खबर लहरिया ताजा खबरें बुंदेलखंड से विलुप्त होता मोटा अनाज

बुंदेलखंड से विलुप्त होता मोटा अनाज

मोटा अनाज जिसको हम ज्वार,रागी कोंद और बाजरा के नाम से जानते हैं | यही मोटा अनाज आज के समय में बाजार और खेतों से विलुप्त होता जा रहा है | इन अनाजों को मोटा अनाज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उग जाते हैं.

धान और गेहूं की तुलना में ये अनाज के उत्पादन में पानी की खपत बहुत कम होती है. इसकी खेती में यूरिया और दूसरे रसायनों की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसलिए ये पर्यावरण के लिए भी बेहतर है| आज के समय में गांवों में ये अनाज खाने वाले लोगो को गरीब समझा जाता है जबकि कुछ दशकों पहले लोग इन्ही अनाजो को खा कर जीवन यापन करते थे , क्यों की आज के समय के लोगो को लगता है और  मोटा अनाज सिर्फ जानवरों के खाने के लिए होता है | किसानों से बात करने के लिए जब हमारे संवादाता गांवों में गए तो उनको किसानों ने बताया के ये अनाज थोड़ा ज्यादा दामों में बिकता है तो वो लोग इस अनाज को बेच कर गेहूं और  चावल खरीद लेते हैं एक किसान महिला ने बताया कि मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए बहुत फायेदेमंद होता है जब हम लोग इसको खाते है तो दर्द की समस्या नहीं होती है और इसको खाने से भूख न लगने की समस्या भी ख़तम हो जाती है | उनका कहना था कि अब पैदा होने वाले अनाज में खाद पड़ती है जो की फायदेमंद नही होते उल्टा बीमारियाँ हो जाती हैं आज के समय में गेहूं चावल की मांग ज्यादा होने की वजह से अब लोग मोटा अनाज की पैदावार भी बहुत कम मात्रा में करते हैं मोटा अनाज के साथ हमारी थाली से पोषक तत्व भी हुए गायब

ग्रामीण इलाकों में ये अनाज खाने की परम्परा भी ख़तम होती जा रही है लेकिन शहरी इलाको में जो लोग इनके फायदे जानते है वो लोग इनका उपयोग अपने भोजन में करते हैं | जनसंख्या का बढ़ना भी एक कारण है ये अनाज न उगा पाने का क्यों की यदि किसान १ बीघा खेत में बाजरा की फसल उगाता है तो सिर्फ 2 से 4 कुंतल की उपज होती है जबकि वही अगर धान की फसल उगाए जाय तो 8 से 10  कुंतल की अपज होती है इस दृष्टी से भी किसान ये अनाज न उगाना फायदेमंद समझता है | लेकिन हाल ही में इन इस  अनाज की फसलों को बढ़ावा देने के लिए एक शोध संस्थान हैदराबाद में खोला गया है जो मोटा अनाज की नई नई प्रजातियों का विकसित करता जिन प्रजातियों में अधिक पोषण होता है| केंद्र सरकार ने मोटा अनाज की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए साल 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था|