खबर लहरिया ताजा खबरें बेमौसम बारिश व ओले से टूटी अन्नदाता की कमर देखिये द कविता शो के इस एपिसोड में

बेमौसम बारिश व ओले से टूटी अन्नदाता की कमर देखिये द कविता शो के इस एपिसोड में

नमस्कार दोस्तों द कविता शो के इस एपीसोड में आपका स्वागत है साथियों उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में 6 मार्च से तेज हवाओं के साथ भारी बारिश हो रही है । बारिश के दौरान ओलावृष्टि भी हुई, जिस कारण किसानों की फसल चौपट हो गई। उत्तर प्रदेश में किसान पहले से ही परेशानियों से घिरा है लिए बेमौसम बरसात ने उसकी परेशानी और बढ़ा दी है। बुन्देलखण्ड के चित्रकूट,बांदा और महोबा के कयी गांवों में सौ सौ ग्राम के ओला पड़े हैं खेतों में पका खड़ा सरसों पूरी तरह से झड़ गया है गेहूं पूरी तरह से तैयार है बस बालियों में दाना पड़ना बाकी था कि तेज हवा और बारिश से पूरा गेहूं की फसल खेतों में पसर गई है अब ऐसी हालत में गेहूं में दाना नहीं पड़ेगा बाकी की फसल का भी यही हाल है अब ऐसी स्थिति में किसान क्या करेगा जो लोग बैंक का कर्ज या शाहूकारों से कर्ज लेकर खेती करते हैं वो अपना कर्ज कहां से चुकता करेगें और अपने बच्चों को साल भर क्या खिलायेगें ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए हमारी सरकार कभी तैयार नहीं रही है किसानों के योजानाए भली अनगिनत चलाई जाये लेकिन किसानों को उनकी भरपाई नहीं हो पाती पिछले सालों के मुवाजे तक अभी तक बाकी हैं बांदा जिला के गांव बहुंडरी में सन् 2019में आई बाढ से सारे किसानों की 80प्रतिशत फसल डूब कर बर्बाद हो गई थी लेकिन प्रसासन ने इस गांव का सर्वे तक नहीं करवाया पैलानी के तहसीलदार और लेख पाल इस गांव का नाम भी लिस्ट में शामिल नहीं किया न सर्वे हुआ न ही आज तक मुवाजा मिला अब ये दूसरी मार बेमौसम बारिश और ओला की पड़ गई है कैसे भरोसा करें किसान की सरकार उनकी मदद करेगी सिर्फ भाषण देने बस से कुछ नहीं होता है किसानों के लिए सरकार ने सरकार की योजनाएं तो बहुत हैं लेकिन समय से लाभ न मिलने से कोई मदद नहीं हो पाती है *प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बाढ़, आंधी, ओले और तेज बारिश से उनकी फसल खराब हो जाती है. उन्हें ऐसे संकट से राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की है. इसे 13 जनवरी 2016 को शुरू किया गया था. इसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिये 2 फीसदी प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता इसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिये 2 फीसदी प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5% प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है.Nov 13, 2019 के लागत मूल्य को कम किया जाय | इसके लिए जैविक कृषि के तरफ बढ़ना होगा | इससे उर्वरक तथा कीटनाशक का पैसा बचेगा | इसके लिए केंद्र सरकार ने समूह में खेती करने वाले किसानों को अधिकतम 10 लाख रूपये का अनुदान दे रही है | * अब मैं अपने बुंदेलखंड के किसानों से पूछना चाहती हूं कि क्या आप लोगों को इस योजना का पूरा लाभ मिल पाता है जहां तक मेरा अनुभव है हमने कयी योजनाओं पर रिपोर्टिंग कि है लेकिन हमारे बुंदेलखंड के किसानों के खातों में न तो यह यह पैसा पहुंचा है न ही लोगों का कर्ज माफ हुआ है हां कुछ गिने चुने किसान जरूर होगें जो राजनैतिक पार्टियों से जुड़े हैं और उनकी इतनी पहुंच है कि वो लाभ पा सके होगें इसी तरह से किसानों से जुड़ी सारी योजनाओं के यही हाल हैं और यही कारण है कि किसानों के आत्म हत्या के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं भारत में किसान आत्महत्या १९९० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हज़ार से अधिक किसानों के द्वारा आत्महत्या की रपटें दर्ज की गई है। १९९७ से २००६ के बीच १,६६,३०४ किसानों ने आत्महत्या की।भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियाँ, समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएँ की है। कृषि मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2015 की रिपोर्ट बताती है कि देशभर में दिवालियापन या ऋण के कारण 8007 किसानों और 4595 कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की. अभी की ओला और बारिश में हुए नुकसान में भी सर्वे की बात ही चल रही है तत्काल मुआवजा किसी को नहीं मिला सालों लग जायेगें या तो किसानों का जितना नुकसान हुआ है उसका कयी गुना खर्च तहसील के चक्कर लगाने में हो जायेगा ,क्या इसबार और पिछले साल हुए नुकसान के मुआवजे की भरपाई कर पायेगी सरकार क्या प्राकृतिक अकाल से निपटने के लिए सरकार के पास कोई तैयारी है या फिर ऐसे ही मरते रहेगें किसान