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बहिष्कार बहिष्कार बहिष्कार 

देश भर में लोकसभा चुनाव की हलचल 11अप्रैल से चल  रही है अब तक में छह चरण का चुनाव हो चूका है और आखरी चरण 19  मई को होगा | इस बार के चुनाव में अलग अलग क्षेत्रो में लोगों  ने बहुत ज्यादा चुनाव बहिष्कार करने की बात कहा था क्यों की सरकार ने कुछ काम नहीं किया इस वजह से लोग नाराज हो कर बहिष्कार की बात कर रहे थे लोगों ने चुनाव बहिष्कार के नारे लगाए बोस्टर और बैनर लगवाए दीवाल लेखन करवाया  पर लास्ट में क्या हुआ लोगो को प्रशासन और पार्टी के दबाव में आकर वोट डालना ही पड़ा | यह बात कोई नई बात नहीं है यह तो बुन्देलखण्ड के लिए एक इतिहास बन गया है पिछले बीस साल से मैने वोट बहिष्कार की बात को करते देखा है लेकिन समय आने पर लोग वोट डालदेते हैं | प्रशासन तो किसी तरह से अपनी बात मनवा ही लेती है | पर बदलाव कुछ भी नही होता है फिर पांच साल में चुनाव आते है और वही हाल शुरू हो जाते हैं | लोगों की अपनी मजबूरी है की अगर बात नहीं मानते तो मारपीट और गाँव से निकलने  की धमकी तक दी जाती है |  लोगों को तो नोटा  का भी बटन नहीं दबाने दिया जाता है| जो लोग किसी भी पार्टी को वोट नही देना चाहते और अपना हक भी नही गवाना चाहते तो वह लोग नोटा  का बटन दबाना चाहते थे तो भी नही दबाने दिया जाता है | इस लिए लोगों ने यह निति अपनाई की वो अब वोट बहिष्कार ही कर देगे|  इसका कारण उनके लिए बहिष्कार करना और नोटा का बटन दबाना एक ही है| एक और कारण है की जब से मोबाएल में लोगों को मैसेज के माध्यम से अलग अलग जगह के बारे में सुनने को मिलता है और देखने को तो और लोग भी इस को अपनाने लगे हैं सोशल मीडिया से इसका बहुत बड़ा प्रभाव हुआ है| साथ ही लोकल मीडिया ने भी इनको खूब इस्तेमाल करने की कोशिश की हैं लोगो को जा जा कर कहना की बहिष्कार क्यों नहीं कर  रहे हो | एक तो सच्चाई है की ग्रामीण स्तर में किसी प्रकार का विकास नहीं दिखाई दिख रहा है इस लिए लोगो का निर्णय अपने आप में सही हैं|

इस बार का भी ही हल रहा है यही हाल चुनाव के समय और चुनाव के दिन बुंडेकलखंड के कई  गांव  देखने को मिला लोगों ने  वोट न डालने को लेकर  तहलका तो मचाया लेकिन उनको शांत करवा के वोट डलवा लिए गए है|  महोबा जिला में 29  अप्रैल को चुनाव हो रहा था उस समय कई गांव पसवारा ,गुढ़ा और दिसपुर  में वोट बहिष्कार की बात चली दिया था| इसी तरह से चित्रकूट जिला में  चुनाव के पहले बेलरी गांव ,ऊंचडीह ,पथरामानी  आदि गांव में लोगों ने विकास न होने की बात कह कर  वोट बहिष्कार की बात कहि थी| जब 6 मई  को वोट पड़  रहे थे तो बेलरी और पथरामानी  गाँव  के लोगों ने कहाँ  हम वोट नहीं डालेंगे इस बात को लेकर प्रशासन ने लोगों को काफी दबाव डाला की वोट डालना ही है जिन लोगों ने मना किया तो उनको घरों से निकल निकल वोट है | लोगो को बेबस हो कर  वोट आखिर   पड़ा | ऐसी तरह बाँदा जिला में भी हलचल थी  चुनाव बहिष्कार को लेकर पर वहा की प्रशासन ने पहले ही सब अपने काबू में कर लिया था | कहने को तो हमारा हक है की हम चाहे जो करें पर ऐसा है नहीं?

प्रशासन तो अपनी बाहवाही   के लिए जनता को फुसला लेती है पर पलट कर  कभी उनके मुद्दों को नहीं देखती है | और फिर पांच साल बाद भी बहिष्कार की बात आती  हैं|

क्यों नहीं लोग अपने मन का कर  सकते है? सरकार की ही हर जगह क्यों दबदबा दीखता है? विकास के नाम पर कहाँ  चले जाते हैं ? खुद का फायदा है तो लोगों को दबाव दिया जाता है तो फिर लोगों के विकास क्यों नहीं करवाया जाता है क्यों जनता को चुनाव के समय चुनाव बहिष्कार करना पड़ता है ?