गांव के कई हिस्सों में कचरा इकट्ठा है और नालियां जाम पड़ी हैं। चार से पांच साल से यही स्थिति बनी हुई है। सफाईकर्मी कभी-कभी ही आते हैं वह भी तब जब कोई कार्यक्रम या अधिकारी गांव का दौरा करने वाले होते हैं।
रिपोर्ट, फोटो – सुशीला, लेखन – रचना
देश में स्वच्छ भारत मिशन पर करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। शहरों में सफाई व्यवस्था को लेकर कई योजना चलाई जा रही हैं लेकिन ज़मीन पर तस्वीर कुछ और ही है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के ग्रामीण इलाक़ों में ख़ासकर धौरहरा गांव में सफाई व्यवस्था की हालत बेहद खराब है। यहां की आबादी क़रीब 15 से 16 हजार के बीच है। लेकिन आज भी गांव की गलियों में कूड़ा-कचरा, जाम नलियां और गंदा पानी लोगों के ज़िंदगी को परेशान कर रह है। इतना ही नहीं इस परेशानी से वहां के लोग 4 से 5 सालों से जूझ रहे हैं।
सफाई का सीधा असर लोगों के स्वास्थ पर पड़ता दिखा
धौरहरा गांव में सफाई व्यवस्था की हालत काफी खराब है। गांव के कई हिस्सों में कचरा इकट्ठा है और नालियां जाम पड़ी हैं। चार से पांच साल से यही स्थिति बनी हुई है। सफाईकर्मी कभी-कभी ही आते हैं वह भी तब जब कोई कार्यक्रम या अधिकारी गांव का दौरा करने वाले होते हैं। गांव के बुजुर्ग लालजी राजभर बताते हैं “अगर नाली की सफाई की बात करें तो यह सिर्फ दिखावा है। हर साल कागजों में लिखा जाता है कि सफाई हुई पर असल में कुछ नहीं होता। जब कोई नेता या अफसर आने वाला होता है तभी थोड़ी सफाई की जाती है। बाकी समय नालियां जाम रहती हैं और गंदगी से लोग परेशान हैं।”
लालजी के अनुसार गरीब परिवारों की बात सुनी नहीं जाती। उन्होंने कहा कि सफाई की कमी का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
नालियों की गंदगी से बीमार हो रहे लोग
गांव की महिला कौशल्या देवी बताती हैं कि उन्होंने इस समस्या की शिकायत कई बार की पर कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने बताया “आप तीन साल पहले भी आई थीं तब भी यही हालत थी। थोड़ा बहुत सफाई होती है फिर वही हाल। पानी निकलने का कोई रास्ता नहीं है। नालियां बनी हैं लेकिन पानी वहीं जमा रहता है। बच्चों के गिरने की घटना भी आम है। मच्छरों से मलेरिया और बुखार हर महीने फैलता है।” उनका कहना है कि गांव में पानी का सही निकास नहीं है जिससे गलियों में हर वक्त पानी भरा रहता है। बारिश के मौसम में तो हालत और भी खराब हो जाती है। कई घरों के सामने पानी महीनों तक नहीं सूखता जिससे लोगों का चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है।
“विकास सिर्फ कागजों में है”
गांव के एक अन्य निवासी विजय कुमार का कहना है कि धौरहरा गांव आज तक असली विकास नहीं देख पाया। सरकार कहती है कि गांव-गांव में सफाई हो रही है लेकिन हमारे गांव में तो नालियां तक नहीं साफ होतीं। हर तरफ कचरा फैला है। जो काम दिखाया जाता है वो सिर्फ कागजों पर होता है। मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री जब किसी गांव का दौरा करते हैं तभी कुछ सफाई होती है वरना कोई ध्यान नहीं देता। विजय कहते हैं कि प्रशासन के पास योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ लागू नहीं होता। “अगर अधिकारी एक हफ्ता भी इस गांव में रह लें तो उन्हें पता चल जाएगा कि असली हालत क्या है।” वे जोड़ते हैं।
लोगों की आवाज़ अब भी अनसुनी
धौरहरा गांव में कई दलित और मज़दूर बस्तियां हैं जहां सफाई की स्थिति और भी खराब है। दलित बस्ती के पास तो नालियां महीनों से जाम पड़ी हैं। वहां रहने वाले लोगों का कहना है कि वे कई बार पंचायत कार्यालय और ब्लॉक मुख्यालय तक शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। एक महिला ग्रामीण कहती हैं “हम गरीब हैं हमारी आवाज़ कौन सुनेगा? सफाईकर्मी हफ्तों तक नहीं आते। बच्चों को नालियों से बदबू आती है, कई बार वे बीमार पड़ जाते हैं। हम चाहें भी तो घर के बाहर सफाई नहीं कर सकते क्योंकि गंदा पानी कहीं निकलने का रास्ता ही नहीं है।”
स्वच्छ भारत मिशन की हकीकत
सरकार की स्वच्छ भारत योजना के तहत गांवों में घर-घर कूड़ा संग्रह, नालियों की सफाई और ठोस कचरा प्रबंधन का वादा किया गया था। इसके लिए हर साल बजट भी जारी किया जाता है लेकिन धौरहरा जैसे गांवों में स्थिति इसके उलट है। यहां घर-घर कचरा उठाने की कोई व्यवस्था नहीं है, कूड़ेदान नहीं हैं और नालियों का रख रखाव शून्य है। गांव में पीने के पानी के स्रोत भी गंदगी से प्रभावित हैं। हैंडपंप और बोरवेल के आसपास कीचड़ जमा रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार हैंडपंप का पानी पीने योग्य नहीं रहता।
“सफाई होती है, लेकिन आबादी ज्यादा है” बीडीओ
जब इस बारे में खंड विकास अधिकारी (चोलापुर) शिवनारायण सिंह से बात की गई। न्होंने कहा कि सफाई की व्यवस्था लगातार चल रही है लेकिन चुनौतियां भी हैं। “सफाई का काम नियमित रूप से होता रहता है। जितना बजट मिलता है उसी के हिसाब से काम कराया जाता है। धौरहरा गांव की आबादी काफी ज्यादा है लेकिन वहां सफाईकर्मियों की संख्या कम है। अभी तक गांव से कोई आधिकारिक शिकायत नहीं आई थी। आपकी सूचना पर तुरंत टीम भेजकर स्थिति की जांच कराई जाएगी।” उन्होंने कहा कि जहां नालियां जाम हैं वहां जल्द सफाई कराई जाएगी और समस्या का समाधान किया जाएगा।
लोगों की नाराज़गी और उम्मीदें
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में सफाई व्यवस्था की समस्या अब सिर्फ गंदगी की नहीं बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और सम्मान की लड़ाई बन चुकी है। लोग कहते हैं कि प्रशासन का ध्यान सिर्फ शहर की सफाई पर है जबकि गांवों को नज़रअंदाज कर दिया गया है। लालजी राजभर कहते हैं “सरकार के विज्ञापनों में तो सब साफ-सुथरा दिखाया जाता है लेकिन हम लोग रोज़ गंदगी में जी रहे हैं। कोई अधिकारी आकर एक दिन रह जाए तो पता चले कि हालात कितने खराब हैं।” महिलाओं का कहना है कि गांव में गंदगी की वजह से बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं। कई बार डॉक्टर और दवाइयों का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
प्रशासन और जनता के बीच दूरी
इस पूरे मामले में एक बात साफ झलकती है प्रशासन और जनता के बीच संवाद की कमी।
गांव के लोग शिकायत करते हैं कि उनकी बात सुनी नहीं जाती जबकि अधिकारी कहते हैं कि शिकायत आई ही नहीं। यही वजह है कि समस्या सालों से जस की तस बनी हुई है। अगर पंचायत स्तर पर शिकायत दर्ज करने और उसके निपटारे की कोई ठोस व्यवस्था बनाई जाए तो हालात बदल सकते हैं। लेकिन फिलहाल गांव के लोगों में भरोसा कम और नाराज़गी ज़्यादा है।
धौरहरा गांव की हालत यह दिखाती है कि स्वच्छ भारत मिशन का असली फायदा ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुंचा है। सरकार की नीतियां और बजट तो बने हैं लेकिन उनका असर ज़मीन पर दिखता नहीं। जहां सफाईकर्मी कम हैं वहां सफाई अधूरी रहती है। जहां अधिकारी पहुंचते नहीं वहां लोगों की आवाज़ अनसुनी रह जाती है। स्वच्छता केवल नारे से नहीं बल्कि लगातार प्रयास और जवाबदेही से आती है।
अगर वाराणसी जैसे जिले के गांवों में गंदगी की यह स्थिति है तो सवाल उठता है कि बाकी इलाकों का हाल कैसा होगा?
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