लगभग 70 साल पहले भारतीय संविधान में छुआछूत को कानूनी तौर पर खत्म कर दिया गया था पर सामाजिक तौर पर वह कभी खत्म नहीं हुआ। 20 मार्च 1927 को बी.आर अंबेडकर द्वारा शुरू किया गया ‘महाड़ सत्याग्रह या चावदार कथा सत्याग्रह’ भी इसलिए शुरू किया गया था ताकि सार्वजनिक टैंक से, जिन्हें समाज में अछूत माना जाता है/बनाया गया है, वह भी पानी पी सकें। आज इतने सालों बाद भी पानी और जाति, दलितों व आखिरी पायदान पर रह रहे लोगों के लिए सिर्फ हिंसा व शोषण का ही रूप है।
“दलित कुएं से पानी नहीं पीयेगा”, “दलित सार्वजनिक कुएं से भी पानी नहीं पीयेगा”, उसके आस-पास से नहीं गुज़रेगा वरना समाज की जाति-व्यवस्था के ऊपरी पायदान पर रहने वाले लोगों की इज़्ज़त चली जायेगी। समाज ने इज़्ज़त बचाने का ठेका जो ले रखा है और सरकार कहती है उसने ‘समाज को बदलने का ज़िम्मा लिया है”, जातिगत हिंसा और व्यवस्था से…. पर दोनों की ही ज़िम्मेदारियाँ बड़ी निर्दयी और अनदेखी नज़र आती रही हैं।
सोशल मीडिया पर किसी ने जातिगत हिंसा की घटना की वीडियो बना X पर डाली। वीडियो में 5 पांच बच्चे हैं जो दलित जाति से संबंध रखते हैं। उन बच्चों को जाति व्यवस्था में लिप्त व्यक्ति डंडे से मार रहा है। बच्चों के पैर व हाथ पीछे से बंधे हुए हैं। आस-पास खड़ी भीड़ हमेशा की तरह हिंसा की भागीदार बनी हुई है। किसी ने उस व्यक्ति को रोका नहीं, जो यह भी दर्शाता है कि वह भीड़, वह समाज जातिगत हिंसा के कितने समर्थन में है।
सभी बच्चों की सिर्फ इसलिए पिटाई की गई क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक कुएं से पानी पीया। “सार्वजनिक” जो समाज में कहने के लिए तो सबकी तरफ इशारा करता है बस दलितों की तरफ नहीं। वह सबमें नहीं आतें।
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घटना की जगह स्पष्ट नहीं
वायरल वीडियो में घटना एमपी के जबलपुर की बताई जा रही थी। वहीं पुलिस का कहना है कि मामला यूपी का है।
जबलपुर के एसपी आदित्य प्रताप सिंह ने कहा, “वीडियो जबलपुर का नहीं है। वीडियो में दिख रहे लोगों को अवधि भाषा में बोलते हुए सुना जा सकता है। यह उत्तर प्रदेश का हो सकता है पर जबलपुर का नहीं है।”
“क्या यही रामराज्य है”?
वीडियो पर प्रतिक्रिया देते हुए आज़ाद समाज पार्टी के अध्यक्ष ने कहा, “इन छोटे बच्चों का दोष केवल इतना है कि प्यास लगने पर उन्होंने कुएं से पानी पी लिया… क्या यही रामराज्य है? इस देश में बेजान पत्थर की मूर्ति को पानी से नहलाया जाता है लेकिन जिंदा इंसान को पानी पीने की इजाजत नहीं है…कितनी शर्मनाक बात है।”
समाज द्वारा बनाई गई यह जातिगत सीढ़ी हमेशा से आखिरी पायदान पर रखे हुए लोगों को शोषित करते हुए आई है। उनके लिए उन्हें आखिरी पायदान पर रखना भी काफी नहीं है। पहले समाज खुद जाति के अनुसार लोगों को बांटता है, फिर उससे घृणा करता है और फिर अपना ज़ोर आज़माता है। वहीं बदलाव और जातिगत हिंसा को खत्म करने की बात करती रहीं सरकारें आज तक इसे न इसे खत्म कर पाईं हैं, न ही कम कर पाईं हैं पर हाँ, इनका इस्तेमाल ज़रूर से करती रही हैं…. “जाति का, दलित होने का।”
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पानी और जाति की हिंसा
भारत भर में पीने के पानी के लिए दलित हिंसा और भेदभाव का सामना करते आ रहे हैं। बच्चों से जुड़ी पानी पीने व कुएं को छूने से जुड़े हिंसा के मामलों की बात की जाये तो….
12 फरवरी 2023 को, उत्तर प्रदेश के बिजनौर के सीरवासुचंद गांव के एक 16 वर्षीय दलित बच्चे को प्रिंसिपल द्वारा सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उसने उनकी बोतल से पानी पीया था।
मार्च 2023 में, उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के एक और 9 साल के दलित बच्चे को तालाब से पानी पीने के लिए एक शिक्षक ने पीटा था।
जुलाई 2023 में, राजस्थान के नेतराड गांव (बाड़मेर जिले) के एक दलित बच्चे को स्कूल के बर्तन से पानी पीने पर स्कूल के शिक्षक द्वारा शारीरिक दुर्व्यवहार किया गया था।
लगभग 70 साल पहले भारतीय संविधान में छुआछूत को कानूनी तौर पर खत्म कर दिया गया था पर सामाजिक तौर पर वह कभी खत्म नहीं हुआ। 20 मार्च 1927 को बी.आर अंबेडकर द्वारा शुरू किया गया ‘महाड़ सत्याग्रह या चावदार कथा सत्याग्रह’ भी इसलिए शुरू किया गया था ताकि सार्वजनिक टैंक से, जिन्हें समाज में अछूत माना जाता है/बनाया गया है, वह भी पानी पी सकें। आज इतने सालों बाद भी पानी और जाति, दलितों व आखिरी पायदान पर रह रहे लोगों के लिए सिर्फ हिंसा व शोषण का ही रूप है।
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