दीमक जीवित कोशिका को कभी नुकसान नहीं पहुंचाता। वह हमेशा उन्हीं कोशिकाओं को खाता है जो मर गयी होती हैं या मरने के करीब होती हैं।
दीमक को अमूमन एक दुश्मन के तौर पर देखा जाता है कि वह फसलों को बर्बाद कर देते हैं। इसका दूसरा पहलू यह है कि दीमक, असल में किसानों के दोस्त के रूप में भी काम करते हैं। वहीं दीमकों को मारने के नाम पर रसायनिक कंपनियां दीमकनाशी स्प्रे (termite) आदि बेचकर काफी धन कमाती दिखती हैं। बता दें, दीमक “कीट” प्रजाति से आता है। यह कीट अमूमन नमी वाली जगह पर पनपते हैं।
बाँदा के रहने वाले किसान जीतू बैरागी ने खबर लहरिया से दीमक की उपयोगिता और उनके नाम पर रसायनिक कंपनियों द्वारा फायदा उठाने की बात साझा की। बैरागी किसान बताते हैं, दीमक के नाम पर रासायनिक कंपनियों ने दीमकनाशी स्प्रे (termite) आदि चीज़ें किसानों को बेचकर अरबों रुपयों की लूट की है और यह अभी भी ज़ारी है। किसान भी इन कंपनियों की बातों में आकर और बिना कुछ जाने दीमक को मारते हैं।
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दीमक पोषक तत्व बदलने में करता है मदद
बैरागी किसान ने कहा, प्रकृति ने दीमक को एक ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह प्रकृति में जितनी भी सूखी (मृत) वस्तु है उसको खाकर मिट्टी में मिला दे यानि मरी हुई कोशिकाओं को तोड़कर कार्बन में बदल दे। इसके साथ ही पौधों के लेने योग्य पोषक तत्व में बदल दे। ऐसा इसलिए क्योंकि कोई भी पौधा कोई भी पोषक तत्व सीधे रूप में नहीं ले पाता। जैसे नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में, फास्फोरस को फास्फेट के रूप में लेता है आदि। दीमक कंपोस्ट यानि खाद को भी पौधे के लेने योग्य स्थिति में लाने का काम करता है।
दीमक में है मृत कोशिकाओं को पहचानने की क्षमता
बैरागी किसान आगे कहते हैं, दीमक जीवित कोशिका को कभी नुकसान नहीं पहुंचाता। वह हमेशा उन्हीं कोशिकाओं को खाता है जो मर गयी होती हैं या मरने के करीब होती हैं।
उनके अनुसार, जब कोई पौधा किसी वजह से मरने के करीब होता है तो दीमक को उसका अनुभव हो जाता है और वह उसे खाना शुरू कर देते हैं। हम जब उस पौधे को उखाड़ कर देखते हैं तो हमें उस पौधे में दीमक लगा मिलता है और हमें लगता है कि दीमक ने पौधे को नुकसान पहुंचाया है। यहीं कंपनियां अपना दीमकनाशी बेचने में कामयाब हो जाती हैं।
किसान बैरागी आगे बताते हैं, दीमक में किसी मृत वनस्पति को सेंस यानी अनुभव करने की क्षमता होती है। आप इसे एक उदाहरण के ज़रिये समझ सकते हैं।
आप एक तरफ कोई भी बीज रखें जो अभी सूखा ही हो है और उसी के साथ कोई मृत पौधा या डाल रख दें। इसके बाद आप देखेंगे कि दीमक उस मृत वस्तु को खायेगा न कि उस सूखे बीज को क्योंकि हर बीज में अपनी लाइफ कैपेसिटी या जीविका होती है जिसे दीमक अपनी सेंसेसन शक्ति या अपनी कला से पहचान लेता है और मृत हो चुकी कोशिका को ही कार्बन में बदलने के लिए कार्यरत हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये उसकी प्राकृतिक ज़िम्मेदारी है जो उसे मिली है।
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केंचुए से ज़्यादा दीमक किसानों के लिए उपयोगी
बैरागी किसान का मानना है कि दीमक किसानों व मिट्टी के साथ काम करने वाला सबसे बड़ा दोस्त है। केंचुआ तो सिर्फ बारिश के दिनों मे अधिकतर 4-5 महीनें काम करता है। बाकी 7-8 महीने दीमक ज़्यादा काम करते हैं। जंगलों की मिट्टियां भी दीमकों की देन हैं जिनमें विशाल दरख्त (पेड़) खडे़ हुए हैं।
दीमक के बामी की मिट्टी यानी चिकनी मिट्टी से कई प्रकार के फसल व घोल तैयार होते हैं। यह मिट्टी के शुद्धिकरण व बीज शोधन करने में इस्तेमाल की जाती है। इसके साथ ही यह कई प्रकार के पोषक तत्व बनाने में भी काम आती है।
बैरागी किसान लोगों से यही कहते हैं कि लोग दीमक की उपयोगिता और उसके रोल को समझें और खुद को कंपनियों से लुटवाने से बचाएं।
दीमक (termite) क्या है?
– दीमक चींटी की तरह होता है पर उससे बिलकुल अलग। उसका रंग सफेद होता है।
– दीमक समूह में पाया जाने वाला कीट है जिसकी वजह से इसे सामाजिक प्राणी भी कहा जाता है।
– चींटियों की तरह दीमक भी ग्रुप बनाकर रहता है। दीमक लाखों की संख्या में कॉलोनी में रहते हैं।
– दीमक कीट के पंख होते है। मादा और श्रमिक दीमक का रंग सफेद होता है।
– नर दीमक भूरे रंग का होता है। इसके सर पर एंटीना भी लगा होता है।
– बता दें, दीमक यानि termite अपने पूरे जीवनकाल में कभी भी नहीं सोते। उनका जीवनकाल करीब 30 वर्षों का होता है।
तो इस तरह दीमक किसानों के मित्र साबित होते हैं जिनके बारे में अधिक जानकारी न होने की वजह से लोग दीमक को हमेशा खतरे के रूप में देखते हैं।
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