खबर लहरिया Blog इक्कीसवीं सदी के भारत की शर्मसार करने वाली हकीकत…..

इक्कीसवीं सदी के भारत की शर्मसार करने वाली हकीकत…..

*चित्रकूट:* जहां सोच, वहां शौचालय। स्वच्छ भारत मिशन के तहत बना यह स्लोगन आपको जगह-जगह दिख जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनवाने की सोच है, लेकिन वह नहीं बन रहे हैं। इससे ग्रामीणों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मामला चित्रकूट जिले के गांव हर्दी कला का है जहाँ लोग खेत में शौच जाने को मजबूर हैं

The embarrassing reality of twenty first century India….

ये बात सही है कि मोदी सरकार के समय में लोगों के घरों में शौचालय बनाने के काम ने रफ़्तार पकड़ी है, लेकिन ये बात भी सही है कि अलग-अलग कारणों से शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। यह किसी से छुपा नहीं है कि आज भी गांवों में अधिकतर महिलाएं और पुरुष दोनों ही खुले में शौच जाते हैं।जो लोग अपनी बहू-बेटियों को चौखट लांघने की इजाजत नहीं देते, वहां भी महिलाएं सुबह-सुबह सड़कों के किनारे और खेतों में शौच जाती दिखाई देती हैं।  

कागजों में पूरी स्वच्छ भारत योजना लेकिन असलियत…..

डीह पुरवा की दुर्गावती ने बताया की  इस गाँव में लोग खेत में शौच करने जाने के लिए मजबूर हैं मोदी सरकार ने हर घर में शौचालय बनवाने का सपना तो दिखा दिया लेकिन शौचालय का पैसा मिला ही नहींकही एक किस्त मिला कही वह भी नही मिला जिससे शौचालय अधूरे पड़े हैं। मजबूरन खेतों में शौच के लिए जाना पड़ता है।

शौचालय की आस अधूरी, अब तो खेतों में जाना है मजबूरी

The embarrassing reality of twenty first century India….

सूरजकली जो गांव हर्दी कला मजरा डीह पुरवा की निवासी हैं उनका कहना है कि अगर अचानक पेट में दर्द उठे और शौचालय जाना हुआ तो ढूढ़े जगह नहीं मिलती। जिधर नजर घुमाओं लोग खेतो में काम कर रहे होते हैं कहाँ बैठें। पेट में दर्द उमड़-उमड़ कर रह जाता है जो बहुत तकलीफ देता है। कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं। जैसे पेट में गैस बनना, पेट साफ़ न होना, भूख न लगना इत्यादि।

ये कैसी धारणा?

अगर हम पुरुषों की बात करें तो वह कहीं भी बैठ जाते हैं। उन्हें कोई कुछ नहीं बोलता लेकिन अगर महिलाएं खुले में बैठे तो लोग उन्हें बेशर्म कहने लगते हैं। ताने देते हैं शर्म नहीं आती लोग आ जा रहे हैं बैठ के पेशाब करने लगी। महिलाएं अगर कभी बैठ गई तो पुरुष जा रहा हो तो उन्हें खड़ा होना पड़ता है। जब पुरुष चला जाये तो दुबारा भले बैठ जायें लेकिन शौच करते हुए पुरुष की निगाह नहीं पड़नी चाहिए।

हमने अक्सर गांवों में देखा है खेत में शौच के लिए बैठी हैं तो पुरुष आ रहा तो उठ जायेंगी चाहे कपड़े ही ख़राब हो जाएँ। हाँ एक और बात! गाँव में महिलाएं बिना पानी लिए शौच करने जाती हैं वो इसलिए की पुरुषों को पता न चले की वो शौचालय जा रही हैं। वापस घर आकर पानी लेती हैं। डिब्बा लेकर जाती दिख जाये तो भी लोग बोलने लगते हैं बहुत बेशर्म है पुरुष के सामने से डिब्बा लेकर जा रही है। शौचालय बनने से महिलाओं को इन सब दिक्कतों से जूझना न पड़ता।

खुले में शौच जा रहे लोग, फिर कैसे हुई पंचायतें स्वच्छ

The embarrassing reality of twenty first century India….

आशा और बिद्यावती बताती हैं कि इस समय तो बहुत ही ज्यादा दिक्कत है लोग अपने खेत मे बैंठने नही देते। क्योंकि मटर, आलू जैसी फसलें खेतो में तैयार हो गईं लोग कटाई, और खुदाई कर रहे हैं। अगर देख लिए तो गालियाँ देते हैं। इस मजरा की आबादी दो सौ है लेकिन किसी के शौचालय कम्प्लीट नहीं हैं सभी का अधूरा है 

मनीषा का कहना है की हर मौषम तो किसी तरह कट जाता है लेकिन बरसात का मौसम बहुत कष्टकारी होता है। हर तरफ खेत में पानी भरा रहता है दूर-दूर कहीं बैठने की जगह नहीं होती हैपिछली पंच वर्षीय में ही हमारे बस्ती में अधूरा शौचालय बना था लगभग दस साल हो गये दूसरी क़िस्त नहीं मिली, इसलिए अधूरा पड़ा है

न दरवाजा लगा न शीट

ग्रामीणों का आरोप है की पैसा न मिलने से शौचालय अधूरे हालत में पड़ा है न दरवाजा लगा है न शीट  बैठाई गई।  सिर्फ दीवाल खड़ी कर दी गई है। जो किसी काम का नहीं है सिर्फ नाम है की शौचालय बना है। सरकार के कागज़ में तो सारा कम्प्लीट दिखाया होगा लेकिन असलियत में कुछ नहीं।

प्रधान और सचिव ने झाड़ा अपना पल्ला

प्रधान बृजलाल का कहना है कि हमारे कार्यकाल में बजट के हिसाब से हर्दी कला गांव में दो सौ शौचालय दिया गया है अभी बजट नहीं है और न ही बजट आयेंगे। चुनाव के बाद जो जीतेगा वो बनवायेगा। सचिव रामकुमार का कहना है की हर गांव में इसी तरह शौचालय दिये गये हैं मजरा में शौचालय नहीं दिया गया है हो सकता है जो मजरा है उसमें लोगों के न बने हों जो इस कार्यकाल में बने हैं वह पूरे हैं 

रिपोर्टिंग- सुनीता देवी
लेखिका- ललिता