पेट में दर्द होने लगा। दर्द इतना ज़्यादा था कि जैसे जान निकल रही हो। पहले वह जिला अस्पताल गयीं। वहां से फिर डॉक्टर्स ने उन्हें कानपुर जाने को कहा। कानपूर में 4-5 जगह दिखाया। कोई 80 हज़ार मांग रहा था कोई डेढ़ लाख। इसके बाद वह लखनऊ गयीं। यहां भी फूला ने कई डॉक्टरों को दिखाया। अंत में उन्होंने विवेकानंद अस्पताल में इलाज कराया। यहां से उन्हें पता चला कि उन्हें थर्ड स्टेज का कैंसर है।
रिपोर्ट कहती है, “थर्ड स्टेज कैंसर में बचने का सिर्फ 30 प्रतिशत मौका होता है – रमाकांत देशपांडे, ओन्को सर्जन और एशियाई कैंसर संस्थान के उपाध्यक्ष ने कहा।” (बिज़नेस स्टैण्डर्ड की साल 2017 में प्रकाशित रिपोर्ट)
” उन्हें कोई गम नहीं है। उनको अपने आप पर भरोसा है कि वह इतना जल्दी मरने वाली नहीं हैं। जितने दिन भी जियेंगी ठाठ के साथ जिंदा रहेंगी।”
परिवार को जब कैंसर के आखिरी स्टेज के बारे में पता चला तो सब घबरा गयें। लखनऊ से लेकर मुंबई तक उनका इलाज हुआ। सभी डॉक्टरों ने कह दिया कि उनके पास ज़्यादा समय नहीं बचा है। फूला कहतीं, ” उन्हें कोई गम नहीं है। उनको अपने आप पर भरोसा है कि वह इतना जल्दी मरने वाली नहीं हैं। जितने दिन भी जियेंगी ठाठ के साथ जिंदा रहेंगी।”
इलाज हेतु उनके पास आयुष्मान कार्ड भी बना हुआ है। इसके बावजूद भी उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया। मदद के लिए वह अध्यक्ष और डीएम के पास भी गयीं पर किसी ने मदद नहीं की। आखिर में उन्हें इलाज के लिए गहनें गिरवी रखने पड़े तब जाकर वह मुंबई गयीं और वहां जाकर अपना इलाज कराया। आज वह इलाज कराने के बाद बिलकुल स्वस्थ हैं।
फूला का कहना है, “इंसान को अपना काम करना चाहिए, डरना नहीं चाहिए।”
कैंसर जैसी बीमारी से लड़ाई जीतने के बाद वह लोगों को जागरूक करने का काम भी कर रही हैं। आज उनके अभियान और प्रयास से गाँव के पुरुष शराब का सेवन खुलेआम नहीं करते।
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आयुष्मान कार्ड से नहीं मिला कोई लाभ
लाल बहादुर, चित्रकूट जिले में रहते हैं। उन्हें ब्लड कैंसर है। उन्होंने हमें बताया, चित्रकूट से मऊ तक उन्होंने इलाज कराने की कोशिश। वह बस सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रह गये। बहादुर के पास इतने पैसे नहीं कि वो अपना इलाज करा पाएं। वह बस एक दर्द की गोली के सहारे अपना जीवनयापन कर रहे हैं।
कैंसर से पीड़ित शांति देवी कहती, उन्हें तो योजना के बारे में ही नहीं पता। न उन्हें किसी न इस बारे में कुछ बताया।
आधा मसला तो यही होता है कि ज़रूरतमंद लोगों के लिए शुरू की गयी योजनाओं की जानकारी उन्हें ही नहीं होती। जिन्हें होती है वह बहुत कोशिश के बाद भी योजना का लाभ नहीं उठा पातें। जैसा हमने लाल बहादुर के मामले में देखा। फूला देवी ने तो किसी तरह ज़ेवर गिरवी रखकर अपना इलाज करवा लिया लेकिन हर गरीब व्यक्ति के पास यह सुविधा नहीं होती। उनके लिए एक दिन का खाना जुटा पाना ही सबसे बड़ा सवाल होता है।
कैंसर सांख्यिकी रिपोर्ट 2020 के अनुसार, पुरुषों में अनुमानित कैंसर प्रति 100,000 व्यक्तियों पर 94.1 थी। वहीं महिलाओं में 100,000 प्रति व्यक्तियों पर 103.6 थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 में अनुमानित 1.16 मिलियन नए कैंसर के मामले थे, जिसमें कहा गया था कि 10 में से एक भारतीय को उसके जीवन काल के दौरान कैंसर होगा और 15 में से एक की बीमारी से मौत हो जाएगी। ( द प्रिंट की साल 2020 में प्रकाशित रिपोर्ट)
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